आगरा(ब्यूरो)। दिल्ली में ऑनलाइन एजुकेशन कंपनी में कार्यरत रोहित तिवारी मूलरूप से भूड़ का बाग, कमला नगर के निवासी हैं। उन्होंने एक जनवरी को सुबह 7.35 बजे अफ्रीका महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो फतेह की। 19 हजार फीट ऊंची इस चोटी पर माइनस 15 डिग्री तापमान में रोहित ने तिरंगा लहराया। इसके साथ योग किया। 51 सूर्य नमस्कार किए। वे पहले भारतीय हैं जिन्होंने माउंट किलिमंजारो पर योग कर दुनियाभर में भारतीय संस्कृति और प्रदेश का नाम रोशन किया।

उठाते रहे हैं सामाजिक मुद्दे
रोहित ने बताया कि वे हमेशा माउंटेन क्लाइम्बिंग के दौरान सामाजिक मुद्दों को उठाते हैं। इस बार भी उन्होंने प्रदेश सरकार के अच्छे कार्यों को चोटी पर फतेह करने के दौरान दिखाया है। समृद्ध प्रदेश-उत्तर प्रदेश का नारा दिया, कुछ सरकारी योजनाओं जैसे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, नशा मुक्त भारत जैसे मुद्दों को उठाते हुए समाज को एक सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की। आज के युवा वर्ग को नशे से दूर रहने का संदेश दिया। रोहित के इस कार्य को तंजानिया में स्थित भारतीय दूतावास ने भी खूब सराहा। भारत के डिप्टी हाई कमिश्नर मनोज वि। वर्मा ने माउंटेन से बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का संदेश देने पर रोहित की तारीफ की।

रोहित का मिशन सेवन समिट्स
रोहित ने बताया कि उन्होंने मिशन सेवन समिट्स का लक्ष्य बनाया है। मिशन सेवन समिट्स के तहत विश्व के सात महाद्वीप के सात माउंटेन को क्लाइंब करना है। इसमें पहला अफ्रीका, दूसरा एशिया का एवरेस्ट, तीसरा एलब्रुस, इसी तरह सात माउंटेन को फतह करने का रोहित का टारगेट है। माउंट किलिमंजारो के बाद अब उनका अगला लक्ष्य माउंट एवरेस्ट को फतेह करना है। इसके लिए वो अप्रैल में अपना मिशन शुरू करेंगे। माउंट एवरेस्ट के बाद वो यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलप्रॉस पर चढ़ाई करेंगे। जिसके लिए वे पिछले काफी वर्षों से अपने आप को तैयार कर रहे हैं।

आगरा में स्कूली शिक्षा
रोहित ने कमलानगर स्थित सरस्वती विद्यामंदिर से पढ़ाई की है। वर्तमान मे रोहित एक एजुकेशन कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। जॉब के साथ वे खुद को माउंटेन क्लाइम्बिंग के लिए तैयार करते हैं। रोज लगभग 4 से 5 घंटे की ट्रेनिंग करते हैं। रोहित बताते हैं कि सुबह 4 बजे से उनके दिन की शुरुआत होती है। इसमें 10 से 15 किमी की रनिंग और वॉकिंग, 15 किलो वजन के साथ और लगभग 40 किमी डेली साइकिलिंग करके ऑफिस जाते हैं। सूर्य नमस्कार के साथ योग और बैलेंस्ड डाइट भी उनकी ट्रेनिंग सेशन में शामिल रहता है।


पर्वतारोही बनने का मेरा बचपन का ड्रीम था
रोहित ने बताया कि पर्वतारोही बनने का सफर 1994 में शुरू हुआ था। उस समय वो क्लास 7 में थे। उस समय माउंट एवरेस्ट पर एक डिजास्टर हुआ था। उसके बारे में अखबार में पढ़ा। उसके बाद से उनके मन में माउंट एवरेस्ट के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने उसके बारे में पढ़ाना शुरू किया। उन्हें पता चला कि विश्व की सबसे ऊंची चोटी है। बस वहीं से उन्होंने सोचा कि एक न एक दिन वो भी माउंट एवरेस्ट पर जाएंगे। इस सफर की शुरुआत हो चुकी है। अब अप्रैल में वो माउंट एवरेस्ट फतेह करने के लिए प्रयास करेंगे।

प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली
रोहित ने बताया कि उन्होंने पर्वतारोही बनने के लिए प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली है। उत्तरकाशी में रक्षा मंत्रालय के इंस्टीट्यूट से उन्होंने पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स किया। इसके बाद उन्होंने दार्जिलिंग से एडवांस कोर्स किया। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्होंने इंडियन हिमालय पर चढ़ाई की। नेपाल में उन्होंने 7 दिन में अकेले 18 किलो वजन के साथ हिमालय चढऩे की उपलब्धि हासिल की।