बरेली (ब्यूरो)। घर का दरवाजा खोलते ही सडक़ दिखाई देने लगती है। आमतौर पर बच्चों के पास खेलने-कूदने का स्पेस खत्म होता जा रहा है। जिस उम्र में बच्चों को बाहर की एक्टिविटी करते हुए अपने आपको हेल्दी बनाना चाहिए। उस उम्र में बच्चों के पास कमरा और एक मोबाइल है।

सडक़ पर है खतरा
दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम ने जब कुछ जगाहों पर जाकर लोगों से पूछा, तो सिंधू नगर, आंचल कोलोनी, राम वाटिका, बाग ब्रिग्टान अपार्टमेंट में लोगों ने अपनी परेशानी बताई। यहां लोगों की सुबह मोबाइल पर शुरू होती है और मोबाइल पर ही खत्म हो जाती है। पैरेंट्स का कहना है कि बच्चों के पास खेलने की जगह नहीं है। उन्हें कहां भेजें। यह बात तो होती है कि बच्चे मोबाइल के आदी हो रहे हैैं, लेकिन बच्चे क्या करें, इसका जवाब कोई नहीं देता।

कैसे भेजें घर से बाहर
बच्चों के पैरेंट्स ने बताया कि बच्चों के लिए घर ही सबसे सेफेस्ट प्लेस बचा है। बच्चों को घर से बाहर भेजना खतरे से खाली नहीं रहता हैै, क्योंंकि बाहर जाते ही सडक़ शुरू हो जाती है। जहां हाई स्पीड में व्हिकल गुजरते रहते हैैं। लोग स्पीड का भी ध्यान नहीं रखते। कई बार जब बड़ों को चोट लग जाती है, तो बच्चों की बात ही बड़ी दूर हैै।

खेलने का नहीं है स्पेस
लोगों का कहना है कि जहां पहले बर्फ-पानी, पकड़म-पकडाई जैसे गेम्स बच्चों को फिट रखने में मदद करते थे। बाहर की एक्टिविटी मदद करती थी, लेकिन अभी बच्चों का पूरा दिन मोबाइल में ही बीत जाता है। मोबाइल बच्चों के लिए लत बन गई है।

मोबाइल बनी लत
यह बच्चों की मजबूरी ही है कि वह हर टाइम मोबाइल से ही चिपके रहते हैैं। फिर चाहे वो सोना हो, खाना हो या घूमना। हर जगह सिर्फ और सिर्फ बच्चों को मोबाइल ही चाहिए। मोबाइल फोन का सबसे ज्यादा असर आंखों पर डालता है। मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिएशन आंखों में तनाव पैदा करती हैैं, सूखापन जैसी परेशानी होने लगती हैैं।


हम लोगों को लगता है कि बच्चे अब उस तरह से अपने आप को एक्सपोज नहीं कर पा रहे हैैं, क्योंकि अब चीजें पहले जैसी नहीं रही है। बच्चों के खेलने के लिए स्पेस खत्म सा हो गया है।
सोनी यादव

जितनी आबादी बढ़ती जा रही है, उतना ही स्पेस कम होता जा रहा है। मैैं शहामतगंज में रहती हुं। यहां यह साफ देखा जा सकता है कि यहां कितनी कम जगह है और यहां पर खेलने के नाम पर सिर्फ घर है, घर में भी सिर्फ मोबाइल है।
प्रियंका यादव

बच्चे के खेलने के लिए अब कोई जगह ही नहीं बची है। हर कोई नई-नई जगहों पर शिफ्ट नहीं हो सकता है। घर से बाहर निकलते ही सडक़ शुरू हो जाती हैैं, जो हम लोगों के लिए चिंता बढ़ा देता है।
शिवम

हम लोग बच्चों को अब खुद ही घर से बाहर नहीं जाने देते हैैं, क्योंकि बाहर इतना रश होता है। लोग इतनी स्पीड में गाड़ी चलाते हैं कि देखते ही नहीं है कि सामने कौन है और इसका क्या खतरा हो सकता है।
ज्योति