प्रयागराज (ब्‍यूरो)। सरकार के आंख-कान व नाक कहे जाने वाले अफसर 'मुदहु आंख कतहु कुछ नाहीÓ के फार्मूले पर हैं। इसकी एक बानगी आस्था और विश्वास के महासागर संगम तट पर देखी जा सकती है। माघ मेला के खत्म होते ही इन अफसरों देश व विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की कोई चिंता नहीं हैं। जबकि यहां इस धर्म भूमि के रेत पर संगम में डुबकी लगाने वाले पुरुष व महिला भक्तों की भीड़ लगी रहती है। बावजूद इसके यहां पर टॉयलेट तो दूर यूरिनल बेसिन प्लेस व महिलाओं के लिए चेजिंग रूम कहीं नहीं हैं। ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा परेशानी संगम तट पर स्नान के लिए आने वाली महिला श्रद्धालुओं को हो रही है।

महिला स्नानार्थियों को ज्यादा दिक्कत
तीर्थों का राजा कहे जाने वाले प्रयाग यानी संगम तट पर हर रोज श्रद्धालुओं से गुलजार रहता है। यहां पर आने वाले पुरुष व महिला श्रद्धालु सिर्फ देश के ही नहीं विदेशी भी होते हैं। हजारों किलो मीटर दूर से चलकर आए इन श्रद्धालुओं को यहां संगम तट पर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा परेशानी संगम एरिया में तट से दूर भी कहीं टॉयलेट व यूरिनल बेसिन प्वाइंट नहीं है। इतना ही नहीं घाट के आस पास स्नान करने वाली महिलाओं के लिए चेंजिंग रूम तक की व्यवस्था नहीं है। हालांकि चेजिंग रूम की यह समस्या टॉयलेट और यूरिनल बेसिन व प्लेस के अतिरिक्त है। बताते चलें कि यह हाल उस स्थिति में है जब प्रदेश सरकार यहां श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर लाखों व करोड़ों रुपये खर्च कर रही। पिछले वर्ष माघ मेला में यहां पर यह सारी व्यवस्थाएं की गई थीं। माघ मेला के समाप्त होने ही सारी व्यवस्थाएं खुद मेला प्रशासन के द्वारा समाप्त कर दी गईं। अधिकारियों को इस बात का तनिक भी ध्यान नहीं कि यहां श्रद्धालुओं का आवागमन बराबर बना रहता है। लिहाजा टॉयलेट व यूरिनल प्वाइंट एवं महिला स्थानार्थियों के लिए बनाए गए चेजिंग रूम को नहीं हटाया जाय।

आप्शन तो मौजूद है पर टेंशन ले कौन?
संगम तट से थोड़ी दूर ही सही माघ मेला प्राधिकरण के पास चेजिंग रूम व टायलेट बनाने का आप्शन अब भी है। क्योंकि इसके लिए उन्हें किसी भी सामान को खरीदने की जरूरत नहीं है। सारा कुछ विभाग के पास मेला का पड़ा है। बस चंद कर्मचारियों को लगाकर उसे संगम किनारे सेट करने की जरूरत है। रही बात इन सामानों के सुरक्षा की तो घाट पर मौजूद पण्डा समाज के साथ बैठक करके यह जिम्मेदारी उन्हें अधिकारी सौंप सकते हैं। चूंकि पण्डा समाज के पास ही श्रद्धालु आते हैं और सुविधा उन्हीं के काम आएगी लिहाज व उसकी हिफाजत खुद का सामान समझ कर कर सकते हैं।

संगम पर हर रोज श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। बावजूद इसके माघ मेला खत्म होते ही बनाए गए टॉयलेट व चेजिंग रूम को हटा दिया गया है। ऐसी स्थिति महिला स्नानार्थियों की समस्या को देखते हुए हम खुद एक चेजिंग रूम सरपत से बनवा दिए हैं। जिसका कोई चार्ज नहीं लेते।
मगन निषाद, नाविक संघ महामंत्री

बेशक, संगम तट पर महिला स्नानार्थियों के लिए चेजिंग रूम व एक कम से कम चार पांच अस्थाई टॉयलेट की व्यवस्था तो होनी ही चाहिए। इसके बगैर यहां आने वाले श्रद्धालुओं को काफी दिक्कत हो रही है। मेला प्रशासन चाहे तो यह इंतजाम करना कोई बड़ी बात नहीं है।
मुन्नू पांडेय, तीर्थ पुरोहित

हम यहां मिन्नत पूरी करने के लिए आए हैं। मूल रूप से हम गुजरात के हैं। मगर शादी के बाद लंदन के वेम्बली में शिफ्ट हो गए। अभी लंदन से ही इधर आए। यहां वैसे तो सारी व्यवस्था ठीक है, बस एक चेंजिंग रूम व टॉयलेट और यूरिनल प्लेस होना चाहिए।
भावना, गुजरात

संगम तट या आसपास टॉयलेट व चेजिंग रूम जैसी कोई व्यवस्था अब नहीं है। प्रशासन मेला के समय एक महीने के लिए सारा इंतजाम करता है। चूंकि यजमान व श्रद्धालु हजारों मील दूर से आते हैं। इस लिए यहां कम से कम महिला श्रद्धालुओं के लिए चेजिंग रूम की व्यवस्था देना हमारी मजबूरी है।
रामेश्वरनाथ पांडेय, तीर्थ पुरोहित