प्रयागराज (ब्‍यूरो)। दीपावली हो या फिर नवरात्रि जैसे अन्य पर्व, फूलों की डिमांड बढ़ ही जाती है। मगर, क्या आप जानते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर फूल कहां से आता है। यदि नहीं तो दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की यह पूरी रिपोर्ट जरूर पढि़ए। क्योंकि जो बातें हम बताने जा रहे हैं उसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे। फिर आप नैनी क्षेत्र को नैनी नहीं, बल्कि फूलों का कटोरा कहने से खुद को नहीं रोक पाएंगे। आप को हैरानी होगी कि फूलों के इस कटोरे यानी नैनी एरिया में देशी गुलाब और गेंदा की बड़े पैमाने पर खेती होती है। फूलों की खेती करने वाले किसान यहां थोक में तो बेचते ही हैं, शहर व आसपास के एरिया में फूल का फुटकर व्यवसाय भी करते हैं। हर साल यहां करीब एक से डेढ़ करोड़ रुपये का फूल कारोबार सारे किसान मिलकर करते हैं।

500 बीघे से अधिक होती है खेती
नैनी व क्षेत्र के मड़ौका, महेवा से लेकर हंडिया व करछना तक देशी गुलाब और गेंदा खेती बड़े पैमाने पर होती है। गेंदा में सबसे ज्यादा यहां जाफरी वैरायटी की पैदावार है। फूलों की खेती से इन क्षेत्रों की वादियों दमक रही हैं। फूल किसान नौसे माली व सीबू माली बताते की मानें तो यहां फूल की खेती करीब 500 बीघा से भी ज्यादा एरिया में होती है। यह बात दीगर है कि फूल के यह खेत अलग-अलग स्थानों पर हैं। कहते हैं कि वह खुद करीब डेढ़ बीघा में देशी गुलाब और गेंदा की खेती करते हैं। जबकि इतना ही खेत 20 से 25 हजार रुपये साला पर लेकर फूल लगा रखे हैं। प्रयागराज नैनी के देशी गुलाब व गेंदा की महक दूसरे जनपदों जैसे भदोही, मीरजापुर, वाराणसी, चित्रकूट, बांदा, कौशाम्बी, फतेहपुर, कानपुर व प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, जौनपुर व लखनऊ तक पहुंची है। यहां के देशी गुलाब के फूलों की खुशबू काफी अच्छी होती है। शायद यही कारण है कि इसकी डिमांड गैर जनपदों में भी काफी अधिक है।

बे-भाव होते हैं साबुत व स्टिक गुलाब

किसान कहते हैं कि धीरे-धीरे नैनी, मड़ौका व महेवा सहित करछना आदि इलाकों में के किसान परंपरागत खेती से हटकर फूल बागवानी यानी खेती की ओर बढ़ रहे हैं। बताते हैं कि फूलों का रेट उसकी वैरायटी पर निर्भर करता है। इस लिए फूलों की तुड़ाई के वक्त विशेष ध्यान देना पड़ा है। फूलों की तुड़ाई के बाद उसे उसकी छटाई की जाती है। डैमेज और साबुत फूलों को अलग किया जाता है। रेड कोई फिक्स नहीं होता। फूलों का रेट डिमांड और उपज और पर्वों के आधार पर डिपेंड होता है। साबुत और चमकदार देशी गुलाब की कीमत हमेशा सबसे अच्छी मिलती है। डैमेज फूल भी बिकते हैं मगर उसकी कीमत बहुत ज्यादा नहीं मिलती। देशी गुलाब कुंतल व किलो के हिसाब से बेचे जाते हैं। जबकि स्टिक यानी टहनी युक्त गुलाब साबुत से भी महंगा बिकता है। टहनी युक्त गुलाब को ज्यादातर किसान 10 से 12 रुपये पीश बेचते हैं। इसकी खपत ज्यादातर वेलेनटाइन-डे पर या फिर टूरिस्ट प्लेस जैसे वाराणसी, आगरा या चित्रकूट, अयोध्या जैसे क्षेत्रों में अधिक होती होती है। उपहार स्वरूप भेंट किए जाने वाले बुकें में भी इसका प्रयोग अच्छे से किया जाता है। यही वजह है कि स्टिक गुलाब की कीमत ज्यादा होती है। टहनी समेत गुलाब तोडऩे पर किसानों का नुकसान भी काफी होता है। टहनी टूट जाने पर नए कल्ले तैयार होने में वक्त लगते हैं।

जानिए किसानों का मार्केटिंग प्लान
फूलों का कटोरा कहलाने वाले नैनी एरिया में फूल की खेती करने वालों का मार्केटिंग मैनेजमेंट जानकर आप चौंक जाएंगे।
नैनी इलाके के फूल व्यापारियों के ग्राहक गैर जनपदों में सेट हैं, मोबाइल खरीदार डिमांड मैसेज किसान को भेजते हैं।
डिमांड के अनुरूप किसान गुलाब व गेंदा की खेत से तुड़ाई करके पहले धुलाई करते हैं। इसके पानी से भीगे हुए कपड़े में बांध कर वजन किया जाता है।
फिर फूलों के गट्ठर पर डिमांड करने वाले व्यापारी व जिले एवं मार्केट की स्लिप लगाई जाती है। फिर डीसीएम या ट्रक में लादकर भेज दिया जाता।
ट्रक या डीसीएम चालकों को मालूम होता है कि उन्हें फूल कहां उतारना है। वह जाकर व्यापारी के स्थान पर फूल उतार देते हैं। पैसों का हिसाब व लेनदेन ऑनलाइन या फिर खुद व्यापारी आकर करते हैं। फूल की खेती करने वाले तमाम किसान थोक के साथ लोकल मार्केट में फुटकर भी व्यवसाय करते हैं।

बाहर से प्रयाग आते हैं यह पुष्प
किसान और व्यापारियों की मानें तो उन्हें देशी गुलाब और गेंदा तो अपने यहां व खेत में ही मिल जाते हैं। जबकि कंसरइया छोटे-छोटे पीला फूल और रजनी की ज्यादातर खेप वाराणसी से आती है। इसी तरह गुलसुपारी पुष्प कानपुर, डेंज गेंदा भी यहां वाराणसी से ही काफी आता है। गुलदाउदी नामक पुष्प प्रयागराज सहित अन्य जनपदों में ग्वालियर, मुंबई, कोलकाता, इंदौर जैसे शहरों से आते हैं। इस पुष्प की खतप यहां शादी विवाह के सीजन में अधिक होती है। क्योंकि यह मंच सजावट में काम आता है। टाटा गुलाब खेत यहां लखनऊ, ग्वालियर से ज्यादा आती है।

हमारा करीब दो बीघे में फूल की खेती किए हैं। हमारी बागवानी मड़ौका व महेवा में है। हमारे खेत यानी बाग के तैयार गेंदा व गुलाब के पुष्प ज्यादातर प्रतापगढ़, मीरजापुर व भदोही जाते हैं। कुछ फुटकर लोकल व्यापारी भी खरीद लेते हैं। हमारी खुद भी फूल की दुकान है।
एजाज अहमद, माली

फूलों की खेती में आलू व गेहूं जैसी परंपरागत तरीकों से हटकर होती है। हम अपने महेवा स्थित खेत में आलू की बुवाई कराते थे। मेहनत अधिक और इनकम कम देखकर फूल की खेती शुरू किए। फूल के पौधों की सिंचाई गुड़ाई और देखरेख बराबर होती रहे तो अच्छी फसल मिल जाती है। गुलाब तो एक बार रोपित करने के बाद पूरे साल भर फूल देते हैं।
मो। इरशाद, माली