प्रयागराज ब्यूरो । इस साल भी शहर में पटाखों का बाजार करोड़ों रुपए का बताया जा रहा है। इस बार भी अधिक आवाज और आतिशबाजी वाले पटाखे बिक रहे हैं। इनकी डिमांड भी अधिक है। लेकिन लोगों को यह नहीं पता कि जरा सी लापरवाही से पटाखे आंख, कान और हाथों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे व्यक्ति की देखने और सुनने की शक्ति प्रभावित हो सकती है। डॉक्टर्स का कहना है कि लोगों को पटाखे चलाते समय अपनी सेहत का ध्यान रखना होगा।
हमेशा के लिए हो सकते हैं बहरे
वैज्ञानिक रूप से 42 डेसिबल से अधिक आवाज कानों के लिए घातक हो सकती है। लेकिन पटाखों की आवाज इससे कई गुना अधिक होती है। बेहद पास से पटाखे छुड़ाने से इनकी आवाज से कान के पर्दे डैमेज हो सकते हैं। सुनने की ग्रंथियों का परमानेंट लॉस हो सकता है। हर साल दीवाली पर ऐसे कई मामले सामने आते हैं। जिनमें लोगों की सुनने की शक्ति कमजोर हो जाती है। शाहगंज के रहने वाले शेखर सक्सेना के कानों की शक्ति तीन साल पहले ऐसे ही चली गई थी। पटाखे की आवाज की वजह से छह माह उनका इलाज चला। इसके बाद उनके सुनने की शक्ति लौटी। डॉक्टर्स का कहना है कि कानों में रुई या ईयर प्लग लगाकर तेज आवाज वाले पटाखे जलाएं।
और आंखों के सामने छा गया अंधेरा
राजरूपपुर के रहने वाले विशाल तिवारी दो साल पहले अपने घर के बाहर आतिशबाजी चला रहे थे। अचानक धमाका हुआ और चिंगारी उनकी बाई आंख के भीतर चली गई। तेज दर्द और जलन की वजह से वह वही गिर पड़े। परिजन उन्हें नजदीक के अस्पताल ले गए। जहां डॉक्टर ने उनका इलाज शुरू किया। तीन माह बाद आंख सामान्य हो सकी। डॉक्टर्स का कहना है कि जब भी आतिशबाजी छुड़ाएं आखों के ऊपर कोई चश्मा जरूर लगा लें। इसेस धूल और चिंगारी आंखों में नही जाएगी।
सात माह बाद ठीक हुए हाथ
सिविल लाइंस के रहने वाले तेजू सिंह छह साल पहले पटाखे चला रहे थे। अचानक एक पटाखा उनके हाथ में ह फट गया। इससे उनका दायां हाथ बुरी तरह से जल गया। इस हाथ का इलाज सात माह तक चला। घाव तो भर गया लेकिन दाग अभी भी बाकी रह गए हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि पटाखे चलाते समय दूरी बनाए रखें। हो सके तो बांस के जरिए ही पटाखे चलाएं। इससे हाथों के जलने का डर खत्म हो जाएगा।

यह भी होते हैं नुकसान
- सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर से गले, नाक और आंखों की समस्या हो सकती है। इसकी वजह से सिरदर्द भी होता है।
- पटाखों की वजह से होने वाले प्रदूषण की वजह से सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंच सकता है, जैसे क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, सीओपीडी, सर्दी-ज़ुकाम, निमोनिया, लैरिनजाइटिस (वोकल कोर्ड का इंफेक्शन) आदि दिक्कते होती हैं।
- पटाखों के फटने पर रंग निकलते हैं, जिन्हें बनाने के लिए रेडियोएक्टिव और ज़हरीले तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है। यह तत्व लोगों में कैंसर के जोखिम को बढ़ावा दे सकते हैं।
- आतिशबाजी की आवाज काफी तेज़ होती है, जो 140 डेसिबल से ऊपर जा सकती है। आपको बता दें कि मनुष्यों के लिए मानक डेसिबल स्तर 42 डेसिबल है।
- शोर का स्तर अगर ऊंचा हो, तो इससे गर्भवती महिलाओं, बच्चों और सांस की समस्याओं से पीडि़त लोगों में बेचैनी या अन्य दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। इसके अलावा जहरीले पटाखों से निकलने वाले हानिकारक धुएं से गर्भपात हो सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को इस दौरान घर पर रहने की ही सलाह दी जाती है।
बचाव
- पटाखों को पांच फिट की दूरी से चलाएं।
- कानों में ईयर प्लग और आंख में चश्मा लगाएं।
- बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को पटाखों से दूर रखें।
- आग से जलने पर जले हुए स्थान पर ठंडा पानी डालें और डाक्टर के पास जाएं।
- आंखों में चिंगारी जाने पर उसे मसलें मत, डॉक्टर की सलाह लें।
- जलता हुए पटाखे के नजदीक कतई मत जाएं।
- अधिक धुआं होने पर मास्क का यूज करें और अस्थमा और हार्ट के मरीजों को घर के भीतर रखें।

दीपावली पर पटाखे चलाने के दौरान सावधानी बेहद जरूरी है। छोटे बच्चों के साथ बड़ों का होना जरूरी है। फस्र्ट एड बाक्स भी घर पर हो। आंखों को सेफ रखें। हर दीवाली पर दर्जनों ऐसे केस आते हैं जिनमें पटाखों की चिंगारी से आंखे डैमेज होने पर लोग अस्पताल आते हैं।
डॉ। एसपी सिंह, डायरेक्टर, एमडीआई अस्पताल प्रयागराज


कानों में ईयर प्लग लगा लें। क्योंकि पटाखों की आवाज बहुत अधिक होती है और लोग समझ नही पाते हैं। मेरे पास हर दीवाली पर कई मामले आते हैं जिनमे लोग बताते हैं कि उन्हे सुनाई नहीं पड़ रहा है। हमेशा आवाज वाले पटाखे दूर से चलाएं।
डॉ। एलएस ओझा, ईएनटी स्पेशलिस्ट प्रयागराज