प्रयागराज ब्यूरो ।आपको तेलियरगंज से सिविल लाइंस आना है। टेंपो पकडऩा पड़ेगा। बैरहना से जंक्शन जाना है, टेंपो पकडऩा पड़ेगा। प्रयागराज महानगर है। मगर लोकल कनवेंश के नाम पर टेंपो, टैक्सी और ई रिक्शा ही है। सरकारी सिस्टम फ्लाप्र है। लोकल में यात्रियों को कहीं आना जाना हो तो फिर उनके पास टेंपो टैक्सी और ई रिक्शा का ही सहारा है। फिर चाहे जल्दबाजी में सटकर बैठना पड़े। या फिर आड़े तिरछे होकर जाना पड़े। हाल ये है कि शहरियों की भीड़ को देखते हुए पर्याप्त साधन नहीं हैं। और तो और रोडवेज भी लोकल कनवेंश उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। इसके बावजूद लोकल कनवेंश की व्यवस्था के लिए सरकारी सिस्टम कोई कदम नहीं उठा रहा है। कहने के लिए इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैं, पर भीड़ को देखते हुए इनकी संख्या पर्याप्त नहीं है।

2009 में शुरू हुईं सिटी बसें
रोडवेज ने जेएनएनयूआरएम के तहत 2009 में सिटी बसों के संचालन की योजना बनाई। शहर में 119 सिटी बसें चलाई गईं। सिटी बसों के चलने से शहरियों को राहत मिलने लगी। शहर के सभी प्रमुख रूटों पर सिटी बसों के चलने से शहरियों को आवागमन में आसानी होने लगी। 119 बसें कई टुकड़ों में आईं। इन बसों को मंदर मोड़ से झूंसी और नैनी रेमंड से शातिपुरम के बीच चलाया गया। शांतिपुरम से जंक्शन तक चलाया गया। इसके अलावा अन्य रूटों पर भी सिटी बसें चलीं। मगर बीते वर्ष अप्रैल में सभी सिटी बसें को कंडम घोषित कर दिया गया। नतीजा ये हुआ कि शहरी एक बार फिर टेंपो, टैक्सी और ई रिक्शा के सहारे हो गए। लोकल कनवेंश के नाम पर इन्हीं साधनों का सहारा रह गया है।

ठूंस कर भरते हैं सवारी
टेंपो, टैक्सी में ठूंस कर सवारी भर दी जाती है। खैर, इसके लिए सवारियां भी कम जिम्मेदार नहीं। मगर वह भी क्या करें। जब आने जाने का साधन ही मिल पाता है तो मजबूरी में जैसे तैसे बैठ के जाना ही पड़ता है। ये किस्सा रोजाना का है। मगर यातायात पुलिस भी सब कुछ देख कर खामोश रहती है। शहर में करीब पंद्रह सौ टेंपो, टैक्सी हैं। इसके अलावा सात हजार से ज्यादा ई रिक्शा हैं।

लोकल कनवेंश नहीं होने से रोजाना काम से निकलने वालों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। टेंपो, टैक्सी में लोग कैसे बैठकर यात्रा करते हैं, इसे आसानी से देखा जा सकता है। मगर आम लोगों की इस तकलीफ को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।
कीर्ति द्विवेदी

शहर में लोकल कनवेंश को लेकर कोई प्लानिंग नहीं बनाई जा रही है। लोकल कनवेंश प्राइवेट सेक्टर के दम पर चल रहा है। सबसे ज्यादा दिक्कत लड़कियों को होती है। उन्हें भी टेंपो टैक्सी में बड़ी परेशानी में बैठना पड़ता है।
संगीत पाल

कोट
अल्लापुर से सिविल लाइंस आना हो तो फिर ई रिक्शा का ही सहारा बचता है। ई रिक्शा वाले भी मनमाना किराया लेते हैं। मगर मजबूरी में देना पड़ता है। प्रयागराज स्मार्ट सिटी में आ गया है। मगर लोकल कनवेंश के नाम पर प्लानिंग जीरो है।
प्रदीप कुमार सिंह

कोट
प्रयागराज महानगर की श्रेणी में है। मगर लोकल कनवेंश के नाम पर टेंपो, टैक्सी ही हैं। ई रिक्शा चलने से राहत तो है, मगर जाम का प्रमुख कारण भी ई रिक्शा ही है। जिससे आसानी के बजाए दिक्कत बढ़ी है।
मुकेश सिंह