AGRA: पहले फर्जी और अब असली। आखिर सच क्या है। सर्राफ गोलीकांड के बाद खुलासों में फंसी पुलिस खुद सवालों के कटघरे में खड़ी हो गई है। जल्दबाजी में पुलिस ने अपनी साख बचाने को खुलासा तो कर दिया, लेकिन अब ये उसके लिए सांसत बन उठा है। सिस्टम की विश्वसनीयता पर तमाम सवाल खड़े होने लगे हैं। कौन निर्दोष है और कौन कसूरवार, इसका जवाब खुद मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों पर नहीं है।

पुलिस लाइन बुलाए कारोबारी

गुरुवार को एसएसपी डॉ। प्रीतिंन्दर सिंह ने पुलिस लाइन में सर्राफ कारोबारी धनकुमार जैन के साथ हुए गोलीकांड का फिर से खुलासा किया। प्रेस कांफ्रेंस में कसूरवारों के चेहरे 'बेनकाब' किए गए। हालांकि इससे पहले पुलिस ने 24 नवंबर को खुलासा करके दो युवकों को दबोचकर दो युवकों को फरार दिखाया था। घटना और सीसीटीवी फुटेज में प्रयुक्त सफेद रंग की अपाचे बाइक भी बरामद दिखाई। लेकिन जहां इस खुलासे को कारोबारियों ने सिरे से खारिज कर दिया, वहीं दबोचे गए युवक योगेश के बड़े भाई रामकुमार ने अपने छोटे भाई को बेकसूर बताया। इस खुलासे पर सवाल खड़े होने लगे तो पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों ने गुरूवार को फिर से 'नई और सच्ची कहानी' गढ़ी है।

विश्वसनीयता पर उठे सवाल

अब बिंदु सिस्टम की विश्वसनीयता का आता है। 24 नवंबर को हुए खुलासे में पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के चेहरों को कपड़े से ढक दिया था। मीडिया को बात तक नहीं करने दी। बरामद असलाह का सिर्फ तस्वीर दिखाकर अपनी पीठ थपथपा ली। वह भी एक मोबाइल में। जबकि गुरूवार को प्रेसवार्ता में सराफा कारोबारियों के कहने पर एसएसपी ने पकड़े गए आरोपियों के चेहरे से नकाब हटवा दिया गया। इससे स्पष्ट होता है कि कारोबारियों को पुलिस की कार्यप्रणाली पर विश्वास नहीं था, लिहाजा उन्होंने ऐसा कराया। इस बारे में सराफा कमेटी के अध्यक्ष आनन्द अग्रवाल का कहना था कि पुलिस ने साक्ष्य जुटाए होंगे, उनके आधार पर ये खुलासा किया है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि धन्नू भाई के परिजन संतुष्ट होने चाहिए। पुलिस अपनी कार्रवाई करने में लगी हुई है।