बरेली (ब्यूरो)। मौसम में लगातार कई सारे बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसके अलावा एयर पॉल्यूशन भी लगातार खतरे की निशानी बना हुआ है। इसकी वजह से लोगों को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें खांसी, जुकाम, बुखार और सांस लेने में तकलीफ जैसी डिजीज शामिल हैं। कई बार मौसम में बदलाव की वजह से ये समस्याएं हो जाती हैं, लेकिन लंबे समय तक परेशानी ठीक न होना, यह निमोनिया का खतरा भी हो सकता है। हर साल निमोनिया की वजह से लाखों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।

क्या होता है निमोनिया
सिटी के जाने-माने फिजिशियन डॉ। सुदीप सरन के अनुसार निमोनिया बीमारी संक्रमण की वजह से होती है। एयर में कई सारे वायरस, कवक और बैक्टीरिया फैले हुए होते हैं, जिन पर प्रिकॉशन नहीं लिया जाए तो वो निमोनिया जैसे खतरे को बढ़ा सकते हैं। इसकी वजह से लंग्स पर गहरा असर पड़ता है। लंग्स एल्वियोली नामक छोटी-छोटी थैलियों से बने होते हैं, जो एक हेल्दी परसन के सांस लेने पर हवा से भर जाते हैं। वहीं जब किसी को निमोनिया होता है तो एल्वियोली मवाद और फ्लूड से भर जाती है, जिससे सांस लेने में दर्द होता है और इसकी वजह से लंग्स में ऑक्सीजन लिमिटेड जोन में पहुंचती है।

लाखों की होती है मौत
निमोनिया जितना बच्चों के लिए डेंजरस होता है उतना ही एडल्ट्स के लिए भी। डब्ल्यूएचओ की रिर्पोट के अनुसार 2019 में निमोनिया से 2.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई थी। 2019 में निमोनिया से 5 साल से कम उम्र के 740,180 बच्चों की मौत हो है थी। वहीं इसका उतना ही असर एल्डर पीपल पर भी होता है। ज्यादा सीरियस होने पर मौत भी हो जाती है।

सीनियर सिटीजन्स में लक्षण
सांस लेने में तकलीफ होना
भूख में कमी
अस्वस्थता या थकान
वीकनेस होना
ठंड लगना
पसीना आना
बॉडी का शेक होना
सीने में तेज दर्द महसूस होना
उल्टी या मतली
बुखार

बच्चों में क्या है वजह
बच्चे हाइली सेंसिटिव होते है और वे बोल भी नहीं पाते। ऐसे में उन्हें क्या प्राब्लम है, यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है। वैसे तो बच्चों की नाक या गले में पाए जाने वाले वायरस और बैक्टीरिया सांस के जरिए फेफड़ों को संक्रमित कर सकते हैं। इसके अलावा निमोनिया ब्लड के माध्यम से फैल सकता है। खासकर जन्म के दौरान और उसके तुरंत बाद इसके होने का खतरा अधिक होता है।

डिजीज के मेन कारण
स्मोकिंग : सिगरेट के बॉक्स पर लिखा होता है, स्मोकिंग इज इंजूरियस टू हेल्थ लेकिन यह सिर्फ शोपीस बन कर ही रह गया है। इस मैसेज को दरकिनार करके लोग खूब स्मोकिंग कर रहे हैं। स्मोकिंग न करने वालों की तुलना में स्मोकिंग करने वालों में निमोनिया होने का खतरा ज्यादा होता है। एक रिसर्च में भी यह पाया गया है कि स्मोकिंग करने वालों में लीजियोनेला निमोनिया का खतरा 3.75 गुना अधिक हो सकता है। सिगरेट का धुंआ फेफड़ों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसकी वजह से ब्रीदिंग रिलेटेड बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

साफ-सफाई न रखना : निमोनिया, वायरस, बैक्टीरिया और कवक जैसे कई इंफेक्शन्स की वजह से होता है, जो साफ-सफाई मेंटेन न करने की वजह से पनपते हैं। डॉक्टर्स के अनुसार यह प्रॉब्लम रेगुलर बेसिस पर हाथों को धोना सबसे अच्छा तरीका है। जो लोग हाथों को साफ नहीं रखते हैैं, उनमें निमोनिया होने का खतरा ज्यादा होता हैै। हाथों और कलाइयों को कम से कम 20 सेकंड तक साबुन, पानी या सेनेटाइजर से साफ करें।

अनहेल्दी फूड : आजकल मार्केट में प्रोसेस्ड फूड की भरमार बनी हुई है। लोग भी इस तरह के खाने को बहुत प्रिफर कर रहे हैैं। डॉक्टर्स के अनुसार प्रोसेस्ड चीजों में नाइट्राइट पाया जाता है, जो लंग्स में सूजन का कारण बन सकता है। इसके अलावा शराब में सल्फाइट्स होता है, जो निमोनिया के लक्षणों को बढ़ा सकता है। खान-पान में पौष्टिक चीजों को लेना चाहिए। जो रेस्पिरेटरी सिस्टम को फिट रखता है।

कैसे हो सकता है ट्रीटमेंट
निमोनिया का ट्रीटमेंट आसान होता है। बस इसे टाइम से ऑपरेट करने की जरूरत होती है। शुरुआत में ही अगर इसका इलाज हो जाए तो इसे क्योर किया जा सकता है। इसलिए बच्चों का टीकाकरण कराना जरूरी होता है। टीकाकरण निमोनिया से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है। बच्चों के पहले जन्म के शुरुआती छह महीने बहुत जरूरी होते हैं। सेम चीज बड़ों के लिए भी है। टाइम पर ट्रीटमेंट बहुत जरूरी होता है।
बचाना चाहिए, तुरंत ही नहीं नहला देना चाहिए।

यह एक लंग इंफेक्शन वाली बीमारी है। लोग इसे कॉमन खांसी, जुकाम, समझकर इग्नोर कर देते हैैं। इसके बाद यह गंभीर समस्या बन जाती है। लोगों को खुद का डॉक्टर नहीं बनाना चाहिए। उन लोगों को इसकी ज्यादा समस्या होती है, जिन्हें सांस लेने में प्रॉब्लम होती है।
-डॉ। सुदीप सरन, फिजीशियन