जनरली 40:60 का रेशियो

वैसे तो कैंपस में ग्रीनरी मेंटेन करने के कोई फिक्स मानक नहीं हैं। लेकिन एक्सपट्र्स की मानें तो कैंपस में कम से कम 33 परसेंट ग्रीनरी मेंटेन करना पड़ता है। आरयू के नैक कोऑर्डिनेटर प्रो। वीपी सिंह ने बताया जनरली 40:60 का रेशियो होना चाहिए। कैंपस में 40 परसेंट कंस्ट्रक्शन और 60 परसेंट ग्रीनरी होनी चाहिए। ग्रीनरी के अंतर्गत प्लांटेशन, सोलर इनर्जी, वाटर कंजर्वेशन का काम होना चाहिए।

इन प्वॉइंट्स पर होगा काम

ग्रीन ऑडिट के तहत यूनिवर्सिटी में 4 मेन प्वॉइंट्स पर डीपली काम किया जाएगा। प्रो। वीपी सिंह ने बताया कि यूनिवर्सिटी का हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट कैंपस की ग्रीनरी का पता लगाएगा और उसे संवारने का काम करेगा। गार्डन को मेंटेन करना, नए प्लांट्स को प्लांट करना और यूनिवर्सिटी की जिस जमीन पर कंस्ट्रक्शन अलाउ नहीं है वहां पर नए प्लांट्स को प्लांट करने के साथ उन्हें संजोने का काम किया जाएगा। इसके साथ ही सोलर पैनल लगाए जाएंगे। खासकर कैंपस की स्ट्रीट लाइट को सोलर सिस्टम से जोड़ा जाएगा। जो जमीन फॉरेस्ट के अंडर है उसमें प्लांटेशन के लिए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को लिखा जाएगा। इसके साथ ही वाटर कंजर्वेशन पर भी काम किया जाएगा।

नैक की ग्रेडिंग के तहत मेंडेटरी

यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन ( यूजीसी ) रेगुलेशन एक्ट 2012 के तहत कॉलेजेज और यूनिवर्सिटी के लिए ग्रेडिंग कराना कंपलसरी कर दिया है। इसी को देखते हुए यूजीसी ने सभी इंस्टीट्यूशंस के लिए ग्रेडिंग कराना कंपलसरी कर दिया है। साथ ही यह नोटिस भी जारी किया है कि 1 जून 2014 तक नैक की ग्रेडिंग के लिए अप्लाई नहीं किया तो 2015 एकेडमिक सेशन से उन्हें किसी भी प्रकार की फंडिंग नहीं की जाएगी। इसी घुड़की को ध्यान में रखते हुए आरयू हर ग्रेडिंग के हर पहलुओं की तैयारियों में जुटा हुआ है। ग्रीन ऑडिट को भी वह उतना ही सीरियसली ले रहा है। कंपलशन के पीछे का मोटिव है कि यूनिवर्सिटी एकेडमिक के साथ ग्रीनरी को भी बढ़ावा दे। कैंपस एंवॉयरमेंटली फ्रेंडली हो जिससे स्टूडेंट्स भी एंवॉयरमेंट के प्रति अवेयर रह सकें।

डेंजरस मेटल्स को किया जाएगा नष्ट

ग्रीन ऑडिट के तहत गारबेज में मौजूद डेंजरस मेटल्स को भी नष्ट किया जाएगा। इसके लिए बेटीवीलिया पौधे का इस्तेमाल किया जाएगा। प्रो। वीपी सिंह ने बताया कि यह विधि चाइना और जापान में काफी प्रचलित है और आरयू के प्लांट साइंस डिपार्टमेंट में रिसर्च भी हो चुका है। इसके तहत तालाब को डेवलप कर उसमें कूड़ा डाला जाता है। चारों तरफ खस के पौधे लगा दिए जाते हैं। उनके जड़ कूड़े में मौजूद हार्ड और डेंजरस मेटल्स को एŽजॉर्ब कर लेते हैं।