इनके संरक्षण को लेकर सरकारी अमला नहीं है गंभीर

आगरा। धरोहरों को लेकर सरकारी अमला सीरियस नहीं है। अगर ऐसा नहीं होता तो पुरानी संस्कृति और सभ्यता को सहेजकर रखने को लेकर सिटी में काम होता जरूर दिखाई देता। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। आज की तारीख में आगरा की कई धरोहरों को देखने वाला कोई नहीं है।

अब भी बाकी हैं निशां

आगरा भगवान श्रीकृष्ण के बृज का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसके बाद लम्बे समय तक आगरा मुगल शासकों की राजधानी भी रहा है। आगरा जिले के अंदर से सम्राट अकबर भी रहा है। मुगलकाल की यहां भरी-पूरी संस्कृति और सभ्यता के दर्शन मिलते हैं। शहर के अंदर कई स्थानों पर मुगलकालीन धरोहरों के दर्शन करने को मिलते हैं। तमाम के तो अब भी निशां बाकी हैं।

यमुना के किनारे हैं तमाम

आगरा यमुना नदी के किनारे बसा हुआ शहर है। नदी के किनारे-किनारे धरोहरों का अस्तित्व अभी भी देखने को मिलता है। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि कब तक ये इसी तरह से खड़ी रहेंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि बिना किसी देखभाल और संरक्षण के ये धरोहरें खस्ताहाल हो चली हैं। धरोहरों के ढांचे के कुछ हिस्से जमींदोज भी हो चुके हैं।

कोई नहीं लेता है इनकी सुध

बल्केश्वर और यमुनापार के यमुना किनारे-किनारे कई धरोहरें जीर्ण अवस्था में पहुंच चुकी है। बल्केश्वर नदी के किनारे खस्ताहाल धरोहर पर घास उगी खड़ी है। यही हाल खंदारी स्थित एक प्राचीन धरोहर का है। यहां स्मारक का एक ढांचा खड़ा है। हालत देखकर लगता है कि कभी भी यह ढह सकता है। सिकंदरा एरिया में अकबर टॉम्ब के पास स्थित भी एक मुगलकालीन धरोहर बिना किसी देखभाल के यूं ही खड़ी हुई है। इसको भी संरक्षण की जरूरत है।