बरेली (ब्यूरो)। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी &नरक-चतुर्दश&य कहलाती है। दो विभिन्न मान्यताओं के अनुसार चंद्रोदयव्यापिनी अथवा अरुणोदयव्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन &नरक-चतुर्दशी&य मनाई जाती है। इस दिन सूर्योदय से पहले चंद्रोदय होने पर अथवा अरुणोदय से पूर्व प्रत्यूषकाल में स्नान करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा का कहना है इस वर्ष 11 नवंबर को नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी।

रूप चतुर्दशी का स्नान-प्रत्यूष काल में
यम तर्पण सुबह 10:41 बजे से दोपहर 12:31 बजे तक
यमराज के निमित्त दीपदान प्रदोष काल में सांय 05:33 बजे से 06:48 बजे तक
दीप माला प्रज्वलन सांय काल 07:07 बजे से रात्रि 08:46 बजे तक

रूप चतुर्दशी का स्नान
इसे रूप निखारने का पर्व बताया गया है। इस दिन प्रत्यूष काल में स्नान आदि करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है। इस दिन प्रात: स्नान का विशिष्ट महत्व बताया गया है। ब्रह्म मुहुर्त में इस तिथि में स्नान करने से शरीर में दिव्य शक्ति आती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह यमलोक को नहीं जाता है.कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित है, किन्तु कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है। नरक चतुर्दशी के दिन तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी, जल में गंगा जल का निवास होता है।

यमराज के निमित्त दीपदान
नरकदोष से मुक्त के लिए सांयकाल चौमुखा दीपक जलाकर मुख्य द्वार के सामने रखा जाता है। भविष्योत्तर पुराण के अनुसार प्रदोषकाल में ब्रह्म, विष्णु और शिवजी के मंदिर में, मठों, अस्त्रागारो, चैत्रों, सभाभवनों, नदियों, उघानों, कूपो, राजपथों, भैरव के मंदिर में आदि सभी जगह दीप दान करना चाहिए। इस दिन देवताओं का पूजन कर दीपदान करना चाहिए। मंदिर के गुप्त गृहों, रसोईघर, स्नानघर, देव वृक्षों के नीचे, नदियों के किनारे, चारदीवारी, बगीचे, बावली, गली-कूचे, गौशाला आदि प्रत्येक स्थान पर दीपक जलाना चाहिए। यमराज के उद्देश्य से त्रयोदशी से अमावस्या तक दीप जलाने चाहिए।

हनुमान जन्मोत्सव आज
दीपावली में भगवान राम के चौदह वर्ष वनवास के बाद अयोध्या नगरी लौटने की खुशी में प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जन्मोत्सव ठीक एक दिन पहले यानी छोटी दीपावली के दिन मनाने का विधान है। इस दिन नरक चतुर्दशी, काली मां की पूजा भी विधि-विधान से होती है। एक चैत्र मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन और दूसरी कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन।

हनुमान जी की पूजा मुहूर्त और विधि
हनुमान जी की पूजा प्रदोष काल या इसके बाद रात्रि के प्रथम पहर में करें। हनुमान जी की पूजा लाल रंग के फूल, फल, धूप, दीप, ङ्क्षसदूर आदि चीजों से करें। इस समय हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें। अगर समय है, तो सुंदर कांड का पाठ अवश्य करें। अंत में आरती अर्चना कर सुख, समृद्धि, बल, बुद्धि, विद्या और शक्ति की कामना करें। पूजा में हनुमान जी को ङ्क्षसदूर जरूर अर्पित करें।