प्रयागराज ब्यूरो । समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जब्बा हो तो सुविधाएं या आर्थिक पक्ष मायने नहीं रखते। बस जेहन में नि:स्वार्थ भाव से 'नेकी कर दरिया में डालनेÓ की सोच जिंदा होनी चाहिए। इसके लिए शहर के मो। आरिफ अंसारी का काम एक उदाहरण ही नहीं, सबक के रूप में भी देखा जा सकता है। मो। आरिफ अंसारी शहर के इकलौते ऐसे समाजसेवी हैं, जिन्हें जिले में मरने वाले अज्ञात लोगों को अपनों से मिलाने की चिंता रहती है। गुमनामी में रहकर आठ पूर्व उन्होंने सोशल मीडिया पर 'अज्ञात गुमशुदा तलाशÓ नाम से ग्रुप क्रिएट किया था। तब से आज तक वह इस ग्रुप के जरिए करीब 600 मृत मिले अज्ञात लोगों की पहचान करा चुके हैं।

दायराशाह आजमल के हैं निवासी
समाजसेवी व 'अज्ञात गुमशुदा तलाशÓ ग्रुप के एडमिन मो। आरिफ अंसारी शहर के दायराशाह आजमल निवासी स्व। मो। इस्हाक के बेटे हैं। पत्रकारिता करने के दौरान उनके जेहन में अज्ञात लाशों की पहचान कराने का जुनून पैदा हुआ था। बताते हैं कि तब से आज तक वह इस काम को बगैर किसी स्वार्थ के करते आ रहे हैं। यहां तक की कोरोना कॉल के लॉकडाउन में भी उन्होंने छह लावारिश लाशों की पहचान कराने में महती भूमिका निभाई थी। आरिफ कहते हैं कि शुरुआत के वर्ष 2015 में कुल 350 अज्ञात लाशें जिले में मिली थीं। जिसमें 96 की पहचान काफी प्रयास से कराए थे। वर्ष 2016 में 375 लावारिश शव मिले थे। इसमें भी वह 103 लोगों की पहचान कराने में पुलिस की भरपूर मदद किए थे। इसी तरह 2017 में मिली 365 अज्ञात लाशों में 78 की पहचान कराई। वर्ष 2018 में 370 में 73 अज्ञात लाशों की पहचान अपने ग्रुप व प्रयास से कराकर पुलिस की मदद किए। जबकि 2019 में मिली 357 में 58 अज्ञात लाशों की पहचान भी पहचान कराने में उन्हें सफलता मिली। 2020 में 245 में 45 अज्ञात मृत व्यक्तियों को अपनों से मिलाने का काम किए। वर्ष 2021 में 287 में 52 और 2022 मिली 305 अज्ञात लाशों में 63 लोगों की पहचान उनके जरिए हुई। कहते हैं कि इस साल वह करीब 40 अज्ञात लाशों की पहचान करा चुके हैं। इस तरह आठ वर्षों से वह करीब 600 अज्ञात शव की पहचान कराने में सफलता हासिल किए। उनके इस काम की सराहना जिला प्रशासन भले नहीं कर रहा हो पर वह दो बार विश्व मानवाधिकार परिषद के द्वारा सम्मानित किए गए।


दुबई से बुला लाए अज्ञात मृतक का परिवार
गुजरात के गोंडल राजकोट निवासी सम्मति परिवार के साथ दुबई में रहते हैं। मो। आमिर बताते हैं कि कई साल पूर्व यहां वह संगम स्नान के लिए आए थे और मौत हो गई। पुलिस उन्हें अज्ञात में पोस्टमार्टम हाउस भेज दी थी। यह बात मालूम चलने के बाद वह अपने ग्रुप की मदद से पहचान कराने में जुट गई। दो दिन पता चला कि वह गुजरात के निवासी हैं। जब वह गुजरात पुलिस से संपर्क किए तो मालूम चला कि परिवार दुबई में रहता है। मो। आरिफ उसके परिजनों का नंबर पुलिस से लेकर दुबई फोनकर सूचना दिए। उसके बेटे दुबई से यहां पहुंचे तो इस मदद के लिए मो। आरिफ की तारीफ करते नहीं थके। वह काफी सामान पैसे देने का प्रयास करने लगे। इंकार के बाद वे सामान जबरदस्ती छोड़कर चले गए। सारा सामान मो। आरिफ यहां एसआरएन हॉस्पिटल के आसपास रहने वाले गरीबों में बंटवा दिया था।