सीपीएमटी में हुए थे सेलेक्ट लेकिन नहीं लिया कॉलेज में दाखिला

घर द्वार छोड़कर समाज में जगा रहे वैदिक संस्कृति की अलख

dhruva.shankar@inext.co.in

ALLAHABAD: आज के दौर में हर माता-पिता की चाहत होती है कि उनका बेटा या तो डॉक्टर बने या इंजीनियर। लेकिन तुबुओं की की नगरी में पहली बार कल्पवास करने पहुंचे दिनेश कुमार द्विवेदी यानि स्वामी दिनेशानंद ने सीपीएमटी में सलेक्शन होने के बावजूद बीएएमएस में दाखिला नहीं लिया। परिजनों ने इसका भारी विरोध किया तो 2013 में घर छोड़ दिया और पूरी तरह से वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जुट गए।

वैदिक प्रयोग प्रमाण न्यास की स्थापना की

स्वामी दिनेशानंद ने 2013 में घर छोड़ दिया लेकिन वैदिक संस्कृति की अलख जगाने का उनका सफर 2009 में ही शुरू हो गया था। उन्होंने दिसम्बर 2009 में लखनऊ के गोमती नगर में वैदिक प्रयोग प्रमाण न्यास की स्थापना की। न्यास के जरिए स्वामी दिनेशानंद अब तक एक लाख 56 हजार बच्चों को वेदारंभ की शिक्षा दे चुके हैं। इसमें लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव, हरदोई, बाराबंकी, जौनपुर व आजमगढ़ जिलों के बच्चे शामिल रहे।

शिविर में करा रहे राज सूर्य यज्ञ

स्वामी दिनेशानंद परेड ग्राउंड स्थित विश्व हिन्दू परिषद के शिविर में 10 जनवरी को कल्पवास करने पहुंचे। जहां वे आतंकवाद की समाप्ति, पर्यावरण शुद्धि व मां गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने का संकल्प लेकर राज सूर्य यज्ञ करा रहे हैं। यज्ञ 17 जनवरी से शुरु हुआ है और आठ फरवरी तक चलता रहेगा।

मौनी महाराज ने रखा नाम

सुल्तानपुर जिले के ऊंच ग्रामसभा निवासी 37 वर्षीय स्वामी दिनेशानंद का मूल नाम दिनेश कुमार द्विवेदी है। उनके आध्यात्मिक गुरु मौनी महाराज ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराया और स्वामी दिनेशानंद नाम रखा। परिवार में पत्‍‌नी और तीन बच्चे हैं जिनके पालन-पोषण के लिए वे हर महीने भत्ता पहुंचा देते हैं।

पहली बार कल्पवास करने संगमनगरी में आया हूं। पिताजी आचार्य रामचंद्र द्विवेदी से वैदिक संस्कृति की जानकारी हासिल की है। 2013 में सीपीएमटी का एग्जाम दिया। बीएएमएस में सलेक्शन हुआ था लेकिन दाखिला लेने नहीं गया। तीन बड़े भाइयों और माताजी ने मेरे निर्णय पर एतराज जताया। सभी लोग जब दबाव बनाने लगे तो घर छोड़ दिया। अब जीवन के एकमात्र उद्देश्य वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना ही है।

स्वामी दिनेशानंद, वैदिक प्रयोग प्रमाण न्यास