न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट पर हाई कोर्ट ने की टिप्पणी

सरकार को सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश, गृह सचिव से मांगा हलफनामा

न्यायाधीश की रिपोर्ट में बाल सुधार गृहों का जो चित्रण किया गया है वह हृदय विदारक है। इस स्थिति के बाद भी सरकार की तरफ से छह साल तक बाल सुधार गृहों की दशा सुधारने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी न देना गंभीर मामला है। यह टिप्पणी गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को प्रदेश के सभी जिलों में स्थित बाल सुधार गृहों की दशा सुधारने के ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है और कहा है कि बालिग होने के बाद किसी बच्चे को सुधार गृह में न रहने दिया जाय। यह आदेश जस्टिस अरुण टण्डन तथा जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की खण्डपीठ ने 2011 में सुधार गृहों की निगरानी कमेटी के अध्यक्ष न्यायाधीश की रिपोर्ट पर कायम जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने न्यायाधीश की रिपोर्ट की प्रति गृह सचिव को उपलब्ध कराने को भी कहा है ताकि वे ठोस कदम उठा सके।

क्या कहती है न्यायमूर्ति की रिपोर्ट

सुधार गृहों की दशा हृदय विदारक है

राज्य सरकार को सुधारात्मक ठोस कदम उठाने चाहिए

कोर्ट ने 2011 में कायम याचिका के बाद गठित की थी कमेटी

न्यायाधीश की कमेटी ने दिए हैं सुधारात्मक कदम उठाने के सुझाव

6 साल बाद राज्य सरकार की तरफ से दाखिल किया गया हलफनामा

सरकार का जवाब

सभी बाल सुधार गृहों में सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं

विशेषज्ञ बाल पुलिस यूनिट का गठन किया गया है

लखनऊ में राज्य, मंडल व जिले स्तर पर कमेटी गठित की गयी है

कोर्ट ने उठाया सवाल

सुधार गृहों में बच्चों की शिक्षा व अन्य सुविधाओं के लिए क्या कदम उठाये हैं

किशोर न्याय पालक संरक्षण एक्ट का कड़ाई से पालन किया जा रहा है या नहीं

कानून के विपरीत कितने बच्चे सुधार गृहों में रह रहे हैं

सुधार गृहों के किचन व क्राकरी की फोटोग्राफ दाखिल करें

हलफनामे में सुधार गृहाें की हालत का जवाब नहीं दिया गया है क्योंकि जज की रिपोर्ट सरकार के पास नहीं थी, इसलिए गृहों के हालात पर उठाये गये सवालों का जवाब नहीं आ सके। सुधारात्मक कदम उठाकर विस्तृत हलफनामा दाखिल करें।

-इलाहाबाद हाई कोर्ट