प्रयागराज ब्यूरो । भारत और तिरंगे व धार्मिक मसले को लेकर नफरत की आग भड़काने वाले चंद लोगों को जिले के आफताब आलम अंसारी से सबक लेनी चाहिए। छोटी कमाई होने के बावजूद अपने कार्यों व विचारों से आफताब लोगों के बीच चर्चा में बने हुए हैं। वह जेब से पैसा लगाकर पंद्रह अगस्त से पूर्व तिरंगा तैयार करते हैं। पंद्रह अगस्त के एक दिन पूर्व इस तिरंगे वे मुफ्त में गरीबों व उनके बच्चों के बीच बांटते हैं। देश भक्ति से ओत प्रोत आफताब तिरंगे के लिए किसी से भी एक रुपया नहीं लेते। टेलर का काम करने वाले आफताब नवरात्रि व कृष्ण जन्माष्टमी पर हिन्दू देवी देवताओं के लिए दिए गए कपड़ों की सिलाई भी फ्री में ही करते हैं। इन पर्वों पर उनसे देवी व देवताओं के लिए तमाम महिलाएं व पुरुष सिलने के कपड़े दे जाते हैं। आफताब की इनकम भले छोटी हो पर उनकी सोच और कार्य आसमां से कम नहीं है।

पंद्रह वर्षों से कर रहे यह काम
टेलर आफताब आलम अंसारी अटाला निवासी मो। नवाब अंसारी के बेटे हैं। वह कहते हैं कि पिता फुटपाथ पर कपड़े की दुकान लगाते हैं। मां रेयाजुन्निशा और नवाब की परवरिश में पले-बढ़े आफताब हाईस्कूल तक की शिक्षा ग्रहण किए। इसके बाद वह टेलर का काम सीखने लगे। काम सीखकर वह कल्याणी देवी में अपनी खुद की दुकान खोल दिए। बेटा आफताब अपना काम शुरू किया तो पिता ने उमरा से शादी कर दी। शादी के बाद आफताब पारिवारिक जिम्मेदारियों का फर्ज निभाते हुए संयुक्त परिवार में जीवन बसर कर रहे हैं। आफताब के दिल में भारत देश और यहां के तिरंगे के प्रति अगाध प्रेम है। शायद यही वजह है कि वह अपनी छोटी सी कमाई का पैसा लगाकर हर वर्ष तिरंगा बनाते हैं। तिरंगा बनाने के लिए कपड़ा चौक से खरीद कर लाते हैं, फिर उसे खुद ही सिलते हैं। आफताब बताते हैं कि तिरंगे पर चक्र की छपाई का काम उनकी पत्नी व मां एवं समय मिलने पर पिता भी करते हैं। एक अगस्त से ही वह तिरंगा की सिलाई का काम शुरू कर देते हैं। पंद्रह अगस्त के एक दिन पूर्व 14 अगस्त को वह तैयार तिरंगों को आसपास के गरीब बस्तियों व बच्चों के बीच फ्री में बांट देते हैं। आफताब कहते हैं कि परिवार चलाने के लिए उन्हें कपड़े भी सिलने होते हैं। इस लिए वह ज्यादा नहीं फिर भी दो से ढाई सौ तिरंगा तैयार कर लेते हैं। तिरंगे का पैसा वह किसी से भी एक रुपया नहीं लेते। आफताब कहते हैं कि कि यह काम वे करीब पंद्रह वर्षों से करते आ रहे हैं। इससे सुकून मिलता है। कहते हैं देश के लिए कुछ बड़ा नहीं कर सकता तो, जो काम कर सकते हैं वही कर रहे हैं।

नहीं लेते देवताओं के कपड़े की सिलाई
अटाला निवासी आफताब के पास नवरात्रि में देवी व जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के कपड़ों को सिलवाने के लिए महिलाओं की भीड़ लग जाती है। उन्हीं दिनों में लोगों के कपड़े भी खूब आते हैं। व्यस्तता होने के बावजूद वह देवी देवताओं के कपड़ों की सिलाई पहले किया करते हैं। इन देवी व देवताओं के कपड़ों की सिलाई आफताब एक भी रुपये नहीं लेते। कहते हैं कि कुछ लोग व महिला जबरन 51 या 151 रुपये दुकान में रखकर चली जाती हैं। उन पैसों से वह गरीबों की मदद कर दिया करते हैं। आफताब कहते हैं कि हम भगवान के कपड़ों की सिलाई का पैसा कैसे ले सकते हैं? उनके भी कपड़ों का पैसा ले लिए तो अल्लाह को क्या मुंह दिखाएंगे। एक सवाल के जवाब में आफताब ने कहा कि भाई, अल्लाह और भगवान सब एक ही हैं। बस देखने और समझने का अपना-अपना तरीका है।