आगरा(ब्यूरो)। इसे गंदी बात माना जाता था लेकिन अब यह सब गंदी बात नहीं रही है। अब डिजिटल दौर आ गया है। टीवी ही नहीं अब कई माध्यमों से बच्चों के पास में एडल्ट कंटेंट पहुंच रहा है। सोशल मीडिया, टीवी, ओटीटी, गेम्स सभी जगह पर एडल्ट कंटेंट पहुंच रहा है। अब यह नॉर्मल हो गया है। अब कोई गंदी बात नहीं रह गई है। इससे सीधा बच्चों की मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ रहा है। जिला महिला अस्पताल की अर्श काउंसलर रूबी बघेल बताती हैैं कि बच्चों को उम्र के हिसाब से कंटेंट मिलना चाहिए। इसके लिए हम शुरूआत से बच्चों के सामने कुछ भी बोलने से हिचकते हैैं। चीजों को फिल्टर करने के बाद में ही बच्चों के सामने कुछ बोलते हैैं लेकिन अब पेरेंट्स की लापरवाही से सोशल मीडिया, गेम्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म बच्चों की पहुंच में आ गए हैै। इससे बच्चों पर प्रभाव पड़ रहा है। वह अपनी उम्र से अधिक सोचने लगे हैैं। इसके नेगेटिव परिणाम आ रहे हैैं।

हिंसक गेम खेलकर बदल गया व्यवहार
रूबी ने बताया कि उनके पास पेरेंट्स अपने साढ़े तीन साल के बच्चे को लेकर आए। उन्होंने बताया कि उनका बच्चा छत पर बाउंड्री पर चलने लगता है और अपनी इमेजनरी दुनिया में रहता है। जब उनसे पूछा गया कि वह मोबाइल तो यूज नहीं करता तो उन्होंने बताया कि वह मोबाइल में गेम खेलता है। इसके बाद बच्चे से पूछा तो उसने बताया कि वह मोबाइल पर सैनिक वाला गेम खेलता है। रूबी ने बताया कि इतने छोटे बच्चे को मोबाइल नहीं देना चाहिए। यही कारण है कि उस बच्चे के व्यवहार में बदलाव आया। वह गेम के किरदार के रूप में खुद को समझने लगा। इस कारण वह ऐसी हरकत करता था। बाद में बच्चे और पैरेंट्स दोनों की काउंसलिंग की। इसके बाद में पैरेंट्स ने बच्चे को मोबाइल देना बंद कर दिया और उसके व्यवहार पर ध्यान देना शुरू किया। अब बच्चे का व्यवहार नॉर्मल हो गया है।

छोटे बच्चों को न दें मोबाइल
रूबी ने बताया कि बच्चे को जैसा कंटेंट मिलेगा उसका व्यवहार भी वैसे ही होगा। इसलिए पैरेंट्स का फर्ज बनता है कि वह बच्चे के व्यवहार पर ध्यान दें और उसके पास पहुंचने वाले कंटेंट को फिल्टर करें। छोटे बच्चों को मोबाइल बिल्कुल न दें। आजकल पेरेंट्स खुद मोबाइल में बिजी रहते हैैं और उन्हें देखकर बच्चा भी मोबाइल मांगता है। पैरेंट्स भी उसे मोबाइल दे देते हैैं। जबकि यह गलत है। मोबाइल पर बच्चे के सामने कैसा भी कंटेंट सामने आ सकता है। इसका उस पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।

व्यवहार को पहचानें
रूबी बघेल ने बताया कि यदि बच्चे का व्यवहार बदल रहा है तो उस पर ध्यान दें। इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश करें कि बच्चे का व्यवहार क्यों बदल रहा है। बच्चे से इस बारे में प्यार से ही बात करें, उसे डांटें न। डांटने पर बच्चा छिपाएगा। जब मूल जड़ का पता चले तब उसे दूर करें।

पेरेंट्स कंट्रोल जरूरी
सीनियर साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन ने बताया कि अब जमाना बदल रहा है। हमारे जीवन में टेक्नोलॉजी ने प्रवेश कर लिया है। ऐसे में पेरेंट्स को ज्यादा सतर्क और समझदार होने की जरुरत है। यदि पेरेंट्स सही पेरेंटिंग नहीं करेंगे तो तकनीकी युग में बच्चे भटक सकते हैैं। उन्होंने बताया कि सबसे पहले तो यह ध्यान रखें कि बच्चे को किस चीज की जरूरत है और किस चीज की नहीं। छोटे बच्चों की खिलौनों से खेलने की उम्र है। उन्हें उन्हीं से खिलाएं। उन्हें मोबाइल बिल्कुल न दें। इससे उनकी आंखें तो खराब होंगी ही साथ में मोबाइल के जरिए खराब कंटेंट उनके दिमाग में गया तो उसका भी दुष्प्रभाव होगा। उन्होंने कहा कि बच्चा जब पांचवी या छठवीं क्लास में आता है तो उसे मोबाइल या लैपटॉप की जरुरत पड़ती है। तब उन्हें कंट्रोल एक्सेस और सर्विलांस के साथ में मोबाइल या लैपटॉप दें। यदि उन्हें मोबाइल दे रहे हैैं तो गूगल फैमिली जैसे एप इंस्टॉल करके दें। जैसे बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उसे निर्धारित डाइट के तहत खाना दिया जाता है वैसे ही उसे डिजिटल डाइट भी देनी चाहिए। दिमाग तक कचरा कंटेंट (एडल्ड कंटेंट) नहीं जाने देना है। बच्चे जब एडल्ट कंटेंट देंगे तो वैसे ही बिहेव करेंगे।

रखें निगरानी
साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन ने बताया कि बच्चे को जब मोबाइल दें तो गूगल फैमिली के माध्यम से नजर रखें कि वह कौन सा एप डाउनलोड कर रहा है। वह क्या कंटेंट देख रहा है। यूट्यूब का एक्सेस दिया है तो वह क्या देख रहा है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक एप पर एज वॉर्निंग लिखी रहती है। यदि बच्चा 12 साल का है और वह 17 साल प्लस का एप डाउनलोड कर रहा है तो बच्चे को टोकें। ओटीटी पर कोई वीडियो देख रहा है तो वहां पर भी वीडियो पर एज वॉर्निंग लिखी रहती है। इसलिए इन सभी चीजों पर नजर रखें।

प्रत्येक गेम बच्चों के लिए नहीं
रक्षित टंडन ने बताया कि प्रत्येक गेम बच्चों के लिए नहीं होता है। हर गेम पर एज लिमिट लिखी होती है। इस बारे में भी ध्यान दें। इसके साथ ही बच्चों को सोशल मीडिया यूज न करने दें। यदि वह यूज कर रहे हैैं तो उन्हें रोकें।


बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें। उनके सामने खुद संयम से व्यवहार करें। यदि बच्चे के व्यवहार में बदलाव आए तो उसके पीछे का कारण खोजें।
- रूबी बघेल, अर्श काउंसलर, जिला महिला अस्पताल

तकनीक के कारण जब सब कुछ स्मार्ट हो रहा है तब पेरेंट्स को भी स्मार्ट होना पड़ेगा और स्मार्ट पेरेंटिंग करनी होगी। बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से ही मोबाइल यूज करने दें।
- रक्षित टंडन, सीनियर साइबर एक्सपर्ट

इन बातों का रखें ध्यान
- स्मार्ट पेरेंटिंग को अपनाएं
- पेरेंट्स भी मोबाइल एडिक्ट न हों। - बच्चों के सामने ज्यादा समय तक मोबाइल न देखें।
-बच्चों के व्यवहार का रखें ध्यान
- यदि बच्चे को पढऩे के लिए मोबाइल दे रहे हैैं तो उसमें पेरेंटल कंट्रोल रखें।
- बच्चों को डिजिटल डाइट दें।
- प्रत्येक एप को डाउनलोड करने से पहले उसकी एज रेटिंग को देखें।
- ओटीटी आदि पर एज के अकॉर्डिंग कंटेंट की वार्निंग दी जाती है उसे भी देखें।

सोशल मीडिया पर आए कमेंट्स
हम छोटे थे तब पापा का मोबाइल छूने से भी डरते थे। आज छोटा सा बच्चा मोबाइल को अच्छी तरह से ऑपरेट कर रहा है। इसका फर्क तो पड़ेगा।
- बिट्टïू शर्मा

मेरा छह साल का भतीजा मोबाइल पर छोटा भीम देखती है। अब वह दिनभर उसी की रट लगाए रहती है। वह छोटा भीम की तरह एक्ट करता है।
- जीत

छोटे बच्चों को मोबाइल नहीं देना चाहिए। लेकिन आजकल पेरेंट्स बच्चे को एंगेज करने के लिए उसे तुरंत मोबाइल पकड़ा देते हैैं। यह गलत है।
- शिवम