आगरा। बाजार के लिए निकलते हैं, तो टारगेट तय करके जाते हैं कि कितने समय में वापस आना है। डर रहता है कि कहीं टॉयलेट न आ जाए। बाहर कहां जाएंगे। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के कार्यालय पहुंची विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की महिला पदाधिकारियों ने बेबाकी से राय रखी। एक्सक्यूजमी कैंपेन पर अपने विचार रखते हुए पब्लिक प्लेसेज पर टॉयलेट नहीं होने और बदहाल टॉयलेट की गंभीर स्थिति पर चिंता जताई।

मेंटीनेंस किया जाना जरूरी

सांसद की पत्नी मधु बघेल ने कहा कि महिला टॉयलेट की समस्या को भला हमसे ज्यादा अच्छे से कौन समझ सकता है। जब भी पॉलिटिकल कैंपेनिंग में जाते थे, पानी पीने से बचते थे। डर रहता था कि अगर पानी पीएंगे तो टॉयलेट जाना पड़ेगा। गांव या रास्ते में कहां टॉयलेट जाएंगे। लेकिन, केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन और खुले में शौच मुक्त अभियान छेड़ा तो टॉयलेट बने। शहर में विभिन्न प्रोजेक्ट्स के तहत भी पिंक टॉयलेट का निर्माण कराया गया है। हालांकि इसके मेंटीनेंस को लेकर कुछ समस्याएं हो सकती हैं। इस ओर आवाज उठाने की जरूरत है। इनरव्हील क्लब की डिस्ट्रिक्ट कोषाध्यक्ष और विभिन्न संस्थाओं से जुड़ी नीलू धाकरे ने कहा कि अगर प्रशासन महिलाओं के टॉयलेट का मेंटीनेंस करने में सक्षम नहीं है, तो सामाजिक संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंप दी जाए। वह इसका रखरखाव करेंगी।

बार-बार हो रहीं संक्रमित

डॉक्टर महिमा उपाध्याय ने बताया कि गंदे टॉयलेट महिलाओं को बीमार कर रहे हैं। हमारे पास ऐसी कई महिला पेशेंट्स आती हैं, जो यूरिन इंफेक्शन से पीडि़त होती हैं। दवा लेने के बाद वह ठीक हो जाती हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद वह फिर से दोबारा संक्रमित हो जाती हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह गंदे पब्लिक टॉयलेट हैं। घर से बाहर निकली वीमन को अगर टॉयलेट जाना हो तो वहां कहां जाए। वह मजबूरी में पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करती है और इंफेक्शन का शिकार हो जाती है। टॉयलेट निर्माण ही नहीं होना चाहिए, बल्कि टॉयलेट की साफ-सफाई को लेकर भी ध्यान देना चाहिए।

इस समस्या का हल निकलना जरूरी

भाजपा नेता व विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी बबीता चौहान ने कहा कि ये गंभीर मुद्दा है। इस पर जल्द से जल्द ध्यान देने की जरूरत है। अगर प्रशासन परमीशन दे, तो सामाजिक संस्थाएं इसका मेंटीनेंस करने को तैयार हैं। हम शहर के विभिन्न स्कूल्स में पहले से ही कई टॉयलेट का मेंटीनेंस और संचालन कर भी कर रहे हैं। महिलाओं की इस समस्या का हल निकलना बहुत जरूरी है।

सभी ने उठाई आवाज

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ऑफिस में आयोजित परिचर्चा में हर वर्ग से महिला पहुंची। इनमें डॉक्टर थीं, तो राजनीतिक क्षेत्र से जुड़ी महिला पदाधिकारी भी शामिल हुई। छात्रा भी थीं, तो सामाजिक संस्थाओं की पदाधिकारियों के साथ कानून की जानकारों ने भी अपनी राय रखी। सभी ने महिला टॉयलेट की शहर में मौजूदा स्थिति को लेकर चिंता जताई। जिम्मेदार विभागों से भी इस पर संज्ञान लेने के लिए कहा।

महिलाओं को पब्लिक प्लेस पर टॉयलेट के लिए भटकना पड़ता है। यहां पर या तो टॉयलेट नहीं होते हैं या फिर होते भी हैं तो वे उपयोग करने लायक हालत में नहीं होते हैं। हमें अभी जिला अस्पताल जाना पड़ा। वहां पर टॉयलेट की स्थिति काफी दयनीय थी। हमसे वहां पर पैसे भी लिए लेकिन टॉयलेट काफी गंदा था।

-डॉली सिंह, शीरोज हैंगआउट कैफे

महिलाओं के लिए टॉयलेट एक गंभीर मुद्दा है। पब्लिक प्लेस पर टॉयलेट न होने से प्रत्येक महिला को जूझना पड़ता है। लेकिन इसकी कोई बात नहीं करता है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने ये काफी अच्छी मुहिम चलाई है। इसके माध्यम से महिलाओं के इस मुद्दे को एक प्लेटफॉर्म मिलेगा।

-रुकैया खान, शीरोज हैंगआउट कैफे

मेरी उम्र 55 वर्ष है, महिलाओं को टॉयलेट की समस्या मैं हमेशा से देखती आ रही हूं। महिलाओं को टॉयलेट के लिए हमेशा जूझना पड़ता है। अभी मैं जिला अस्पताल गई वहां पर मुझे टॉयलेट यूज करना पड़ा। अस्पताल का टॉयलेट काफी गंदा था। इसके बाद मैं बाहर गई, वहां पर भी टॉयलेट काफी गंदा था।

-गीता, छांव फाउंडेशन

शहर में पब्लिक टॉयलेट की स्थिति काफी दयनीय है। बाजारों में यदि किसी को टॉयलेट जाना पड़ जाए तो वहां पर अवेलेबल नहीं होते हैं। यदि शहर में कई जगह पर टॉयलेट हैं भी तो वो काफी गंदे होते हैं। टॉयलेट के आस-पास के अराजकतत्वों का जमावड़ा होता है। ऐसे में महिलाएं टॉयलेट जाएं तो कैसे जाएं

-रूपा, छांव फाउंडेशन

महिलाओं को टॉयलेट की फैसिलिटी घर से बाहर मिलती ही नहीं है। महिलाएं जानती हैं कि उन्हें घर से बाहर टॉयलेट नहीं मिलेगा। ऐसे में वे घर से बाहर दो से तीन घंटे के लिए टारगेट बनाकर जाती हैं। क्योंकि उन्हें पता होता है कि वे जब तीन घंटे बाद आएंगी तो घर पर आकर ही टॉयलेट जाएंगी।

-अपर्णा राजावत, फाउंडर, पिंक बेल्ट मिशन

सार्वजनिक स्थलों पर टॉयलेट की हालत काफी खराब होती है। मैं तो इस पीड़ा को पिछले 30 साल से देख रही हूं। ग्रामीण क्षेत्रों में शौच के लिए जाती हुई महिलाओं और बच्चियों के साथ दुष्कर्म भी हो जाते हैं। मोदी जी ने इस मुद्दे को उठाया और अब देशभर में टॉयलेट बने हैं। शहरों में भी टॉयलेट बने हैं लेकिन उनके मेंटीनेंस के लिए हमें कुछ करना चाहिए।

-मधु बघेल, प्रेसिडेंट इनरव्हील क्लब

टॉयलेट के लिए ग‌र्ल्स को काफी जूझना पड़ता है। बाजारों में, स्कूलों में कॉलेजों में भी टॉयलेट की स्थिति काफी खराब होती है। मैं स्टूडेंट लीडर हूं और देख रही हूं कि ग‌र्ल्स को कॉलेज में भी टॉयलेट के लिए काफी परेशान होना पड़ता है। इसके लिए हम काफी आवाज उठाते हैं। लेकिन ऐसे मुद्दों को सुना नहीं जाता है।

-मान्या शर्मा, एनएसयूआई

दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की ये काफी अच्छी पहल है। महिलाओं के इस मुद्दे को उठाने के लिए दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट का धन्यवाद। इस मुहिम के साथ हम महिलाओं की बेसिक जरूरत और उनकी इज्जत की बात कर सकेंगे। मैं खुद कैंपेनिंग के लिए जाती हूं तो पानी कम पीती हूं, ताकि टॉयलेट न जाना पड़े।

-नीलू धाकरे, कोषाध्यक्ष, इनरव्हील क्लब

मेरी उम्र 72 साल है और मैं महिलाओं और लड़कियों के लिए बीते 36 साल से काम कर रही हूं। महिलाओं को पब्लिक प्लेस पर टॉयलेट के लिए हमेशा से परेशान होना पड़ता है। ये कोई नई समस्या नहीं है। हम हर जगह पर मैनेज करते हैं। लेकिन इस मुद्दे की कोई बात नहीं करता है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट द्वारा इस मुद्दे को उठाने के लिए धन्यवाद।

-विजय लक्ष्मी शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता

मैं पेशे से एक लॉयर हूं। मैं कई साल से महिलाओं को टॉयलेट के लिए परेशान होते हुए देखती हुई आई हूं। उन्हें टॉयलेट के लिए जूझना पड़ता है। शहर में टॉयलेट की स्थिति काफी दयनीय है। सामाजिक संस्थाओं को कुछ टॉयलेट्स को गोद लेना चाहिए, ताकि उनका मेंटीनेंस किया जा सके।

-प्रमिला शर्मा, सीनियर एडवोकेट

महिलाओं के लिए पब्लिक टॉयलेट की समस्या काफी बड़ी समस्या है। शहर में बीते कुछ साल में कई टॉयलेट्स बनाए गए हैं। लेकिन इनके मेंटीनेंस में दिक्कत है। इसके लिए अथॉरिटी और सामाजिक संस्थाओं को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इससे पब्लिक टॉयलेट की समस्या का समाधान हो सकता है।

-बबीता सिंह चौहान, महिला मोर्चा अध्यक्ष, ब्रज क्षेत्र, भाजपा