ताराचन्द हास्टल की बंद पड़ी जिम के बीच कूड़े में पड़ी है डॉ। ताराचन्द की तस्वीर

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ALLAHABAD: फुल पेमेंट के बाद भी छात्रों को हॉस्टल में कमरा नहीं मिल रहा है। जिन्हें मिल गया है वे अलग दु:खी हैं कि सुविधाएं ही नहीं हैं। हॉस्टल्स की एक्चुअल स्थिति सामने लाने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की कैंपेन ने रंग दिखाया है। छात्र खुद दुर्दशा बयां करने के लिए सामने आने लगे हैं। बुधवार को टीम ने तारा चंद हॉस्टल की स्थिति देखी।

लिफाफे से मिल गया खत का मजमून

हास्टल के मुख्य गेट से इंट्री करते ही हास्टल की दुदर्शा दिख गई। फ्रंट की दीवार में ही बड़ा सा होल बन गया है। इससे अंदर का सब कुछ दिखता है। हास्टल के भीतर नजारा चौकाने वाला था। ऐसा लगा मानो किसी जंगल के बीच में कोई रह रहा हो। इसके बाद भी यहां रहकर पढ़ाई कर रहे छात्रों ने होठों पर मुस्कान के साथ रिपोर्टर से मुलाकात की। हास्टलर्स ने प्राइवेट में संचालित मेस दिखाई। कूड़ाखाने नुमा कमरे में संचालित मेस में वाटर सप्लाई पर पड़ी तो पता चला कि यहां चार मशीन से आ रहा पानी नाम का ही है। दो खराब है और बाकी के दो से इस भीषण गर्मी में जैसे तैसे पानी आ रहा है। 308 कमरे का हास्टल जर्जर नजर आया। कई कमरों और बॉथरूम में प्लास्टर उखड़ा दिखा। टॉयलेट की हालत बेहद दयनीय थी।

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घासफूस के बीच रहते हैं हास्टलर्स

बड़ी-बड़ी झाडि़यों और भारी गंदगी के बीच रह रहे हास्टलर्स रिपोर्टर को हास्टल में बनी जिम में ले गये जो वर्षो से बंद है। जिम के सामान कबाड़ की शक्ल में मिले। रिपोर्टर की नजर कबाड़ के बीच रखी एक बड़ी सी तस्वीर पर पड़ी तो हास्टलर्स ने बताया कि ये डॉ। ताराचन्द की तस्वीर है। बता दें कि डॉ। ताराचन्द वर्ष 1947 से 1949 के बीच इविवि के वीसी रहे। वे प्रख्यात इतिहासकार रहे। इनका नाम आज भी विवि के गुरूजन और छात्र बड़े सम्मान के साथ लेते हैं। डॉ। ताराचन्द के नाम पर ही हास्टल की स्थापना की गई है। वर्तमान में हास्टल के वार्डेन प्रो। रामकृपाल और सुपरिटेंडेंट डॉ। पीएस पुंडीर हैं।

ताराचन्द हास्टल का परिचय

ताराचन्द हास्टल की स्थापना वर्ष 1977 में की गई

वर्ष 1992-93 तक इस हास्टल से प्रति वर्ष 20 से 25 आईएएस निकलते थे

वर्तमान में भी यहां से अभी सिविल सेवा परीक्षा में सेलेक्शन पाने वाले छात्र निकलने बंद नहीं हुये हैं

अभी भी कोई ऐसा वर्ष नहीं है, जब इस हास्टल से तकरीबन 15 से 20 पीसीएस का सेलेक्शन न होता हो

हास्टल से पढ़कर निकले पुरा अन्त:वासी देश के सर्वोच्च पदों पर आसानी रहे हैं

लास्ट इयर वीसी हास्टल आये थे। उन्होंने हास्टल की दशा देखकर निराशा जाहिर की थी। उनके जाने के बाद से हास्टल को कोई सुविधा नहीं मिली। स्पोर्ट्स, लाइब्रेरी समेत अदर एक्टिीविटीज के नाम पर हास्टल में कुछ नहीं है।

रोहित मिश्रा, छात्रसंघ अध्यक्ष

मेरा ताराचन्द हास्टल से गहरा जुड़ाव है। हास्टल का इतिहास गौरवमई है। पहले हास्टल में हर 15 दिन में संगोष्ठी हुआ करती थी। हास्टल से पढ़कर निकले लोग यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिये भी आते थे। अब ये सब सपने जैसा हो गया है।

अखिलेश गुप्ता गुड्डू,

जिलाध्यक्ष समाजवादी छात्रसभा

हास्टल में न के बराबर कर्मचारी रह गये हैं। सुविधा के नाम पर सब कुछ हमें ही करना पड़ता है। छात्र आपस में चंदा जुटाकर सुविधाओं को सहेजने का काम करते हैं। हमारी सुनने वाला कोई नहीं है।

अमित दुबे, अन्त:वासी

यूनिवर्सिटी कहती है कि छात्र हमेशा आन्दोलन ही करते रहते हैं। हमारे माता पिता ने हमें पढ़ने के लिये भेजा है। हमें संसाधन ही नहीं मिलेगा तो हम क्या करें।

संकट मोचन,

अन्त:वासी

कभी टायलेट की सफाई, कभी साफ पानी के लिये तो कभी गंदगी हटाने के लिये हमें प्रोटेस्ट करना पड़ता है। यूनिवर्सिटी के अफसर प्रोटेस्ट करने पर ध्यानमग्न होकर सुनते तो हैं। लेकिन एक बार छात्रों की भीड़ हटी तो सब भूल जाते हैं।

सतेन्द्र चौरसिया, अन्त:वासी