प्रयागराज ब्यूरो । शहर में आबादी बढ़ती गई और तालाबों का वजूद मिटता चला गया। जबकि वाटर रिचार्जिंग में इन तालाबों की भूमिका आज भी काफी अहम मानी जाती है। बावजूद इसके मिटते इन तालाबों का अस्तित्व बचाने के लिए आप पब्लिक तो दूर, खुद जिम्मेदार राजस्व विभाग व नगर निगम भी आगे नहीं आ रहा। खामोशी के चादर में सो रहे अफसरों की नींद खुलती इसके पहले तालाब धरती से गायब हो गए। जबकि सरकारी कागज में गिनती के लिए आज भी सैकड़ों तालाब मौजूद हैं। कुछ ऐसी स्थिति है अली पट्टी (कुम्भहर गढ़वा) के तालाबों की। यहां तालाब भले नहीं हों, पर लोगों के दिलों दिमाग और जुबां पर इसका इतिहास आज भी अमर है। स्थानीय लोगों की मानें तो यह तालाब यहां पर वर्षों पूर्व हुआ करते थे। आबादी बढ़ी गई और धीरे-धीरे तालाब मिटते चले गए। नगर निगम से आरटीआई मांगने वाले पूर्व वरिष्ठ पार्षद कमलेश सिंह कहते हैं कि राजस्व अभिलेखों में कुम्भर गढ़वा को ही अली पट्टी अल्लापुर के नाम से जाना जाता है। इस स्थान को आज लोग कुम्भर गढ़वा के नाम से ही जानते व पहचानते हैं।

कभी यहां होती थी सिंघाड़े की खेती
यह एरिया अल्लापुर पूरा पड़ाई वार्ड का हिस्सा बताया जाता है। खैर, प्राप्त आरटीआई के आधार पर पूर्व वरिष्ठ पार्षद कहते हैं कि तहसील व नगर निगम अभिलेख में कुम्भहर गढ़वा एरिया ही मौजा अली पट्टी के नाम से दर्ज है। यहां मौजूद बड़े व छोटे तीनों तालाब धरती से गायब हो चुके हैं। यहां चारों तरफ लोगों में मकान ही नजर आते हैं। तालाब के नाम पर एक गड्ढा तक नहीं दिखाई ने देता। मोहल्ले के श्रीचंद्र, मूलचंद्र व बबलू सहित तमाम लोगों को इस तालाब की बुलंदी आज भी याद है। कहते हैं कि यहां तालाबों का वजूद 60-70 साल पहले हुआ करता था। हम सभी बहुत छोटे-छोटे थे, इन तालाबों में बड़े पैमाने पर सिंघाड़े की खेती होती थी। बचपन में हम लोग कई-कई घंटे सिंघाड़ा तोड़ते और मछली पकड़ा करते थे। बगल में एक कुआं था, उसका भी अस्तित्व समाप्त ही हो गया है। केवल छूहा यानी पिलर व चबूतरे का कुछ हिस्सा बचा है। पीने के लिए पानी इसी कुआं से पूरा मोहल्ला भरा करता था। हमारे पिता व बाबा बड़े सभी कुआं पर रस्सी बाल्टी लेकर पानी भरने आया जाया करते थे। बाकी नहाने व बर्तन एवं कपड़ा धुलने का ज्यादातर काम इन्हीं तालाबों में हुआ करता था। कहते हैं कि अब तो तालाब रहे नहीं, लोगों के घर बन चुके हैं। हमारी जानिस में यहां कई ईंट भट्ठे भी हुआ करते थे। जिसमें इंदौरी यानी पतली वाली ईंटें बना करती थीं। जिससे उस दौर में बस रहे शहर में आने वाले लोग मकान बनाया करते थे। एक तालाब काफी बड़ा था बाकी छोटे-छोटे कई तालाब हुआ करते थे। तब यहां आज की तरह बस्तियां नहीं थी। यह तो देखते-देखते इतने लोग यहां आकर बस गए। लोकल लोगों की मानें तो इन तालाबों की गहराई इतनी थी कि हाथी डूब जाय।

और ऐसे पड़ गया कुम्भर गढ़वा नाम
लोग बताते हैं कि बीच में जहां गाडिय़ां पार्क हैं वह स्थान भी वर्षों पूर्व तालाब ही हुआ करता था।
वक्त के साथ कूड़ा कचरा से तालाब प्लेन हो गया। अब इस जगह को लेकर तमाम तरह की बातें सुनने को मिलती हैं।
कुम्भर गढ़वा नाम पडऩे के पीछे भी वे लोग एक वजह बताते हैं। कहते हैं कि सरकारी दस्तावेज में क्या कहते हैं हमलें नहीं मालूम।
वर्षों पुरानी बात है, जब यहां भट्ठे बंद हुए तो कुम्भकार गड्ढों से मिट्टी निकाल कर मिट्टी के बर्तन आदि बनाया करते थे।
धीरे-धीरे यहां कुछ कुंभकार बस भी गए थे। इन तालाबों की मिट्टियां दूर-दराज के कुम्भकार भी ले जाया करते थे।
धीरे-धीरे लोग इस एरिया व तालाब को कुम्हर गढ़वा के नाम से जानने व पहचानने लगे। कहते हैं कि इसके पहले यहां का नाम कभी अली पट्टी रहा होगा तो हम लोगों को नहीं मालूम।
बहुत बड़े बुजुर्ग बचे नहीं हैं, इस लिए इससे ज्यादा जानकारी शायद ही यहां किसी को होगी।


तालाब नहीं पर करते हैं घाट पूजा!
लोग बताते हैं कि जिस जगह गाडिय़ां खड़ी हैं आज भी वहां कुछ लोग शादी विवाह पडऩे पर घाट पूजा के लिए आते हैं। तालाब भले नहीं हैं, मगर तालाब के नाम पर यहां आज भी घाट पूजा की रस्में चंद लोग निभाने सहालग में अक्सर आ ही जाते हैं। चूंकि अब तालाब पट चुका है इस लिए लोग गाडिय़ां खड़ी कर रहे हैं। कुछ साल पूर्व एक पीपल का पेड़ किनारे पर इस जमीन में लगा दिए हैं। जहां मोहल्ले के तमाम लोग पूजा पाठ करते हैं। बताते हैं कि घाट के साथ कूप पूजन का भी रिवाज है, लिहाजा अस्तित्व बचाने के लिए सुबक रहे कुआं पर भी लोग बाग पूजन किया करते हैं। खैर खत्म हो चुके इन तालाबों के पीछे दोषी या जिम्मेदार किसे कहा जाय? यह एक बड़ा सवाल हर किसी के जेहन में हैं। मगर, खुलकर कोई भी इस बाबत कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

अली पट्टी तो नहीं जानते पर कुम्भर गढ़वा हमारे वार्ड में है। यह सही है कि यहां पर तालाब हुआ करते थे। मगर यह बात वर्षों पुरानी है। आज यहां लोगों के मकान बन गए हैं। सभी मकानों से नगर निगम भवन, पानी सीवर का टैक्स वसूलता है। तालाबों के गायब होने का जिम्मेदार पब्लिक नहीं, खुद प्रशासनिक लोग जिम्मेदार हैं।
विनय कुमार मिश्र उर्फ सिंटू, पार्षद पूरा पड़ाईन अल्लापुर