-सिविल लाइंस इलाके से गुजरने वाले लोग सड़कों से हैं परेशान

-जगह-जगह धंस रही है सड़क

-टी स्टाल पर बातचीत में उभरा लोगों का दर्द

-सड़कों की दुर्दशा के लिए नेताओं को कोस रही पब्लिक

ALLAHABAD: लोकसभा चुनाव को लेकर जहां सियासी माहौल गरम है। हर चौराहे पर होने वाला जमावड़ा, अपने लिए कोई न कोई मुद्दा खोज ही लेता है। जैसा मुद्दा-वैसी ही बहस। शुरुआत सामने खड़े इश्यू से और इंड पॉलिटिशियंस को कोसते हुए पॉलिटिक्स पर। टयूजडे को आई नेक्स्ट रिपोर्टर सिविल लाइन इलाके में विवेकानंद चौराहे के पास एक टी स्टाल पर खड़ा था। एक ग्रुप चाय की चुस्कियां ले रहा था। तभी एक आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया। यह आवाज थी बाइक को अचानक ब्रेक लगाकर रोकने की। दरअसल सामने अचानक प्रकट हो उठा गड्ढा था और सामने से आ रहे बाइक सवार की रफ्तार तेज। गड्ढे में जाने से बचाने के लिए बाइक सवार ने पॉवर ब्रेक लगा दिया। इससे बाइक गड्ढे में जाते-जाते बच गई। यह इंसीडेंट बन गया इस ग्रुप के बीच डिस्कशन का प्वाइंट और अपने आप जुड़ गई इससे राजनीति और विकास के साथ हुए खिलवाड़ की चर्चा

बिस्किट खा रहे राजेश बोल पड़े- बच गया बेचारा। नहीं तो, हाथ-पैर तुड़वा लेता। काम से जहां जा रहा था, वहां पहुंचने की जगह अस्पताल पहुंच जाता।

मोहित- हां, यार बाल-बाल बचा बेचारा। चाय बना रहे राजू कहां चुप रहने वाले थे। बोल पड़े, भईया ई तो रोज का हाल हो गया है। मेन रोड का इ मेन चौराहा है। सड़क धंस गई है। हम तो रोजै किसी न किसी को इसमें गिरते हुए देख रहे हैं। गड्ढवा भी रोजै बड़ा हो जा रहा है। बड़का-बड़वा ट्रक एसी रास्ता से जात हैं, मिट्टी पटवावै से काम नही चलने वाला।

संतोष- अरे राजू, हॉट स्टफ चौराहा का भी यही हाल है। पेट्रोल टंकी देखे हो। उसके सामने भी बड़ा सा गढ्डा बन गवा है। वहां पर भी रोज हादसा हो रहा है। लोग गिरते हैं, संभलते हैं और चले जाते हैं।

लंकेश-सही कह रहे हो भाई, परसों मैं भी जब टंकी से पेट्रोल लेकर निकला तो फिर ध्यान नहीं दिया और गिरते-गिरते बच गया।

सतोष- लंकेश भाई, सुभाष चौराहा और रोडवेज के सामने की भी सड़क धंस गई है। वहां भी गढ्डा हो गया है, देखे हो।

लंकेश, हां, हमने देखा है यार, पता नहीं का होई गवा है। जहां देखो वहां सड़क धंस रही है। सिविल लाइंस इलाके का ई हाल है तो फिर शहर के बाकी इलाका में का हाल होई। सिविल लाइंस में एक से बढ़ कर एक मॉल और दुकानें हैं। बड़े-बड़े लोग रहते हैं।

महीप- सुनो भाईयों, सिविल लाइंस ही नहीं, मेडिकल चौराहा की भी सड़क कम खराब नहीं है। यहां भी बड़े-बड़े गढ्डे हैं।

संतोष, लेकिन सोचेने वाली बात तो यह भी है न कि कुंभ बीते साल भर ही हुआ है। पूरे शहर की सड़क बनाई गई थी। एक साल भी नै चली। एह पर भी तो सोचै के होई न।

सुधांशु-चुनाव सिर पर है, इलाहाबाद में भी मोदी, राहुल, केजरीवाल पर बहस जारी है, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि शहर में विकास का क्या हाल है। अब सड़क को ही ले लो। केंद्र में मोदी की सरकार बने, राहुल की या फिर तीसरे मोर्चे की। क्या मोदी, राहुल इलाहाबाद की सड़क बनवाने आएंगे?

संतोष- भाई बात तो तुम्हरी सही है, यहां की समस्या तो यहां के नेता यानी सांसद ही दूर कराएंगे।

महीप-तभी तो मैं लोगों से यही कहता हूं, बड़े-बड़े नेताओं के चक्कर में पड़ेंगे तो समस्या झेलते रह जाएंगे। अपने सांसद का चुनाव सोच-समझ कर करेंगे तो कम से कम इ सड़क के देखै वाला कोई तो होई। आज तो कोई पूछने वाला भी नहीं है।

चाय का ग्लास सबको पकड़ाते हुए राजू ने कहा, भईया लोगों ई बताओ कि क्या इसी तरह लोग गढ्डों में गिरते रहेंगे, सड़कें कब बनेंगी, क्या नेता लोगों की समस्या को नहीं समझेंगे।

लंकेश- चिंता मत करो राजू, जब नेता गढ्डे में गिरेंगे तो पब्लिक का दर्द जरूर समझेंगे। गढ्डे में गिराने का समय आ गया है। चुनाव में उसी को वोट देना जिसे तुम बेहतर समझना। चाय खत्म हुई और सब बढ़ लिए अपने-अपने काम की तरफ।