इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में
Award ceremony in NCZCC
Allahabad:: संडे की शाम को जहां एक तरफ पूरा शहर बारिश में भीगा हुआ था, वहीं एनसीजेडसीसी में बैठे हुए आडियंस शायरी से सराबोर हो रहे थे। एक शायर आडियंस पर बिजली गिराता तो वहीं दूसरे तुरंत बारिश करवाने में मशगूल थे। कोई तूफानों से आंख मिचौली करवा रहा था तो कोई आडियंस को ख्वाबों में लिए चला जा रहा था। दरअसल, एनसीजेडसीसी में संडे को कैलाश गौतम सृजन संस्थान की तरफ से काव्य कुंभ आर्गनाइज किया गया था। इसमें पद्मभूषण गोपाल दास नीरज को सम्मानित किया गया। इस दौरान डॉ। उदय प्रताप सिंह, डॉ। राहत इंदौरी, विष्णु सक्सेना, प्रदीप चौबे जैसे फनकार भी मौजूद थे.
बारिश का खलल, पर रंग जमा जबरदस्त
संडे को हुई नॉन स्टॉप बारिश के चलते प्रोग्राम थोड़ा लेट हो गया था। लेकिन जहां शायर-कवियों ने माइक संभाला तो फिर ऐसा रंग जमा कि लेट नाइट तक आडियंस इसके सुरूर में डूबे रहे। देश के चुनिंदा फनकारों की इस महफिल में जिंदगी के हर रंग से आडियंस रुबरू हुए। उदय प्रताप ने जवानों की बात की तो सर्वेश अस्थाना ने नेताओं को निशाने पर लिया। इस प्रोग्राम की कुछ खास पेशकश आपके लिए।
पद्मभूषण गोपाल दास नीरज
1. अबके सावन में शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई.
2. इतने बदनाम हुए, हम तो इस जमाने में
तुमको लग जायेंगी सदियां हमें भुलाने में.
3. मैंने जिंदगी नहीं जी सभी की तरह
हर एक पल को जिया इक नई सदी की तरह.
डॉ। उदय प्रताप सिंह
सरहद की हिफाजत में जिनके सर गये
ये कहना गलत है, कि वो लोग मर गये.
जहां जाते हैं हम कोई कहानी छोड़ आते हैं
जरा सा प्यार थोड़ी सी जवानी छोड़ आते हैं.
कहानी राम की वनवासियों पर फख्र करती हैं
उसूलों के लिए जो राजधानी छोड़ जाते हैं
डॉ। राहत इन्दौरी
तूफानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़, तैर के दरिया पार करो.
डा। विष्णु सक्सेना
वो जो ख्वाबों में भी आ जाए तो मेला कर दे
गम के मरूस्थल में भी बरसात का रेला कर दे
याद वो है ही नहीं, आए तो मेले में अकेला कर दे
प्रदीप चौबे
आपका क्या ख्याल है साहब, हर तरफ गोलमाल है साहब
कल का भगुवा चुनाव जीता तो, आज भगवत दयाल है साहब
डा। सरिता शर्मा
रंग कुछ और ही चढ़ा होता, इक नया आचरण गढ़ा होता
तुमने गोकुल की गोपियों से अगर, प्रेम का व्याकरण पढ़ा होता.
सर्वेश अस्थाना
देश में नेताओं की संख्या सर्वाधिक है
इसीलिए उनका पंजा एक प्वाइंट अधिक है
आलोक श्रीवास्तव
न जीवन बचा है, न घर की निशानी
पहाड़ों पे टूटा, पहाड़ों का पानी
समीर शुक्ला
टिनक टिनक हर गंगा, टिनक टिनक हर गंगा
आम आदमी मर मर जाए, मौज उड़ाए लफंगा
गजेन्द्र सोलंकी
एक इतिहास रोज गढ़ता है
शूरवंशी से देश बढ़ता है
श्लेष गौतम
छुआ है कोई ना तो होगा पिता तुम्हारे बाद
पल पल तुमको याद कर रहा आज इलाहाबाद
नहीं हो तुम पर कविताएं तो करतीं हैं संवाद
बारिश का खलल, पर रंग जमा जबरदस्त
संडे को हुई नॉन स्टॉप बारिश के चलते प्रोग्राम थोड़ा लेट हो गया था। लेकिन जहां शायर-कवियों ने माइक संभाला तो फिर ऐसा रंग जमा कि लेट नाइट तक आडियंस इसके सुरूर में डूबे रहे। देश के चुनिंदा फनकारों की इस महफिल में जिंदगी के हर रंग से आडियंस रुबरू हुए। उदय प्रताप ने जवानों की बात की तो सर्वेश अस्थाना ने नेताओं को निशाने पर लिया। इस प्रोग्राम की कुछ खास पेशकश आपके लिए।
पद्मभूषण गोपाल दास नीरज
1. अबके सावन में शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई.
2. इतने बदनाम हुए, हम तो इस जमाने में
तुमको लग जायेंगी सदियां हमें भुलाने में.
3. मैंने जिंदगी नहीं जी सभी की तरह
हर एक पल को जिया इक नई सदी की तरह.
डॉ। उदय प्रताप सिंह
सरहद की हिफाजत में जिनके सर गये
ये कहना गलत है, कि वो लोग मर गये।
जहां जाते हैं हम कोई कहानी छोड़ आते हैं
जरा सा प्यार थोड़ी सी जवानी छोड़ आते हैं.
कहानी राम की वनवासियों पर फख्र करती हैं
उसूलों के लिए जो राजधानी छोड़ जाते हैं
डॉ। राहत इन्दौरी
तूफानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़, तैर के दरिया पार करो।
डा। विष्णु सक्सेना
वो जो ख्वाबों में भी आ जाए तो मेला कर दे
गम के मरूस्थल में भी बरसात का रेला कर दे
याद वो है ही नहीं, आए तो मेले में अकेला कर दे
प्रदीप चौबे
आपका क्या ख्याल है साहब, हर तरफ गोलमाल है साहब
कल का भगुवा चुनाव जीता तो, आज भगवत दयाल है साहब
डा। सरिता शर्मा
रंग कुछ और ही चढ़ा होता, इक नया आचरण गढ़ा होता
तुमने गोकुल की गोपियों से अगर, प्रेम का व्याकरण पढ़ा होता.
सर्वेश अस्थाना
देश में नेताओं की संख्या सर्वाधिक है
इसीलिए उनका पंजा एक प्वाइंट अधिक है
आलोक श्रीवास्तव
न जीवन बचा है, न घर की निशानी
पहाड़ों पे टूटा, पहाड़ों का पानी
समीर शुक्ला
टिनक टिनक हर गंगा, टिनक टिनक हर गंगा
आम आदमी मर मर जाए, मौज उड़ाए लफंगा
गजेन्द्र सोलंकी
एक इतिहास रोज गढ़ता है
शूरवंशी से देश बढ़ता है
श्लेष गौतम
छुआ है कोई ना तो होगा पिता तुम्हारे बाद
पल पल तुमको याद कर रहा आज इलाहाबाद
नहीं हो तुम पर कविताएं तो करतीं हैं संवाद