मेरा शहर, मेरा पितर

बच्चों को अब कचौड़ी-दमालू नहीं बर्गर-पिज्जा आता है पसंद

बदलते दौर ने इंटरनेशनल ब्रांड के रेस्टोरेंट्स में बढ़ाई भीड़

ALLAHABAD: किसी भी शहर की पहचान उसकी संस्कृति के साथ उसके जायके से होती है। संगम नगरी भी कला, धर्म, साहित्य और संस्कृति के साथ अपने जायके के लिए फेमस रही है। समय के साथ शहर का जायका खो रहा है। एडवांस दिखने के चक्कर में युवा देशी दुकानों से निकलकर ब्रांडेड रेस्टोरेंट्स में घुसने लगे हैं। इससे दमालू-कचौड़ी की जगह अब बर्गर-पिज्जा लेने लगे हैं।

चाट नहीं चाउमिन चाहिए

शहर के पुराने जायकों की बात करें तो सुबह की शुरुआत जलेबी और कचौड़ी-दमालू से होती थी। चौक लोकनाथ की पूरी गली अपने खाने पीने की वस्तुओं और डिसेज के लिए व‌र्ल्ड फेमस थी। इस एरिया में हरी नमकीन, राजाराम की लस्सी और निराला का चाट हो या बहादुरगंज में सुलाकी की चाट और मिठाईयां, कटरा में नेतराम की दुकान से लेकर दारागंज की लगभग सभी दुकानों पर लोगों की भीड़ लगी रहती थी। शाम को शहर के सभी चौराहों, मोहल्ले के नुक्कड़ों पर चाट के ठेले लगते थे। अब बच्चों को चाट नहीं चाउमिन चाहिए। नौजवानों की भीड़ सिविल लाइंस व अन्य एरिया में बने बड़े मॉल और नेशनल व इंटरनेशनल ब्रांड के रेस्टोरेंट में पहुंच गई है।

स्वाद नहीं सोशल स्टेट्स का ख्याल

खुद को आधुनिक बनाने की दौड़ में शहर ने अपनी पहचान के साथ जायकों को भी तेजी से बदला है। जानसेनगंज के मनु मिश्रा बताते हैं कि लोगों में आधुनिकता का ऐसा भूत सवार हुआ कि अब वे ब्रांडेड रेस्टोरेंट्स में जाना पसंद करते हैं। इसकी वजह ये है कि लोग अब स्वाद से ज्यादा सोशल स्टेटस पर अधिक ध्यान रखते हैं। खुद को एडवांस दिखाने के लिए वे ठेला और पुरानी दुकानों पर जाना नहीं चाहते।