बरेली (ब्यूरो)। आजकल ऑनलाइन मार्केट ऑफलाइन पर हावी होता जा रहा है। विशेषकर फेस्टिव सीजन में तो ऑनलाइन सेलर्स की पौ बारह रहती है। लोग तरह-तरह केऑफर्स की खोज में इन साइट्स पर स्क्रॉल करने में लगे रहते हैं। अचानक से हमारी मनपसंद साइट पर कुछ ऐसा हमें दिखाई देता है, जिसकी तरफ हम अट्रैक्ट हो जाते हैं और उसे परचेज करने के लिए स्टेप फॉलो कर देते हैं, लेकिन इस सब के बीच हम यह नहीं समझ पाते कि हम एक तरह के स्कैम का शिकार हो रहे हैं। हम बस उस ऑफर को पाकर खुश हो जाते हैं। लोगों की इस आदत का ही फायदा शॉपिंग साइट्स खूब उठा रही हैैं। यह सेलर के लिए तो फायदेमंद है, लेकिन कंज्यूमर्स के लिए यह घाटे का सौदा सिद्ध हो जाता है। इस डार्क पैटर्न से बचने के लिए अब कंज्यूमर्स को अलर्ट रहने की आवश्यकता है।

ई-कॉमर्स के झांसे में न आएं
ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान कई साइट्स अपने कंजयूमर्स बढ़ाने और प्रोडक्ट को सेल ऑउट करने के लिए कई तरह के एडवरटाइजमेंट का इस्तेमाल करती हैं। इनका न कोई सिर और न कोई पैर होता है। वहीं बायर इसके झांसे में फंस जाते हैं और जरूरत न होते हुए भी चीजें खरीदने लगते हैं।

क्या है डार्क पैटर्न
कस्टमर को कई तरह की स्कीम दिखाकर कंपनी उनके माइंड को डाइवर्ट करती हंै, जिससे कंजयूमर उनके दिखाए गए ऑफर के चक्कर में फस जाए। ऑनलाइन साइट पर कई ऐसी ट्रैकटिक्स का इस्तेमाल होता है, जैसे कि ऑफर सीमित समय के लिए लागू, वन पीस लेफ्ट, जल्द खरीदें अपना पसंदीदा सामान आदि। यह सब प्रोडेक्ट बेचने का एक तरीका है, जबकि वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता।

कैसे होता है स्कैम
1: शॉपिंग करते टाइम दिखाया जाता है कि वन प्रोडक्ट लेफ्ट यहां से ही स्टार्ट होती है स्कैमिंग। एक प्रोडेक्ट को देखते हुए लोग सोचते हैं कि पता नहीं नेक्स्ट ऑफर पता कब आए। इस उम्मीद में लोग उस एक आइटम को खरीद लेते हैं।
2: कई बार मूवी टिकट खरीदते समय दिखाया जाता है कि कई सीट्स फुल हो गई हैैं, लेकिन वहां जाकर पता चलता है कि कुछ सीट्स ही फुल हुई हैं। यह भी हमारे साथ धोखा ही होता है।
3: मॉल में किसी भी सामान को खरीदने जाओ तब भी अक्सर ऐसा होता है। मान लीजिए एक प्रोडक्ट की कीमत 40 रुपए प्रति किलोग्राम है, लेकिन 500 ग्राम खरीदने पर उसकी कीमत 25 रुपए हो जाती है।
4: कई बार दो प्रोडक्ट को खरीदने पर एक प्रोडक्ट फ्री देने की बात होती है, पर असल में यह नहीं होता है। इस सब के फेर में पड़ कर बायर्स अक्सर धोखा खा जाते हैं।

फंसाने के कई रास्ते

साइट शेमिंग: वेबसाइट में एक बार एंट्री करने के बाद साइट से बाहर निकलना कस्टमर के लिए मुुश्किल हो जाता है। उसमें कई फंसाने वाले ऑफर रहते हैं, जो कस्टमर को लुभाने का काम करते हैैं।

एक्सट्रा एडेज: इसमें कस्टमर को बिना बताए उनके बिल में एक्स्ट्रा प्रोडक्ट एड कर दिए जाते हैं। इसमें कभी-कभी एक, दो या तीन महीने का सब्सक्रिप्शन भी होता है। इन सब चीजों की कीमत उनके बिल में एड हो जाती हैं।

नैनिंग: इस तरह की चीजों में कस्टमर को प्रोडक्ट पर बड़ा डिस्काउंट दिखा दिया जाता है। उसे देख कर कस्टमर को लगता है कि इसे नहीं लिया तो उसका जैसे कुछ नुकसान हो जाएगा।

नीड नहीं ग्रीड: कई बार ऑफर को देखकर लोग न चाहते हुए भी सामान खरीद लेते है। इसे नीड नहीं ग्रीड कहा जाता है, जिसका फायदा साइट्स उठाती हैैं। इसे रिकरिंग पेमेंट भी कहते है।

सरकार ने भी कसा शिकंजा
केंद्र सरकार ने कस्टमर को लुभाने वाली साइट्स पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। कंपनी डार्क पैटर्न ट्रिक का यूज करके कस्टमर को गुमराह करती थी। इससे लोगों को बचाने के लिए सरकार की ओर से बस्टर हैकथॉन लाया गया है, जिसमें सरकार एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार करने जा रही है, जिससे डार्क पैटर्न पर रोक लगाई जाए। यह डार्क पैटर्न को पहचानेगा और उसे रोकेगा। इसकी लॉन्चिंग आईआईटी-बीएचयू की ओर से 2024 में की जाएगी।


इन ऑनलाइन शॉपिंग में लोग यह नहीं समझ पाते कि उन्हें इसकी नीड है या नहीं। बस उन्हें ऑफर दिखते हैं। उनका माइंड इस असमंजस में पड़ जाता है और वे इस स्थिति में उस वस्तु को आवयश्यकता न होते हुए भी परचेज कर लेते हैं।
बरेली (ब्यूरो)।