प्रयागराज ब्यूरो ।नोटा यानी कि नन आफ द एबोव, ऐसा आप्शन है जिसका उपयोग करके आप चुनाव में खड़े बाकी सभी प्रत्याशियों को नकार सकते हैं। जबसे यह सुविधा इलेक्शन में वोटर्स को मिली है, इसका जमकर यूज हुआ है। पिछले कुछ चुनाव इसका जीवंत उदाहरण भी बने हैं। दर्जनों प्रत्याशियों को चुनाव में मिले वोटों की गिनती नोटा से कम रही है। एक्सपर्ट का कहना है कि वोटर्स भले ही नोटा का आप्शन यूज करें लेकिन वोट देने उन्हे जरूर जाना चाहिए।

लोकसभा चुनाव में नोटा ने कईयों को पछाड़ा

2019 में हुए लोकसभा चुनावों में नोटा का प्रदर्शन कई प्रत्याशियों के मुकाबले बेहतर रहा था। इस चुनाव में इलाहाबाद लोकसभा की बात करें तो इसमें 14 प्रत्याशी मैदान में थे और 7625 वोट पाकर नोटा 9 प्रत्याशियों से आगे था। वहीं इलाहाबाद सीट पर यह चौथे नंबर था। इस चुनाव में नोटा को कुल 7882 वोट मिले थे, जिससे केवल तीन प्रत्याशी ही आगे निकल सके थे।

राजनैतिक पार्टियों पर भी पड़ा भारी

2023 में हुए विधानसभा चुनाव में भी नोटा ने जमकर परचम लहराया था। हंडिया विधानसभा की बात करें तो यहां नोटा को 1960 वोट मिले थे और इसने कांग्रेस और आप जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को पछाड़ दिया था। करछना में नोटा ने 914 वोट पाकर कई प्रत्याशियों को धूल चटा दी थी। शहर पश्चिमी में नोटा को 1514 वोट और मेजा में 1768 वोट हासिल हुए थे। इसी तरह कोरांव और बारा में भी नोटा ने भारी भरकम वोट लेकर कई निर्दलीय प्रत्याशियों को धूल चटा दी थी। इसी साल हुए नगर निगम चुनाव में भी नोटा को 2060 वोट मिले थे और यह आंकड़ा बाकी आठ प्रत्याशियों से काफी आगे निकल गया था।

2015 में लागू हुआ था नोटा

भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा का प्रयोग पहली बार किया था और बाद में 2015 में इसे सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया गया था। इसका अर्थ नन आफ द एबव है। अगर चुनाव में नोटा आप्शन को सबसे ज्यादा वोट मिल जाएं तो चुनाव को रद कर नए सिरे से इलेक्शन कराया जाएगा। बता दें कि नोटा का सर्वप्रथम प्रयोग संयुक्त राज्य अमेरिका में किया गया था। इसका प्रयोग अमेरिका के नेवादा राज्य में वर्ष 1976 के चुनाव में हुआ था। वर्ष 2009 में भारत के निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में नोटा के विकल्प को जोडऩे के लिए एक याचिका को दाखिल किया था।

नोटा एक अच्छा विकल्प है लेकिन मेरा मानना है कि अगर यह वोट किसी बेहतर उम्मीदवार को दिया जाए तो वोट का उचित इस्तेमाल हो पाएगा। फिर भी कोई नही पसंद तो नोट को दबाया जा सकता है। क्योंकि आपका एक वोट समाज को बेहतर सरकार बनाने में मदद कर सकता है।

हेमंत शुक्ला

पिछले कुछ चुनावों में नोटा का प्रदर्शन बेहतर रहा है। इससे पता चलता है कि जनता चुनाव में प्रत्याशियों के बारे में क्या सोचती है। ऐसा करने से हो सकता है राजनीतिक पार्टियां अपने प्रत्याशियों के चुनाव में अधिक ध्यान दें।

शुभम पटेल

ऐसा कम ही होता है कि जो भी प्रत्याशी चुनाव में खड़े हैं वह सभी एलिजिबल नही हों। हम अपने विवेक से फैसला कर उचित प्रत्याशी को वोट दे सकते हैं। शायद आज तक ऐसा कही हुआ हो कि नोटा की वजह से दोबारा इलेक्शन कराया गया हो। अंत में फिर नोटा ही आप्शन बचता है।

अमित यादव