धारा को चाहिए अपनी धरा

Causes of food in city

Allahabad: नदियां अपना रास्ता कभी नहीं भूलतीं। धारा भले ही बदल जाए लेकिन, इस पर वे कब लौट आएंगी? यह कोई नहीं जानता। और, जब वे लौटेंगी तो क्या नतीजा सामने होगा? इसका जून महीने में उत्तराखंड में आई तबाही से बेहतर कोई एग्जाम्पल भी नहीं हो सकता। मंदाकिनी के रौद्र रूप के रास्ते में जो आया, बह गया। ठीक उसी रास्ते पर इलाहाबाद में गंगा हैं। करीब 35 साल पुराना इतिहास दोहराने की दहलीज पर पहुंच चुकी गंगा की धारा से जान-माल को नुकसान भले ही अभी ही कम हुआ हो लेकिन, खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है.

मंदाकिनी लौटी थी पुराने रास्ते पर

इसी साल जून में उत्तराखंड में बाढ़ से भारी तबाही हुई थी। प्रलय थमने के बाद जो इसके पीछे के जो कारण सामने आए वह चौंकाने वाले थे। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के साथ नदियों का पुरानी धारा पर लौटना बड़ा कारण बना। नदियों के रास्ता बदल लेने से इस धारा पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स और मार्केट बस गए। घाटी के नजदीक बना केदारनाथ मंदिर काफी पुराना है और उसकी नींव भी मजबूत है। यही कारण था कि बादल फटने से आई बाढ़ में उसे कोई हानि नहीं पहुंची। मंदिर के आसपास पहाड़ों से आकर घाटी में बसे लोगों को मंदाकिनी ने तबाह कर दिया। एक्सपर्ट बताते हैं कि पहले दर्शनार्थी पहाड़ों पर जाकर रुकते थे लेकिन रामबाड़ा बाजार बसने के बाद वह यहां ठहरने लगे। इस बाढ़ में रामबाड़ा बाजार की 90 धर्मशाला सहित चंद्रापुरी और अगत्स्य मुनि का बड़ा हिस्सा भी तबाह हो गया। इतना ही नहीं अलकनंदा और भागीरथी नदी के आसपास बसे लोग भी इस बाढ़ में बह गए। कारण सिर्फ इतना है कि लोगों ने इन नदियों के चैनल को डिस्टर्ब किया और जब नदियां वापस अपने रास्ते पर लौटीं तो उन्हें प्रलय का सामना करना पड़ा। छह हजार लोगों को जान गंवानी पड़ी और तीन हजार अभी भी लापता हैं.

35 साल पुरानी हकीकत से सामना

शहर के कछारी इलाकों में पहले गांव हुआ करते थे। 1978 में आई बाढ़ का पानी ममफोर्डगंज तक पहुंच गया था। जार्जटाउन और टैगोर टाउन बारिश का पानी न निकल पाने की वजह से बाढ़ की चपेट में आ गए थे। इस बार भी पानी लगभग उतना ही है। कछार पूरी तरह से डूब चुका है और पॉश इलाकों में खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के एक्स एचओडी प्रो। बीएन मिश्रा बताते हैं कि नदियां लंबे समय अंतराल में अपना रास्ता बदलती हैं। लेकिन, इसका यह मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि वह पुराने रास्ते को भूल जाती हैं। वह पुराने रास्ते पर लौटती जरूर हैं। पूर्व में गंगा नदी भारद्वाज आश्रम, जार्जटाउन, टैगोर टाउन होते हुए किले के नजदीक से गुजरती थी। झूंसी साइड उनका फैलाव हो जाने की वजह से लोगों ने बघाड़ा, गोविंदपुर, राजापुर कछार, ढरहरिया, बेली गांव आदि निचले इलाकों में धड़ल्ले से मकान बनवा लिए। बकौल प्रो। मिश्रा, इस बार शत-प्रतिशत बारिश हुई तो सहायक नदियों का पानी भी गंगा में आ गया। नतीजा सामने है। गंगा नदी में पानी बढ़ा तो उसका दायरा भी बढ़ गया और वह उन इलाकों में पहुंच गया जहां पानी आने के आसार थोड़े कम थे। वैसे बरसात के दिनों में पानी इस एरिया में अक्सर आता था लेकिन उसका स्वरूप इतना भयावह नहीं होता था। इसे से लोगों ने बाढ़ के खतरे को अवॉयड किया. 

फिर भी नहीं लिया सबक

इसके पहले 1978 में हुई जोरदार बारिश के बाद गंगा-यमुना में बाढ़ आने से वही इलाके प्रभावित हुए थे, जो इस बार हुए हैं। फिर भी लोगों ने सबक नहीं लिया। उस दौरान छह सितंबर को दस सेमी। प्रति घंटे की रफ्तार से गंगा नदी के बढऩे पर प्रशासन के कान खड़े हो गए थे। छतनाग के पास खतरे के निशान से गंगा के एक मीटर ऊपर हो जाने से दारागंज, ममफोर्डगंज, बाघम्बरी, नेवादा, चांदपुर, अल्लापुर, बघाड़ा, रसूलाबाद, राजापुर, सलोरी का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया था। हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस गिरधर मालवीय बताते हैं कि यही हाल यमुना के भी थे। शहर को बचाने के लिए यमुना बांध को आनन-फानन में ऊंचा किया गया तरे बलुआघाट, मिंटो पार्क सहित नैनी में जलभराव हो गया। वह कहते हैं कि उस दौरान कछार इलाकों में इतना अतिक्रमण नहीं हुआ था इसलिए कम नुकसान हुआ था लेकिन अब हालात बदल गए हैं। प्रशासन द्वारा लगाम नहीं लगाने से खतरनाक हालात पैदा होते जा रहे हैं. 

इस बार तबाह हुए इलाके

गंगा नदी- सलोरी, शिवकुटी, छोटा बघाड़ा, ढरहरिया, गंगानगर, पीतांबरनगर, बेली गांव, गौसनगर, रसूलाबाद, जोधवल, मेहंदौरी, बख्शीखुर्द, बख्शीकला, दारागंज, म्योराबाद, शंकरघाट, अशोक नगर आदि.

यमुना नदी- गऊघाट, बलुआघाट, कटेहरा, सदियापुर, ककरहा घाट, करेलाबाग, करेली, शम्स नगर, जेके नगर आदि.

बढ़ गया है शहर के सिपाही पर खतरा

अकबर के जमाने में बना बख्शी बांध बाढ़ के मामले में आधे शहर के लिए सिपाही के रोल में है। यह बांध न होता तो दारागंज, आलोपीबाग और अल्लापुर की बात ही छोडि़ए बैरहना और रामबाग तक पानी-पानी होता। इतना महत्वपूर्ण बांध होने के बाद भी अब इसे भी नुकसान पहुंचने लगा है। इसके पीछे एक कारण अतिक्रमण है और दूसरा कारण सब्जी मंडी। मंडी का सड़ा-गला माल तो खुले में फेंक ही दिया जाता है यहां चूहों के लिए खाद्य सामग्री हमेशा मौजूद रहती है। यही कारण है कि यहां बड़ी संख्या में चूहे पैदा हो गए। खाने का सामान मिल गया तो रहने की जगह भी चाहिए, तो उन्होंने बंधे को ही खोखला करना शुरू कर दिया। एसटीपी तटबंध टूटने के बाद एडमिनिस्टे्रशन का ध्यान भी इस ओर गया है। यह खतरे का बड़ा संकेत है। इसके साल्यूशन पर काम होना जरूरी है. 

और खतरा टल गया

अल्लापुर सहित आसपास के इलाकों पर मंडरा रहा बाढ़ का खतरा फिलहाल टल चुका है। सेना द्वारा कमान संभालने के बाद सलोरी एसटीपी के तटबंध की मरम्मत मंडे को पूरी हो गई। नदियों का जलस्तर स्थिर हो जाने के बाद निचले इलाकों पर रहने वालों ने भी राहत की सांस ली है। सलोरी एसटीपी तटबंध मरम्मत कार्य में लेफ्टिनेंट कर्नल सुंदरेशन सिंह के साथ सेना के 60 जवानों सहित तीन ऑफिसर्स व तीन जेसीओ ने कमाल संभाल रखी है। डीएम ने बताया कि बख्शी बांध पंपिंग स्टेशन पर पानी निकासी के लिए कुल चार पंप लगाए गए हैं। उधर, बाढ़ नियंत्रण अधिकारी जेपी वर्मा ने बताया कि गंगा और यमुना का जलस्तर स्थिर हो चुका है। कभी भी इनका पानी घटना शुरू हो सकता है। उधर शहर के सबसे नजदीक प्वाइंट चिल्ला में सुबह नौ बजे यमुना का पानी एक मीटर नीचे आ चुका था। जबकि केन नदी का जलस्तर चार मीटर डाउन हो चुका है। इसके चलते ऑफिसर्स ने राहत की सांस ली है। उनका कहना है कि यह हालात स्थिति के सामान्य होने की ओर इशारा कर रहे हैं। हालांकि बेली गांव से सटे इलाकों में मंडे को गंगा के पानी का दोपहर तक बढऩा जारी था। दोनों नदियां अभी भी खतरे के निशान से काफी ऊपर चल रही हैं.

Monday को water level  

फाफामऊ- 86.830 मीटर
छतनाग- 86.040 मीटर
नैनी- 86.600 मीटर

फिलहाल तो हमारा पूरा ध्यान एसटीपी तटबंध के मरम्मत पर लगा हुआ है। बाढ़ का सीजन निकल जाने के बाद सब्जी मंडी के मैटर पर सोचा जाएगा। चूहे बख्शी बांध को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बाढ़ के खतरे को देखते हुए इस पर कोई न कोई डिसीजन जरूर लिया जाएगा.
राजशेखर, डीएम
मंदाकिनी लौटी थी पुराने रास्ते पर

इसी साल जून में उत्तराखंड में बाढ़ से भारी तबाही हुई थी। प्रलय थमने के बाद जो इसके पीछे के जो कारण सामने आए वह चौंकाने वाले थे। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के साथ नदियों का पुरानी धारा पर लौटना बड़ा कारण बना। नदियों के रास्ता बदल लेने से इस धारा पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स और मार्केट बस गए। घाटी के नजदीक बना केदारनाथ मंदिर काफी पुराना है और उसकी नींव भी मजबूत है। यही कारण था कि बादल फटने से आई बाढ़ में उसे कोई हानि नहीं पहुंची। मंदिर के आसपास पहाड़ों से आकर घाटी में बसे लोगों को मंदाकिनी ने तबाह कर दिया। एक्सपर्ट बताते हैं कि पहले दर्शनार्थी पहाड़ों पर जाकर रुकते थे लेकिन रामबाड़ा बाजार बसने के बाद वह यहां ठहरने लगे। इस बाढ़ में रामबाड़ा बाजार की 90 धर्मशाला सहित चंद्रापुरी और अगत्स्य मुनि का बड़ा हिस्सा भी तबाह हो गया। इतना ही नहीं अलकनंदा और भागीरथी नदी के आसपास बसे लोग भी इस बाढ़ में बह गए। कारण सिर्फ इतना है कि लोगों ने इन नदियों के चैनल को डिस्टर्ब किया और जब नदियां वापस अपने रास्ते पर लौटीं तो उन्हें प्रलय का सामना करना पड़ा। छह हजार लोगों को जान गंवानी पड़ी और तीन हजार अभी भी लापता हैं।

35 साल पुरानी हकीकत से सामना

शहर के कछारी इलाकों में पहले गांव हुआ करते थे। 1978 में आई बाढ़ का पानी ममफोर्डगंज तक पहुंच गया था। जार्जटाउन और टैगोर टाउन बारिश का पानी न निकल पाने की वजह से बाढ़ की चपेट में आ गए थे। इस बार भी पानी लगभग उतना ही है। कछार पूरी तरह से डूब चुका है और पॉश इलाकों में खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के एक्स एचओडी प्रो। बीएन मिश्रा बताते हैं कि नदियां लंबे समय अंतराल में अपना रास्ता बदलती हैं। लेकिन, इसका यह मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि वह पुराने रास्ते को भूल जाती हैं। वह पुराने रास्ते पर लौटती जरूर हैं। पूर्व में गंगा नदी भारद्वाज आश्रम, जार्जटाउन, टैगोर टाउन होते हुए किले के नजदीक से गुजरती थी। झूंसी साइड उनका फैलाव हो जाने की वजह से लोगों ने बघाड़ा, गोविंदपुर, राजापुर कछार, ढरहरिया, बेली गांव आदि निचले इलाकों में धड़ल्ले से मकान बनवा लिए। बकौल प्रो। मिश्रा, इस बार शत-प्रतिशत बारिश हुई तो सहायक नदियों का पानी भी गंगा में आ गया। नतीजा सामने है। गंगा नदी में पानी बढ़ा तो उसका दायरा भी बढ़ गया और वह उन इलाकों में पहुंच गया जहां पानी आने के आसार थोड़े कम थे। वैसे बरसात के दिनों में पानी इस एरिया में अक्सर आता था लेकिन उसका स्वरूप इतना भयावह नहीं होता था। इसे से लोगों ने बाढ़ के खतरे को अवॉयड किया. 

फिर भी नहीं लिया सबक

इसके पहले 1978 में हुई जोरदार बारिश के बाद गंगा-यमुना में बाढ़ आने से वही इलाके प्रभावित हुए थे, जो इस बार हुए हैं। फिर भी लोगों ने सबक नहीं लिया। उस दौरान छह सितंबर को दस सेमी। प्रति घंटे की रफ्तार से गंगा नदी के बढऩे पर प्रशासन के कान खड़े हो गए थे। छतनाग के पास खतरे के निशान से गंगा के एक मीटर ऊपर हो जाने से दारागंज, ममफोर्डगंज, बाघम्बरी, नेवादा, चांदपुर, अल्लापुर, बघाड़ा, रसूलाबाद, राजापुर, सलोरी का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया था। हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस गिरधर मालवीय बताते हैं कि यही हाल यमुना के भी थे। शहर को बचाने के लिए यमुना बांध को आनन-फानन में ऊंचा किया गया तरे बलुआघाट, मिंटो पार्क सहित नैनी में जलभराव हो गया। वह कहते हैं कि उस दौरान कछार इलाकों में इतना अतिक्रमण नहीं हुआ था इसलिए कम नुकसान हुआ था लेकिन अब हालात बदल गए हैं। प्रशासन द्वारा लगाम नहीं लगाने से खतरनाक हालात पैदा होते जा रहे हैं. 

इस बार तबाह हुए इलाके

गंगा नदी- सलोरी, शिवकुटी, छोटा बघाड़ा, ढरहरिया, गंगानगर, पीतांबरनगर, बेली गांव, गौसनगर, रसूलाबाद, जोधवल, मेहंदौरी, बख्शीखुर्द, बख्शीकला, दारागंज, म्योराबाद, शंकरघाट, अशोक नगर आदि।

यमुना नदी- गऊघाट, बलुआघाट, कटेहरा, सदियापुर, ककरहा घाट, करेलाबाग, करेली, शम्स नगर, जेके नगर आदि।

बढ़ गया है शहर के सिपाही पर खतरा

अकबर के जमाने में बना बख्शी बांध बाढ़ के मामले में आधे शहर के लिए सिपाही के रोल में है। यह बांध न होता तो दारागंज, आलोपीबाग और अल्लापुर की बात ही छोडि़ए बैरहना और रामबाग तक पानी-पानी होता। इतना महत्वपूर्ण बांध होने के बाद भी अब इसे भी नुकसान पहुंचने लगा है। इसके पीछे एक कारण अतिक्रमण है और दूसरा कारण सब्जी मंडी। मंडी का सड़ा-गला माल तो खुले में फेंक ही दिया जाता है यहां चूहों के लिए खाद्य सामग्री हमेशा मौजूद रहती है। यही कारण है कि यहां बड़ी संख्या में चूहे पैदा हो गए। खाने का सामान मिल गया तो रहने की जगह भी चाहिए, तो उन्होंने बंधे को ही खोखला करना शुरू कर दिया। एसटीपी तटबंध टूटने के बाद एडमिनिस्टे्रशन का ध्यान भी इस ओर गया है। यह खतरे का बड़ा संकेत है। इसके साल्यूशन पर काम होना जरूरी है. 

और खतरा टल गया

अल्लापुर सहित आसपास के इलाकों पर मंडरा रहा बाढ़ का खतरा फिलहाल टल चुका है। सेना द्वारा कमान संभालने के बाद सलोरी एसटीपी के तटबंध की मरम्मत मंडे को पूरी हो गई। नदियों का जलस्तर स्थिर हो जाने के बाद निचले इलाकों पर रहने वालों ने भी राहत की सांस ली है। सलोरी एसटीपी तटबंध मरम्मत कार्य में लेफ्टिनेंट कर्नल सुंदरेशन सिंह के साथ सेना के 60 जवानों सहित तीन ऑफिसर्स व तीन जेसीओ ने कमाल संभाल रखी है। डीएम ने बताया कि बख्शी बांध पंपिंग स्टेशन पर पानी निकासी के लिए कुल चार पंप लगाए गए हैं। उधर, बाढ़ नियंत्रण अधिकारी जेपी वर्मा ने बताया कि गंगा और यमुना का जलस्तर स्थिर हो चुका है। कभी भी इनका पानी घटना शुरू हो सकता है। उधर शहर के सबसे नजदीक प्वाइंट चिल्ला में सुबह नौ बजे यमुना का पानी एक मीटर नीचे आ चुका था। जबकि केन नदी का जलस्तर चार मीटर डाउन हो चुका है। इसके चलते ऑफिसर्स ने राहत की सांस ली है। उनका कहना है कि यह हालात स्थिति के सामान्य होने की ओर इशारा कर रहे हैं। हालांकि बेली गांव से सटे इलाकों में मंडे को गंगा के पानी का दोपहर तक बढऩा जारी था। दोनों नदियां अभी भी खतरे के निशान से काफी ऊपर चल रही हैं।

Monday को water level  

फाफामऊ- 86.830 मीटर

छतनाग- 86.040 मीटर

नैनी- 86.600 मीटर

फिलहाल तो हमारा पूरा ध्यान एसटीपी तटबंध के मरम्मत पर लगा हुआ है। बाढ़ का सीजन निकल जाने के बाद सब्जी मंडी के मैटर पर सोचा जाएगा। चूहे बख्शी बांध को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बाढ़ के खतरे को देखते हुए इस पर कोई न कोई डिसीजन जरूर लिया जाएगा।

राजशेखर, डीएम

Report by-Vineet Tiwari