केस वन - 10 साल का इंतजार

वर्ष 2006 में रामगंगा आवासीय योजना प्लान की गई। जिसमें 4 गावों की जमीन पर डेढ़ हजार मकान बनाए गए। इस जमीन के भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों और प्रशासन में विवाद शुरू हो गया। जिस कारण से भवन स्वामियों को मकान आवंटित नहीं किए गए। वर्ष 2014 में अवस्थापना निधि में दो गावों के किसानों को बढ़े हुए लैंड रेट पर मुआवजा देना स्वीकार किया गया। मुआवजा देकर दोनों गांवों की जमीन अधिग्रहण कर ली गई। लेकिन अभी दो गांवों की जमीन अधिग्रहण करना बाकी है। प्रशासन, प्राधिकरण और किसानों की तकरार का खामियाजा डेढ़ हजार आवंटी भुगत रहे हैं।

केस 2 - लोहिया ग्रीन्स भी हुई फ्लॉप

करीब पांच माह पहले लोहिया ग्रीन्स योजना की शुरुआत की गई। लोहिया ग्रीन योजना के अंतर्गत 447 आवास पांच हेक्टेयर में बनाए जाने थे। पहले चरण में बनने वाले फ्लैट्स में 321 ए श्रेणी व 126 दूसरी श्रेणी के शामिल थे। दो बेडरूम वाले फ्लैट की कीमत 22 से 26 लाख रुपये रखी गई थी। इसमें जब बीडीए ने रजिस्ट्रेशन शुरू किया तो सिर्फ 16 लोगों ने ही रजिस्ट्रेशन करवाया।

केस 3 - प्राइवेट बिल्डर्स ने दस साल में बसा दी कॉलोनी

करीब 10 वर्ष पहले सिटी के निजी बिल्डर्स की ओर से रामपुर रोड पर रेजिडेंशियल डेवलपमेंट शुरू किया गया। बीडीए द्वारा अप्रूव्ड होने के चलते भवन निर्माण का तेजी से काम किया गया। इसमें लोगों को बेहतर सुविधाओं से लैस फ्लैट, फिनिशिंग, क्वालिटी सभी कुछ वक्त से उपलब्ध कराया गया। करीब तीन वर्षो में ही कॉलोनी पूरी तरह बनकर तैयार हो गई और उसे रजिस्ट्रेशन करने वालों को सौंप दिया गया।

BAREILLY:

अब अंदाजा लगा लीजिए, आखिर क्यों बीडीए से पब्लिक का भरोसा टूटता जा रहा है। बीडीए की दो महत्वाकांक्षी परियोजनाएं का हश्र उपर बताया गया है। वहीं प्राइवेट बिल्डर्स कितनी तेजी से काम करके पब्लिक को सौंपते हैं यह भी साफ है। यहां पर यह सवाल लाजिमी है कि शहरियों को आवास उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी को बीडीए ठीक से निभा नहीं पा रहा है। यही कारण है कि बीडीए की आवासीय योजनाओं को खरीददार तक नहीं नसीब हो पा रहे हैं। सीएम की महत्वाकांक्षी समाजवादी आवास योजना का भी कुछ ऐसा ही हश्र हो रहा है। इस योजना के लिए भी बीडीए खरीददारों की बांट जोह रहा है।

घर चाहिए, लेकिन बीडीए का नहीं?

गौर करने वाली बात यह है कि बरेली में बड़ी तादाद में लोगों को आशियाने की तलाश है। यहीं कारण है कि यहां पर प्रॉपर्टी के रेट आसमान पर पहुंच गए हैं। लेकिन, उसके बाद भी बीडीए की यह उसकी वर्किंग का रवैया व उदासीनता की पोल खोलने के लिए काफी है। जानकार बताते हैं कि बीडीए की सुस्ती के चलते ही प्राइवेट बिल्डर्स सिटी में अच्छा कारोबार कर रहे हैं। प्रजेंट में ही कई प्राइवेट आवासीय योजनाओं पर काम चल रहा है।

दो योजनाओं ने तोड़ा पब्लिक का भरोसा

बीडीए की दो योजनाओं ने पब्लिक का भरोसा तोड़ दिया है। इन योजनाओं के फेल्योर में बीडीए इस तरह फंसा कि आज भी वह अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पा रहा है। पहली, रामगंगा आवासीय योजना रही है, जबकि दूसरी लोहिया ग्रीन्स।

सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट भी रहा फ्लॉप

मध्यम परिवारों के लिए एक छत मुहैया कराने की उम्मीद लिए सीएम ने पिछले दिनों समाजवादी आवास योजना का शुभारंभ किया था। बरेली प्राधिकरण के अधिकारियों ने लोहिया ग्रीन्स योजना फेल होने के बाद नए प्रोजेक्ट यानी की समाजवादी आवास योजना में उसको मर्ज कर दिया गया। बीडीए अधिकारियों ने बताया कि कोई विवाद न हो, इसलिए इसको बीडीए की जमीन में ही बनवाने का निर्णय लिया गया। बावजूद उसके यह योजना पब्लिक को रास नहीं आई। इसमें 286 आवास बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन जब रजिस्ट्रेशन ओपेन हुए तो सिर्फ 70 ने अब रजिस्ट्रेशन कराया। रजिस्ट्रेशन की लास्ट डेट 16 जून है।

आमने-सामने लगाए----------

गवर्नमेंट स्कीम्स में अड़चनें

नगर परिक्षेत्र में कॉलोनी डेवलप करने के लिए आवश्यक भूमि नहीं बची हैं। ऐसे में गवर्नमेंट आवासीय योजनाएं गावों की जमीन पर शुरू करती है। लेकिन ज्यादातर केसेज में प्रोजेक्ट्स की शुरूआत से पूर्व किसानों से जमीन अधिग्रहण नहीं हो पाती। लेकिन प्राधिकरण की ओर से रजिस्ट्रेशन और भवन की पूरी राशि जमा कर ली जाती है। लैंड बिल के अनुसार मुआवजा पर प्रशासन और किसानों की टकराहट होने की वजह से भवन आवंटन में अडचनें आती हैं। वहीं, आवंटियों की शिकायतों का निस्तारण भी समय से नहीं होता। एकबारगी भवन बनने और आवंटन के बाद मूलभूत सुविधाएं बिजली, पानी और सड़क की दुर्दशा पर केवल प्राधिकरण से आंवटी गुहार लगाते रह जाते हैं।

प्राइवेट डेवलपर्स हैं सक्षम

दूसरी ओर प्राधिकरणों के मुकाबले प्राइवेट डेवलपर्स में कॉम्पिटीशन जबरदस्त होता है। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में प्राइवेट डेवलपर्स किसानों से जमीन खरीदकर उन्हें उचित मुआवजा देते हैं। ताकि कोई विवाद न रहे। वहीं, प्रचार प्रसार पर भी काफी रुपया खर्च क हे हैं। आंवटियों की प्रत्येक शिकायत का उचिव समाधान तयशुदा समयसीमा के भीतर करते हैं। बिजली, पानी और सड़क समेत बिल्डिंग की मरम्मत एवं सिक्योर्टी के भी बेहतर इंतजाम प्राइवेट डेवलपर्स की ओर से किए जाते हैं। इन सभी सुविधाओं में बीडीए की अपेक्षा प्राइवेट फ्लैट्स मंहगे होने के बाद भी पब्लिक को लुभाने में और भरोसा जीतने में प्राइवेट डेवलपर्स कामयाब होते हैं।

बीडीए प्रदत्त सुविधाएं

- साधारण भवन, फुटपाथ, सड़कें, पार्किंग, पार्क, कम्युनिटी सेंटर, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, स्कूल, जॉगिंग ट्रैक, साइकिल ट्रैक, सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वाटर सप्लाई, सुरक्षा के इंतजाम।

प्राइवेट डेवलपर्स प्रदत्त सुविधाएं

- डेकोरेशन पर ज्यादा जोर, टाइल्स फ्लोर, क्वालिटी बेस्ट फिटिंग्स, सड़कें, 24 ऑवर्स इलेक्ट्रिसिटी, वाटर सप्लाई, प्रॉपर क्लीन सीवेज एंड ड्रेनेज, पार्क, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, सीबीएसई और आईसीएसई पैटर्न स्कूल, हॉस्पिटल, इंट्री गेट, टेम्पल।

बाक्स--दूरी भी बड़ी वजह

एक्सपर्ट के मुताबिक रामगंगा आवासीय योजना जंक्शन से 11 किमी। और रोडवेज से 13 किमी., समाजवादी आवास योजना जंक्शन से 8 किमी। और रोडवेज से 5 किमी। की दूरी पर हैं। बेहतर स्कूल और हॉस्पिटल्स से भी करीब 6.10 किमी। की दूरी है। जबकि प्राइवेट बिल्डर्स की ओर से अक्सर सिटी के जंक्शन, रोडवेज, हॉस्पिटल्स, स्कूल और मार्केट से दूरी केवल 6-8 किमी। की परिधि तक ही रखने की हैं। क्योंकि प्राइवेट बिल्डर्स अक्सर ऊंची कीमतों पर शहर क्षेत्र के अंदर ही भूमि लेकर बिल्डिंग बना रहे हैं। वहीं, बीडीए की शहर से दूर आबादी बसाने की सोच भी कहीं न कहीं अडचनें डाल रही है।

बाक्स--समाजवाीद योजना एक नजर में

-इसमें दो मंजिला मकानों का निर्माण प्राधिकरण की जमीन पर ही किए जाने का प्रस्ताव।

-रजिस्ट्रेशन होने के साल भर के भीतर भवन निर्माण करना है।

-बीडीए द्वारा 286 आवास बनाने का लक्ष्य है। जिसमें 20 से 24.5 लाख रुपए तक के 75 वर्ग मीटर में ड्यूप्लेक्स भवन बनाए जाएंगे।

-डेढ़ महीने में अब तक केवल 70 रजिस्ट्रेशन हुए। जिसके बाद रामगंगा आवासीय योजना और लोहिया ग्रीन्स की तर्ज पर समाजवादी आवास योजना के फ्लॉप होने का डर सताने लगा है।

-रजिस्ट्रेशन कम होने के बाद अब बीडीए भवन बनाना शुरू कर देगा, बाद में फिर से रजिस्ट्रेशन ओपेन करेगा।

लोहिया ग्रीन आवासीय योजना में कम रजिस्ट्रेशन होने की वजह से बंद कर दिया। सभी रजिस्ट्रेशन को समाजवादी आवास योजना में शामिल कर लिया गया है। कुल 70 रजिस्ट्रेशन हुए हैं। रामगंगा जमीन अधिग्रहण में लेटलतीफी होने की वजह से अन्य योजनाओं से भी पब्लिक का मोहभंग होता दिख रहा है। जबकि समाजवादी योजना प्राधिकरण की जमीन पर ही बनाए जाएंगे।

आरके सिंह, चीफ इंजीनियर, बीडीए

कॉम्पिटीशन ज्यादा होने की वजह से हमारी कोशिश रहती है कि कस्टमर्स को बेहतर सुविधाएं अबेलेबल कराएं। ऐसे में सर्वे के जरिए लोगों की ख्वाहिश जानकर उसी के अनुरूप डेवलपमेंट मैप पास किया जाता है। ताकि कस्टमर्स डीलिंग बेहतर से हो सके।

अनुज मिश्रा, बिल्डर

प्रजेंट टाइम में लोगों को अपने आशियाने में खूबसूरती और मजबूती दोनों की ही जरूरत है। इसके अलावा उन्हें मूलभूत सुविधाओं में कोई कमी नहीं चाहिए। जिसे हम पूरी करने की कोशिश करते हैं। प्राधिकरण गवर्नमेंट के मुताबिक काम करती है और प्राइवेट बिल्डर्स पब्लिक के मुताबिक।

राहुल श्रीवास्तव, बिल्डर

बीडीए की ओर से बसी कॉलोनीज में कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक रहता है लेकिन फिर मूलभूत सुविधाएं धीरे धीरे नदारद होने लगती हैं। गुहार लगाने पर कोई सुनवाई नहीं होती। इसके एवज में प्राइवेट बिल्डर्स के पास एप्लीकेशन ही संबंधित प्रॉब्लम को दूर करने की कवायद शुरू हो जाती है।

जितेंद्र सिंह, निवासी, बीडीए कॉलोनी