आगरा(ब्यूरो)। जी हां एक पहल पाठशाला, जहां स्कूल तो नहीं लेकिन स्कूल की तरह बच्चों को माहौल दिया गया है, वहीं टीचर भी उन्हें बिना सैलरी के शिक्षा दे रहे हैं। जिससे वे अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बन सकें। ऐसे लोग शिक्षक न होते हुए भी शिक्षा का दीया जला रहे हैं।

फ्री शिक्षा और दे रहे बुक्स
एक पहल बीआर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी पिछले 14 सालों से बच्चों को फ्री शिक्षा के साथ बुक्स भी दिला रहे हैं। अब तक यहां से सात सौ से अधिक बच्चों को शिक्षित किया गया है, वर्तमान में स्कूल आने वाले बच्चों को ड्रैस के साथ आईकार्ड भी प्रोवाइड करा रहे हैं।

भोजन, स्वास्थ्य सेवा का लाभ
यहां पढऩे आने वाले बच्चों को संस्था की ओर से भोजन के साथ स्वास्थ्य संबंधित सेवाएं भी प्रदान की जाती हैं जो बच्चे आर्थिक समस्या के चलते स्कूल नहीं जा सकते। ऐसे बच्चों को संस्था द्वारा शिक्षा दी जाती है। ये बच्चे छोटा-मोटा काम कर परिवार को सहारा दे रहे हैं तो वहीं फ्री शिक्षा लेकर समाज की मुख्य धारा में आने की कोशिश कर रहे हैं।

50 से अधिक बच्चे ले रहे शिक्षा
आसपास के इलाकों के सैकड़ों बच्चे अक्षरा प्रौड़ शिक्षा के अंतर्गत 150 महिलाएं फ्री शिक्षा दे रहीं हैं। महिलाएं गृह कार्य के साथ इन बच्चों को न सिर्फ फ्री शिक्षा दे रहीं हैं बल्कि किताबें, ड्रेस भी उपलब्ध कराई हंै। रोजाना पौष्टिक आहार भी दिया जाता है। यह बात आसपास के लोगों को पता चली तो उन्होंने भी अपने बच्चे भेजना शुरू कर दिया। मनीष राय बताते हैं कि पहले ही साल बच्चों की संख्या 50 से ज्यादा हो गई थी, इसके बाद अच्छी खासी संख्या में बच्चे हैं।


शिक्षा विभाग में ही लगा दी बच्चों की क्लास
समाजसेवी नरेश पारस शिक्षक नहीं हैं। मगर, गरीब बच्चों की मजबूरी और सरकारी सिस्टम की लापरवाही ने उनको 'शिक्षक' बना दिया। सरकारी स्कूल में मलिन बस्ती के कुछ बच्चों को जब प्रवेश नहीं मिला तो उन्होंने शिक्षा विभाग में ही बच्चों की क्लास लगाना शुरू कर दिया। आसपास के कई बच्चे उनसे शिक्षा लेने के लिए पेड़ के नीचे ही टाट-पट्टी लेकर बैठ जाते हैं। इससे पहले भी नरेश पारस शाहगंज स्थित राजकीय बालगृह के बच्चों को पढ़ा चुके हैं।


जिला जेल समेत 54 स्थानों पर शिक्षा की अलख
सुमन सुराना पेशे से व्यवसायी और समाजसेविका हैं। पिछले पांच साल से वो एक शिक्षिका का दायित्व भी निभा रही हैं। शहर मेें 54 से अधिक स्कूल्स में फ्री शिक्षा प्रदान करवा रहीं हैं, वे इन टीचर्स को सैलरी भी देती हैं। अब तक हजारों बच्चों को शिक्षित कर चुकी हैं। इसके साथ ही जिला जेल में भी महिला बंदियों को शिक्षा दिलवा रहीं हैं। इसको लेकर कई बार समाजसेवी सुमन सुराना को सम्मानित भी किया गया है।


हाउस वाइफ हंू, शुरू से ही पढ़ाने की ललक थी, बच्चों को पढ़ाने में बहुत अच्छा लगता है, यहां स्कूल की तरह क्लास लगाई जाती हैं। बच्चे भी समय से आकर शिक्षा में रूचि दिखाते हैं।
शालिनी भटनागर

दयालबाग से एमएड कर रही हैं, पढ़ाई के साथ-साथ ऐसे बच्चों को भी पढ़ाने का मौका मिल जाता है, जो समाज की मुख्य धारा से अलग हैं। बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है।
नेहा यादव

दयालबाग से पीएचडी की हैं, वर्तमान में संस्था के जरिए बच्चे यहां शिक्षा के उद्देश्य से आते हैं, ऐसे में उन्हें न केवल पढ़ाई का ज्ञान मिलता है, बल्कि एक अच्छा नागरिक भी बनाया तैयार किया जाता है।
ईवा गर्ग

मैं हाउस वाइफ हूं, घर संभालने के साथ-साथ समाज की मुख्य धारा से ऐसे बच्चों को जोडऩे की पहल कर रही हूं, जो पढऩे के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। फ्री बुक्स भी दी जा रहीं हैं।
वर्तिका सक्सेना

मैं बच्चों को मैथ पढ़ाता हूं, सुबह टाइमली क्लास लगती हैं, बच्चे बहुत अच्छा कर रहे हैं, खेल-खेल में ही बेहतर कर रहे हैं।
नवीन कुमार