- चुनाव नजदीक आते ही सक्रिय होने लगते हैं विभिन्न क्षेत्रीय दल

- बड़ी पार्टियों के प्रत्याशियों के लिए डमी प्रत्याशी की निभाते हैं भूमिका

आगरा। न कोई रीति, न कोई नीति। जनसमस्याओं से सरोकार, न कोई एजेंडा तैयार। बावजूद इसके हर बार चुनावी समर में ताल ठोकने को तैयार। विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया समाप्त हो गई। मंगलवार को आखिरी दिन भी सैकड़ों की संख्या में प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया। इनमें क्षेत्रीय व स्थानीय स्तर की पार्टियों के प्रत्याशियों की संख्या भी अच्छी खासी रही। इनमें कुछ ऐसी पार्टियां हैं, जिनका चुनाव में ही अस्तित्व दिखाई देता है। इन पार्टियों के प्रत्याशी बड़ी पार्टियों के प्रत्याशियों के लिए डमी प्रत्याशी के रूप में भूमिका निभाते नजर आते हैं।

चुनावी समर पर ही नजर आते हैं झंडाबरदार

जिले में लगभग 16 राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी हर बार चुनावी समर में कूदने को तैयार रहते हैं। चुनाव खत्म होते ही वे गायब हो जाते हैं। ये राजनीतिक दल न तो कभी जनहित के मुद्दों को लेकर भूमिका अदा करते हैं और न ही स्थानीय से प्रदेश स्तर के मुद्दों से इन्हें कोई मतलब होता है। कभी जिला मुख्यालय पर एक दो दल ज्ञापन देते अवश्य दिख जाते हैं।

सौदेबाजी रहता है इनका उद्देश्य

ऐसे राजनीतिक दलों के प्रत्याशी बड़े राजनीतिक दलों के लिए डमी प्रत्याशी के रूप में कार्य करते हैं। ऐसे प्रत्याशी किसी भी विधानसभा क्षेत्र से नामांक न कर देते हैं। जातिवाद, खेमेवाद और व्यक्तिगत संबंधों का हवाला देकर बड़ी पार्टी के प्रत्याशियों के वोट बैंक को प्रभावित करते हैं। ऐसे में बड़ी पार्टी अमूमन भाजपा, सपा, बसपा व कांग्रेस जैसी पार्टियों के प्रत्याशी उनको चुनाव मैदान से हटने को कहते हैं, तो उसके एवज में नामांक न खर्चे समेत अन्य प्रकार के खर्चो का हवाला बढ़ा-चढ़ाकर देते हैं। फिर शुरू होती है सौदेबाजी। इसके बाद या तो नाम वापस ले लेते हैं, या फिर अपने झंडे के बैनर तले बड़ी पार्टी के प्रत्याशी का प्रचार करते नजर आते हैं। इसमें खास बात ये होती है, कि बड़ी पार्टियों के प्रत्याशी अपना चुनावी खर्च कम दिखाते हैं। इस बार भी आगरा में कई पार्टियों के ऐसे प्रत्याशी डमी पार्टी के प्रत्याशी की भूमिका के लिए तैयार हो रहे हैं।

60 फीसदी राजनीतिक दल नहीं लड़ते चुनाव

जानकारों की मानें तो 60 फीसदी राजनीतिक दलों ने यूपी चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करा लिया है, लेकिन ये चुनाव नहीं लड़ते हैं। ये दल केवल फाइलों में दौड़ रहे हैं। यूपी में 480 राजनीतिक दल पंजीकृत हैं, जिनमें आगरा में 16 राजनीतिक दल हैं। अब आयोग ऐसे राजनीतिक दलों की सूची तैयार कर रहा है। आयोग केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को पत्र लिखने पर विचार कर रहा है।

हर चुनावी सीजन में बढ़ता है दायरा

पिछले 12 वर्षो में राजनीतिक गलियारों में कई तरह के बदलाव हुए। वर्ष 90 के दौर से गठबंधन की राजनीति शुरु हुई। वर्ष 90 से 2000 तक देश-प्रदेश में गठबंधन की राजनीति हावी रही। केन्द्र की भाजपा नेतृत्व की सरकार में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 24 दलों से गठबंधन कर सरकार बनाई। इसके बाद क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक पार्टियों का दायरा बढ़ा। प्रदेश में वर्ष 2000 में 11 राजनीतिक दलों ने रजिस्ट्रेशन कराया। वर्ष 2005 में चार राजनीतिक दल पंजीकृत हुए। वर्ष 2012 में सबसे ज्यादा दल सक्रिय हुए।