रात गए तक मोबाइल पर रील देखने की वजह से यूज को नींद न आने की प्रॉब्लम हो रही है। आंखों पर मोबाइल की रेज का असर न हो, इसलिए कमरे में लाइट्स जलती रहती है। आंखों पर मोबाइल की रोशनी और बेडरूम में लाइट जलते रहने की वजह से ही नींद का लोचा शुरू होता है। इसके पीछे ब्रेन को मिलने वाला एक गलत मैसेज है। ब्रेन को लगातार ऐसा मैसेज जाता है कि अभी रात नहीं दिन है। इसकी वजह से ब्रेन एक्टिव बना रहता है और फिर काफी देर तक नींद नहीं आती है। इसकी वजह से स्लीप साइकिल खराब हो रही है। साथ ही बॉडी पर भी असर हो रहा है।

रात में ही रिलीज होता है हार्मोन
न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर राजेश कहते हैैं, &ब्रेन एक स्मार्ट प्लेयर है, जो हर काम टाइम पर ही करता है। रात को नींद लाने के लिए ब्रेन स्लीप हॉर्मोन रिलीज करता है, जिसे मेलाटोनिन कहते हैैं। यह रात के टाइम एक्टिव होता है, जो नींद आने का निर्देश देता है.&य वह कहते हैैं कि मोबाइल की लाइट्स ब्रेन को बताती हैैं कि अभी सोने का वक्त नहीं हुआ है और ब्रेन एक्टिव बना रहता है।

अच्छी नींद के लिए अंधेरा जरूरी
नींद पूरी तरह से ब्रेन के कंट्रोल में होती है। दरअसल, ब्रेन में हाइपोथैलेमस होता है। इसे बायोलॉजिकल क्लॉक भी कहते हैैं। यह नींद और ब्रेन की एक्टिविटी को कंट्रोल करने का काम करता है। हाइपोथैलेमस में हजारों कोशिकाओं के रूप में सुप्राचौस्मेटिक न्यूक्लियस भी मौजूद होता है। यह आंखों को सिंगल देता है। बता दें, जैसे ही आंखों के आगे रोशनी आती है। यह सिगनल क्रिएट करना शुरू कर देता है कि अभी जागने का समय है और नींद को दूर कर देता है। इसकी वजह से ब्रेन एक्टिव हो जाता है। वहीं अंधेरे में यह उतना रिएक्ट नहीं होता है। इसी कारण अंधेरे में ज्यादा जल्दी, अच्छी और गहरी नींद आ जाती है।

रील नहीं, किताबें पढ़े
अच्छी नींद के लिए फोन से दूरी बनानी जरूरी है, क्योंकि फोन से निकलने वाली ब्लू लाइट्स काफी नुकसानदेह होती हैं। ऐसे में अगर मोबाइल फोन से दूरी बनी रहेगी तो ज्यादा हेल्प मिलेगी। बुक्स पढ़ेंगे तो अच्छी नींद आएगी। बुक्स को कुछ देर पढऩे से काफी अच्छी नींद आ जाएगी।

प्रॉपर नींद न लेना देता है गंभीर बीमारी
लोग फोन की वजह से अपनी नींद को ही सैक्रिफाइज करे दे रहे हैैं। इसकी वजह से उन्हें कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वे चिड़चिड़े हो जाते हैैं। वहीं डिप्रेशन, इम्यून सिस्टम कमजोर होना, एंग्जाइटी, हाइपर टेंशन का शिकार हो जाते हैैं। इसके अलावा डॉक्टरों का यह भी कहना है कि एक हेल्दी लाइफ के लिए डीप स्लीप काफी जरूरी है। ऐसे में सोने से पहले मोबाइल का यूज नहीं करना चाहिए। इसके अलावा कम से कम सात से आठ घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए। वहीं अगर लोगों को ज्यादा जरूरी काम है तो छह घंटे की नींद तो जरूर लेनी चाहिए।

ब्रेन स्टेम प्ले का इंपॉर्टेंट रोल
सोने में ब्रेन स्टेम इंपोर्टेंट रोल प्ले करता है। ब्रेन स्टेम हाइपोथैलेमस से जुड़ा हुआ होता है। यह जागने और सोने के बीच की पोजिशन को मेंटेन करता है। हाइपोथैलेमस मेें नींद को एक्टिव करने वाले टिशूूज एक्टिव हो जाते हैं, जो की प्रॉपर नींद प्रोवाइड करते हैैं। वहीं इसके अलावा बॉडी के अदर पार्ट को भी रिलैक्स होने का संदेश देता है।

बड़े दिन वाले देश कैसे सोते हैैं
वल्र्ड में कई ऐसे देश है जहां अंधेरा कम होता है। ऐसे में वहां के लोगों को सोने के लिए फुल डार्कनेसकी जरूरत होती है। इसके लिए वहां के लोग अलग तरह के पर्दों का इस्तेमाल करते हैैं। इससे कम रोशनी घर में आती है। ऐसे देशों में नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैैंड, फिनलैैंड, अलास्का आदि आते हैैं। इन देशों में कम समय के लिए रात होती है या फिर कई बार काफी समय के लिए रात होती ही नहीं है।

सोने का सही टाइम
स्लीप चार्ट
- न्यू बॉर्न (0 से तीन मंथ) के लिए 11 से 19 घंटे की नींद जरूरी होती है।
-इंफैंट (चार से 11 मंथ) के लिए 10 से 18 घंटे की नींद जरूरी
-टोडलर (एक से दो साल) के लिए नौ से 16 घंटे की नींद जरूरी है
-प्रीस्कूलर (तीन से पांच साल) के लिए आठ से 14 घंटे की नींद जरूरी होती है
- स्कूल एज (छह से 12 साल) के बच्चों के लिए सात से 12 घंटे की नींद जरूरी है
-टीन एज (13 से 17 साल) के लिए सात से 11 घंटे की नींद जरूरी है
-एडल्ट (18 से 64 साल के) लोगों के लिए सात से नौ घंटे की नींद जरूरी है
-ओल्डर अडल्ट यानी की 65 प्लस के लोगों के लिए सात से आठ घंटे की नींद जरूरी है

सोने से पहले सोशल मीडिया स्क्रोल करने की आदत हो गई है। कहां क्या नया हो रहा है। जानने की जल्द रहती है। इसकी वजह से कई बार नींद भी उड़ जाती है।
अक्षरा विजय

सोशल मीडिया एक ऐसा पिंजड़ा है। जिसने हर तरफ से जकड़ रखा हुआ है। रात में एक हैबिट बन गई है सोशल मीडिया स्क्रोल करने की। पता होता है की यह गलत है, लेकिन दिल है कि मानता नहीं।
आराधना गंगवार

मोबाइल जरूरी बन गया है। आज के टाइम पर हर कुछ मोबाइल के सहारे ही हो रहा है। ऐसे में सोने के टाइम पर भी मोबाइल जरूरी लगता है। इसी के सहारे नींद भी आती है।
अन्नू पांडेय


मोबाइल मेंडेटरी हो गया है आज के टाइम पर। जहां उठने से लेकर सोने तक मोबाइल हेल्प करता है। अभी तो मैैं 11वीं में हूं। इसकी वजह से 12 बजे तक मोबाइल यूज करके सो जाता हूं।
अंश पांडेय

हेल्दी लाइफ के लिए डीप स्लीप जरूरी है। लोग मोबाइल की वजह से प्रॉपर स्लीप नहीं लेते हैैं। ऐसे में उन्हें कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
डॉ। आरके महाजन, सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट