आगरा। प्रो। पाठक पर वसूली के मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद हरकत में आई एसटीएफ सोमवार को डॉ। भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी परिसर में पहुंची, जहां पूर्व वीसी आलोक राय और प्रो। विनय पाठक के कार्यकाल में भुगतान किए 15 महीने के बिल और केन्द्र बनाने से जुड़े दस्तावेज और कुलपति के नजदीकी रखने वाले टीचर्स की भी डिटेल मांगी है।

बिल भुगतान को बुलाया था कानपुर
डिजिटेक्स टेक्नोलॉजीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर डेविड मारियो डेनिस ने प्रो। विनय पाठक पर वसूली के साथ खुद को जान का खतरा बताया है, डॉ। भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी पूर्व वीसी विनय पाठक ने वादी से 15 फीसदी कमिशन वसूल किया था, कंपनी वर्ष 2014 से परीक्षा से जुड़े कार्य कर रही है। इसी बीच वर्ष 2020 में यूपीएलसी के जरिए प्री पोस्ट ने एग्जाम का कार्य भी किया है, जिसका बिल भुगतान अभी लंबित है, आरोप है कि तब प्रो। पाठक कुलपति पद पर थे।

मिश्रा की कंपनी का टर्न ओवर 100 करोड़
एसटीएफ को जानकारी मिली है कि अजय मिश्रा की कंपनी में 250 कर्मचारी हैं। 100 करोड़ का वार्षिक टर्न ओवर है और 20 करोड़ रुपये कंपनी के खाते में हैं। एसटीएफ को प्रो। ठक के अलावा कई अन्य कुलपतियों से अजय मिश्रा की सांठगांठ के साक्ष्य भी मिले हैं।

प्रो। विनय पाठक पर लगे आरोप
- राजा महेंद्र प्रताप विश्वविद्यालय की आपत्ति के बाद भी 225 कॉलेजों के विभिन्न पाठ्यक्रमों को कर दिए स्थायी। 10 करोड़ का लेनदेन होने की शिकायत की गई।
- यूनिवर्सिटी के 270 कॅालेजों के विभिन्न पाठ्यक्रमों को नियमों के खिलाफ जाकर स्थायी करने में 15 करोड़ रुपये का लेनदेन।
- अपने रिश्तेदार आदर्श पाठक को कॉलेजों की पत्रावलियों को स्कैङ्क्षनग कराने के नाम पर 25 लाख रुपए का भुगतान कराया।
- कम्प्यूटराइजेशन के लिए कानपुर की कंपनी को 35 लाख रुपए दे दिए गए।


मैंने समाप्त नहीं किया अनुबंध: प्रो। आशु रानी
मुकदमे में स्पष्ट लिखा गया है कि प्रो। पाठक ने यूनिवर्सिटी के साथ अनुबंध को जारी रखने के नाम पर दस लाख रुपए मांगे। एजेंसी के मना करने के बाद नव नियुक्त कुलपति प्रो। आशु रानी ने एजेंसी से अनुबंध समाप्त कर दिया। वहीं इस बारे में वर्तमान कुलपति प्रो। आशु रानी का कहना है कि मैंने डिजिटेक्स से अनुबंध समाप्त नहीं किया है।

बिना नक्शे के बनवाया संस्कृति भवन
प्रो। विनय कुमार पाठक ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद सिविल लाइंस में 40 करोड़ से बने संस्कृति भवन का नक्शा ही स्वीकृत नहीं था। वहीं कुछ दिन बाद शिवाजी मंडपम का भी लोकार्पण करा दिया। हालांकि करोड़ों रुपये के फर्नीचर का भुगतान हो चुका है और फर्नीचर नहीं पहुंचा है। इसकी शिकायत शासन तक पहुंच चुकी है।

मामले और विवाद
- 11 और 14 मई को हुए पेपर लीक मामले के बाद नोडल केंद्रों पर 25 लाख रुपए में आरएफआईडी लॉक लगाए गए। बिना नियम प्रक्रिया के भुगतान पर आईईटी के पूर्व निदेशक प्रो। वीके सारस्वत से विवाद भी हुआ था।
- स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति के विज्ञापन में करीब दो करोड़ खर्च कर दिए।
- विज्ञापन के लिए वित्त समिति से पांच लाख रुपये स्वीकृत हुए, लेकिन खर्च किए ढाई करोड़।
- डीन एकेडमिक, डीन एल्युमिनाई व डीन फैकल्टी पदों का असंवैधानिक रूप से गठन किया गया।
- पांच निदेशकों को असंवैधानिक रूप से पद से हटा दिया गया।
- सेंटर निर्धारण की शिकायतें शासन को पहुंची थी।
- अजय मिश्रा की एजेंसी से कराई शोध प्रवेश परीक्षा, 25 लाख का भुगतान।


इस मामलेे की जांच गंभीरता से की जा रही है, इस प्रकरण में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के सेक्शन 7 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। इसकी विवेचना की जा रही है।
हुकुम सिंह, एसटीएफ प्रभारी आगरा