बरेली (ब्यूरो)। बदायूं में हुए रोड एक्सीडेंट में जिस तरह बच्चों की जानें गईं, उसने हर खासोआम के दिल को दहला कर रख दिया। सच तो यह है कि स्कूल जाने वाले बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस इंतजाम नजर नहीं आते। जब तक अभियान चलता है, तब तक ही सुधार नजर आता है। इसके बाद स्थिति जस की तस बन जाती है। अनफिट स्कूली बसें भी दौड़ती दिखाई दे रही हैं, वहीं टेंपो और ई-रिक्शा में क्षमता से अधिक बच्चे बैठाए जा रहे हैं। नियमों की अनदेखी अलग से की जाती है। स्कूली बच्चे भी दो पहिया वाहन से आते-जाते दिखाई देते हैं। घर से शुरू हुई लापरवाही सडक़ और स्कूल के भीतर तक दिखाई देती है। यानी न तो अभिभावक ध्यान दे रहे हैं और न ही पुलिस सख्ती कर रही है। स्कूल प्रबंधन भी कुछ नहीं कर रहे हैं। इसी तरह की लापरवाही का एक मामला बदायूं में एक बड़े हादसे के रूप में सामने आया, जिसमें चार छात्रों सहित पांच जानें चली गईं।

ऐसा मिला हाल
सोमवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने च्ब बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने की व्यवस्था का जायजा लिया तो पाया कि कई स्कूल्स के पास खड़ी बसों में किसी में सीट बेल्ट नहीं थी। हालांकि छुट्टी नहीं हुई थी, इसच्एि बच्चे नहीं बैठे थे। चालकों ने बताया किसी बस में सीट बेल्ट नहीं है। स्पीड कंट्रोल डिवाइस भी बसों में नहीं है। सीसीसीटीवी कैमरे नई बसों में तो लगे दिखाई दिए पुरानी बसों में नहीं हैं। जिले में करीब 81 स्कूल सीबीएसई बोर्ड और 12 स्कूल आइसीएसई बोर्ड से संचालित हैं। इसके अलावा ङ्क्षहदी मीडियम स्कूलों की संख्या इनसे कहीं अधिक है। विद्यार्थियों को लाने व ले जाने के लिए उनके पास स्वयं की बस, टैक्सी एवं अन्य परिवहन के संसाधन हैं, लेकिन स्कूल वाहनों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है। अधिकांश वाहनों में सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का पालन नहीं किया जा रहा है।

स्कूल बस के संचालन में ये है जरूरी
बस में कैमरा होना चाहिए।
जीपीआरएस ट्रैकर।
अग्निशमन यंत्र।
मेडिकल किट।
बस के परमिट होने चाहिए।
बस की फिटनेस सर्टिफिकेट।
प्रदूषण वैधता प्रमाणपत्र।
ड्राइङ्क्षवग लाइसेंस।
एक पुरुष और महिला हेल्पर होना चाहिए।
साइड की तीन पाइप होनीच्चाहिए, जिससे बच्चा सिर बाहर नहीं निकाल पाए।
सीट बेल्ट होनी चाहिए।
बस के पीछे स्कूल के नाम और नंबर लिखे होने चाहिए।
स्पीड गर्वनर होना चाहिए, जो ओवर स्पीड नहीं होने देता है।
बस की वैधता होनी चाहिए।
ड्राइवर का पुलिस वेरिफिकेशन हो।

बोले अभिभावक
हमें स्कूल तक बच्चों को छोडऩे जाना पड़ता है। व्यस्तता के समय ऑटोरिक्शा से उन्हें भेजते हैं, लेकिन ऑटच् रिक्शा चालक जिस तरह बच्चों को ठूंस कर ले जाते हंै, उसे देखकर मन भयभीत रहता है। इसलिए हमारी कोशिश यह ही रहती है कि जहां तक संभव हो, खुद ही उन्हें छोडऩे जाए।
प्रेमपाल, सीबी गंज

बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर कोई सुरक्षित व्यवस्था नजर नहीं आती। ऐसरी स्थिति में बच्चों की सुरक्षा को लेकर अक्सर मन में ङ्क्षचता बनी रहती है। ऐसे में हम तो अपने बच्चों को स्कूल पहुंचाने खुद ही जाते हैं। इस व्यवस्था में कुछ सरकारी बसों का होना बहुत जरूरी है।
मोहित शर्मा, बारादरी

बोले अधिकारी
जो बसें स्कूल प्रबंधन की हैं वह सभी सही हैं और पूरे नियमों का पालन कर रही हैं। कुछ ट्रांसपोर्टर की ओर से लगी बसों में दिक्कतें हो सकती हैं। इसके लिए स्कूल प्रबंधन खुद सजग रहकर उनको परमिट के नियम के मुताबिक फिट कराता है। स्कूल बसें नियम से चलनी चाहिए। स्पीड गवर्नर लगा होने के साथ ही समय पर उसकी जांच भीच्की जानी चाहिए क्योंकि छोटे बच्चों के जीवन का सवाल है, इसमें लापरवाही नहीं होनी चाहिए।
वीके मिश्रा, सिटी कोआर्डिनेटर सीबीएसई स्कूल बरेली

ज्यादातर स्कूलों में चलने वाली बसें नई हैं, जिनका फिटनेस पूरा हो चुका है। स्कूल की बसें सभी नियमों के तहत चल रहीं हैं। ट्रांसपोर्टर भी बसों का फिटनेस करा रहे हैं। आटो च अन्य तरीके से जो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं, उसका कोइच् रिकार्ड नहीं है। बाइक से जो बच्चे आते हैं, उन्हें भी स्कूल अनुमति नहीं देते हैं।
निर्भय बेनीवाल, अध्यक्ष, इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन, बरेली