-25 साल से एक ही ढर्रे पर चल रहा उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग

-आपसी उठापटक, राजनैतिक दखल व कानूनी फंदे में फंसा आयोग

>vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, इलाहाबाद के दिन बहुरने का नाम नहीं ले रहे। यहां रोजगार के नाम पर बेरोजगारों को छला जा रहा है। मनमाने ढंग से विज्ञापन निकालने और नियुक्तियों के लिए विख्यात इस आयोग से जुड़ा नया मामला विज्ञापन संख्या ब्ब् एवं ब्भ् को रद्द कर दिए जाने का है। यह कोई पहला वाकया नहीं है जब आयोग की किसी वैकेंसी को रद्द किया गया है। इससे पहले भी कई ऐसे विज्ञापन हैं जिन्हें निरस्त किया गया है।

ख्008 से नियुक्तियों का टोटा

बता दें कि विज्ञापन संख्या ब्ब् का विज्ञापन जुलाई ख्008 में आया था। इसमें प्रवक्ता के भ्0भ् पद विज्ञापित किए गए थे। इसमें सामान्य के ख्भ्ख्, ओबीसी के क्फ्म्, अनुसूचित जाति के क्07 एवं अनुसूचित जनजाति के क्0 पद शामिल थे। इसके लिए लगभग ब्म्,000 आवेदन हुए थे। वहीं, विज्ञापन संख्या ब्भ् का विज्ञापन दिसम्बर ख्0क्0 में आया था। इसमें प्रवक्ता के भ्ब्म् पद शामिल थे। इसमें सामान्य के ख्7फ्, ओबीसी के क्ब्8, अनुसूचित जाति के क्क्ब् एवं अनुसूचित जनजाति के क्क् पद शामिल थे। इसके लिए लगभग तीस हजार आवेदन हुए थे।

सपनों पर फिर चुका है पानी

ऐसे में दोनों विज्ञापन के निरस्त हो जाने से सत्तर हजार से ज्यादा अभ्यर्थियों के सपनों पर पानी फिर गया है। यह जवाब देने वाला कोई नहीं है कि इन अभ्यर्थियों ने आवेदन के लिए जो शुल्क दिया था। उसका क्या होगा। आयोग का कहना है कि वह इसकी जगह पर नया विज्ञापन प्रकाशित करेगा जो निर्धारित अर्हताओं और मानकों के अनुरूप होगा। बता दें कि यह कोई पहला अवसर नहीं है जब आयोग ने अभ्यर्थियों के सपनों को कुचलने का काम किया है। इससे पहले भी आपसी उठापटक, राजनैतिक दखल और कानून के फंदे में फंसकर कई भर्तियां दम तोड़ चुकी हैं।

क्980 में हुआ था स्थापित

आयोग के इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि एक अक्टूबर क्980 में स्थापित उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में वर्ष क्98फ् से क्99फ् के बीच प्रवक्ता पदों के दस विज्ञापन हुए। इसमें ख्फ्म्भ् पद विज्ञापित हुए, लेकिन इनमें क्0भ्ख् प्रवक्ताओं का चयन हो सका। वर्ष क्99ब् से ख्00ख् तक नौ विज्ञापन हुए। इसमें ब्म्7ख् पद विज्ञापित हुए, जिसमें फ्ब्म्म् प्रवक्ताओं का चयन हो सका। इसके बाद वर्ष ख्00फ् और ख्00भ् में आए बैकलॉग के 8फ्8 और ख्8क् प्रवक्ता पदों पर चयन का विवाद हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंचा था। विज्ञापन संख्या ब्क् में विज्ञापित फ्8 विषयों के भ्भ्ख् प्रवक्ता पद एवं ब्ख् में बैकलॉग के फ्फ्7 पद भी विवादों से अछूते नहीं रहे।

प्रिंसिपल तक का चयन मुश्किल

वहीं, बात प्राचार्यो के चयन की करें तो अब तक आयोग द्वारा प्राचार्य के क्9 विज्ञापन दिए गए। इसमें विज्ञापन संख्या फ्फ्, फ्ब्, फ्भ् एवं फ्म् को न्यायालय ने आरक्षण को गलत ढंग से परिभाषित किए जाने के कारण निरस्त कर दिया। विज्ञापन संख्या ब्फ् को भी निरस्त किया जा चुका है। इसमें प्राचार्य के फ्ख् पद शामिल थे। पूर्व सदस्य डॉ। सैयद जमाल हैदर जैदी ने तत्कालीन अध्यक्ष डॉ। जे प्रसाद द्वारा प्रशासनिक पदों पर नियंत्रण किए जाने के लिए इसे निरस्त किए जाने की संस्तुति शासन से की थी।

खनकती थैलियों का बोलबाला

उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट है कि उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में शायद ही कोई ऐसी भर्ती हो जो आरोप प्रत्यारोपों से अछूती रही हो। इसके पीछे बड़ा कारण बीतते वक्त के साथ आयोग में सत्ताधारियों की दखल का बढ़ते जाना है। जिसमें योग्यता को दरकिनार करके अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्तियां सत्ता के गलियारों में खनकती थैलियों के दम पर की गई। हाल यह रहा कि पैसों का लेनदेन, चहेतों का चयन और नियमों की मनमानी व्याख्या आम बात होती चली गई। करेंट में कई सदस्य हैं जो हैं तो रीडर ग्रेड के, लेकिन वे भविष्य में प्रिंसिपल पद का इंटरव्यू लेने जा रहे हैं।

मानक ही बन गया मौका

आयोग के लिए इससे भी बुरा दौर तब शुरू हुआ जब वर्ष ख्00ब् में सदस्यों की नियुक्ति संबंधि मानकों में सातवां मानक जोड़ दिया गया कि राज्य सरकार की राय में वह व्यक्ति भी सदस्य बनाया जा सकता है, जिसका शिक्षा के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान हो। इससे हुआ यह कि हिस्ट्रीशीटर और सजायाफ्ता तक आयोग में सदस्य बना दिए गए। इसका एक बड़ा एग्जाम्पल हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका भी है जिसमें वर्तमान कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ। रामवीर सिंह यादव के बारे में कहा गया है कि वे खुद प्रिंसिपल के इंटरव्यू में चयनित नहीं हो सके थे तो उन्हें आयोग का सदस्य कैसे बना दिया गया। कोर्ट ने प्रमुख सचिव से इसकी जांच करवाकर हलफनामा दाखिल करने को कहा है।

इसलिए आई ये नौबत:::::::::

-प्रेसिडेंट और मेम्बर्स के बीच कम्युनिकेशन गैप

-एक दूसरे के राइट्स पर अतिक्रमण की कोशिश

-ज्यादातर एप्वाइंटमेंट में धांधली के आरोप

-नियुक्तियों को कोर्ट में चुनौती और पेंडिंग केसेज

-कमीशन में राजनैतिक दखल

-इम्प्लाइज और रिसोर्सेज की कमी

-कमीशन में स्पेस का भारी अभाव

-शासन और कमीशन में समन्वय का न होना आदि

वर्जन::::

विज्ञापन संख्या ब्ब् और ब्भ् को रद्द कर दिया गया है। विज्ञापन संख्या ब्फ् काफी पहले ही निरस्त की जा चुकी है।

डॉ। संजय कुमार सिंह, सचिव उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग