प्रयागराज ब्यूरो ।टेलीविजन के लिए लिखते समय इस बात का ध्यान देना चाहिए की भाषा दृश्यों की सहचर हो। हमारे शब्दों में दृश्य को परिभाषित करने की क्षमता होनी चाहिए। ऐसा होगा तभी हमारे श्रोता और दर्शन उससे जुड़ सकेंगे। यह बात प्रख्यात टेलीविजन पत्रकार प्रियदर्शन ने कही। वह लोक मीडिया शोध अकादमी द्वारा आयोजित सात दिवसीय मीडिया लेखन पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। कहा कि दृश्य में गति होनी चाहिए। सबसे बेहतर दृश्य वह होते हैं जिसमें बूढ़े लोगों के चेहरे शामिल होते हैं। छोटे बच्चे शामिल होते हैं। यही नहींं दृश्य के साथ बहुत ज्यादा बोलने से बचना चाहिए। कभी कभी चुप्पी को भी बोलने का अवसर देना चाहिए।
बिना बताये न करें किसी की बात को रिकॉर्ड
वरिष्ठ ब्रॉडकास्ट रेहान फजल ने कहा रेडियो या टेलीविजन के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाते समय कृत्रिम परिवेश का प्रयोग करना खतरनाक होता है। किसी को बिना बताए उसकी बातों को रिकॉर्ड करना अनैतिक होता है। डॉक्युमेंट्री तथ्यों पर आधारित होती है इसलिए इसके लिए शोध करना अच्छा होता है। रेडियो या टेलीविजन की डॉक्यूमेंट्री सहज शब्दों में लिखी जाती है, ताकि सभी को सहजता से समझ में आ जाए। हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि तथ्यों को प्रस्तुत करने वाले शब्द अपना प्रभाव रखते हों। व्याख्यान के प्रारंभ में लोक मीडिया शो द अकादमी के मानद निदेशक डॉक्टर धनंजय चोपड़ा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस ऑनलाइन पाठ्यक्रम में भाग ले रहे देशभर के 40 प्रतिभागी अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। ढेर सारे प्रश्न पूछे जा रहे हैं और विशेषज्ञ उनके उत्तर दे रहे हैं।