आगरा। मेरा कॉलेज करीब 3 किमी दूर है। मैं रोज पैदल ही घर से कॉलेज जाने के लिए निकलती हूं। बाहर सड़क पर पहुंचकर बस पकड़ती हूं। बस कॉलेज के सामने मुझे छोड़ती है। लेकिन, इस दौरान मुझे रास्ते में कहीं भी महिला टॉयलेट नजर नहीं आता। ये सिर्फ एमजी रोड स्थित कॉलेज में पढ़ने वाली शालिनी की ही उन्हीं, बल्कि रोज उनकी तरह कॉलेज जाने वाली कई छात्राओं को कुछ इसी तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ता है।

छात्राओं की समस्या की ओर नहीं ध्यान

बीए की स्टूडेंट्स शालिनी कहती हैं कि मेरे साथ मेरी कई दोस्त भी कॉलेज जाती हैं। अगर रास्ते में किसी को टॉयलेट आ जाए तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। लेकिन, हमारी किसी को फिक्र नहीं है। सदर स्थित एक डिग्री कॉलेज में पढ़ने वाली खुशी बताती हैं कि जब भी कॉलेज जाती हूं तो घर से फ्रेश होकर ही जाती हूं। बाहर तो कहां टॉयलेट करेंगे। छात्राओं के लिए तो कहीं टॉयलेट हैं ही नहीं। इस ओर न तो कोई जनप्रतिनिधि ओर न ही कोई सरकारी विभाग ध्यान देता है। इस समस्या का जल्द से जल्द हल निकाले जाना जरूरी है। जनप्रतिनिधियों को इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाना चाहिए। जिससे इस समस्या से जल्द से जल्द राहत मिल सके। इंटरमीडिएट की छात्रा सुधा बताती हैं कि कोरोनाकाल में सबसे पहले हमारे ही स्कूल खुले थे। मेरे घर और स्कूल के बीच दूरी करीब 5 किमी की है। मैं साइकिल से स्कूल जाती हूं। ऐसे में यही डर लगा रहता है कि कहीं रास्ते में टॉयलेट जाना हो तो कहां जाएंगे। रास्ते में कहीं भी टॉयलेट नहीं मिलता है। इस ओर जिम्मेदार लोगों को ध्यान देना चाहिए।

वर्जन

शहर का तो विकास हुआ है, लेकिन छात्राओं की इस समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। आज भी शहर की शायद ही कोई ऐसी सड़क हो जहां टॉयलेट मिल जाए। स्कूल के आसपास तो टॉयलेट बनाने की सख्त जरूरत है। इसके लिए सरकारी विभाग के साथ क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। आखिर ऐसा क्या हुआ, जो आज तक टॉयलेट का निर्माण नहीं कराया जा सका है। बाजार हो या शहर के भीड़भाड़ वाला कोई अन्य एरिया, आज भी लड़कियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।

आकांक्षा

सड़क किनारे कहीं भी महिला टॉयलेट दिखते नहीं हैं। पिंक टॉयलेट के बारे में सुना है। एक-दो जगह देखने को भी मिले हैं, लेकिन कभी यूज नहीं किया। सिर्फ टॉयलेट निर्माण से स्थिति नहीं सुधरेगी। बल्कि उनके मेंटीनेंस का भी ध्यान रखना होगा। पब्लिक टॉयलेट इतने गंदे रहते हैं कि उनके पास से भी गुजरा नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में कौन इनका यूज करेगा। टॉयलेट साफ-सुथरा रहेगा तो छात्राएं उसका यूज कर सकेंगी। ऐसे में इस ओर भी सरकारी विभागों को ध्यान देने की जरूरत है।

भावना

महिलाओं के लिए टॉयलेट तो दूर की बात है। पुरुषों के लिए भी टॉयलेट नहीं है। वह खुले में सड़क किनारे टॉयलेट करते दिखते हैं। इससे छात्राओं को भी शर्मसार होना पड़ता है। बाहर जाने से पहले 10 बार सोचना पड़ता है। जब भी घर से बाहर निकलते हैं फ्रेश होकर निकलते हैं। क्योंकि बाहर तो महिलाओं के लिए कहीं टॉयलेट हैं ही नहीं। किसी शोरूम या मॉल में शॉपिंग करने जाएं, तो वहां जरूर टॉयलेट मिल जाते हैं, लेकिन बाजारों में कहां महिला टॉयलेट मिलते हैं।

शिवानी शर्मा

आज शहर में कुछ जगह पिंक टॉयलेट देखने को मिलते हैं। लेकिन उनकी साफ-सफाई भी सवालों के घेरे में है। कहीं भी टॉयलेट साफ नहीं मिलते। ऐसे में इतने गंदे टॉयलेट्स में भला कौन जाएगा। इस ओर किसी का ध्यान भी नहीं है। जिससे छात्राओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। छात्रा या तो घर से फ्रेश होकर निकले, या फिर कॉलेज जाकर टॉयलेट का यूज कर सकती है।

सोनिया

नगर निगम जहां चाहे, वहां डलावघर तो बना सकता है। लेकिन, महिला टॉयलेट के लिए नगर निगम के सामने हमेशा दिक्कत रहती है। कभी उसे जमीन नहीं मिलती, तो कभी फंड नहीं मिलता। महिलाओं की इस समस्याओं की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। जबकि छात्राओं की आज की सबसे बड़ी जरूरत टॉयलेट है। स्कूल गोइंग स्टूडेंट्स ही समझ सकती हैं कि महिला टॉयलेट की रास्ते में कितनी जरूरत है। शहर में कहीं भी टॉयलेट की प्रॉपर व्यवस्था नहीं है।

उमरा खान

बदलते दौर में हर किसी की जीवनशैली में बदलाव हो रहा है। लोगों का खानपान भी बिगड़ रहा है। इसके चलते डायबिटीज आज सामान्य हो गई है। किसी में भी डायग्नोज हो सकती है। अब तो युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। डायबिटीज में बार-बार टॉयलेट जाना होता है। ऐसे में महिला को टॉयलेट को लेकर गंभीरता दिखाने की जरूरत है। लेकिन, न तो जिम्मेदार विभाग और न ही जनप्रतिनिधि इस ओर कोई ध्यान दे रहे हैं।

विनीता

पिछले कुछ वर्षो में शहर में बहुत कुछ बदल गया। आज सड़कों की स्थिति भले ही बदली हुई दिखती हो, लेकिन छात्रों की आज सबसे बड़ी मुश्किल की ओर किसी का ध्यान नहीं है। छात्राओं को अब भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और विभाग भी इस ओर चुप्पी साधे हुए बैठे हैं। इस ओर कोई ध्यान नहीं है। जिससे स्कूल जाने वाली छात्राएं अब भी मुश्किलों का सामना करती हैं।

दीपा

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कोट्स

- मेरे कॉलेज के रास्ते में कही भी टॉयलेट नजर नहीं आता। कॉलेज से घर की दूरी भी काफी दूर है। इस ओर कोई ध्यान भी नहीं देता।

छवि

- महिला टॉयलेट आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत और समस्या दोनों है। इस ओर कोई भी विभाग ध्यान नहीं दे रहा है।

काजल

- छात्राओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्कूल जाने वाली छात्राएं महिला टॉयलेट न होने के चलते काफी मुश्किल में रहती हैं।

हिमांशी

- शहर में महिला टॉयलेट की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। कहीं महिला टॉयलेट पर ताला लटका रहता है, तो कहीं गंदगी पसरी रहती है।

- नेहा