बरेली (ब्यूरो)। सुसाइड के मामले दुनियाभर में लगातार बढ़ते जा रहे हैैं। बेहतर भविष्य की चाह में कभी कुछ फेलियर, कभी कुछ बातें यूथ को हताश बना देती हैैं। फिजिकल और मेंंटल प्रेशर कई बार सुसाइड जैसे कदम उठाने पर मजबूर कर देते हैैं। यूथ का मानना है कि आज के टाइम में दो तरफ से प्रेशर क्रिएट हो रहा है। पहला फैमली की तरफ से और दूसरा बाहर का है। जबरदस्त कंपटीशन और बैरियर्स यूथ को अंदर से तोडऩे लगते हैैं। देश में जनवरी से अगस्त 2023 तक टोटल 361 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया है।

क्या है सुसाइड की साइकोलॉजी
जब लोगों के मन और दिमाग में कई तरह के थॉट्स एक साथ पनपने लगते है। तब लोग यह समझ नहीं पाते कि आखिर क्या सही है और क्या गलत। लोगों का माइंड बिल्कुल ब्लॉक हो जाता है। उस समय सुसाइड जैसा कदम ही उन्हें सही लगता हैैं। ज्यादातर यह प्राब्लम अकेले रहने वाले लोगों में होती है। वे घर से बाहर रहकर अपनी परेशानी दूसरों के साथ शेयर नहीं कर पाते। उनके माइंड में कई परेशानियां चलती रहती है। सुसाइडल थॉट्स उनके मन में गहरे तक उतरते चले जाते हैैं। फिर उन्हें अकेलापन अच्छा लगने लगता है। वह जितना अकेले रहते हैैं यह प्रॉब्लम उतनी ज्यादा बढऩे लगती हैै।


रिवेंज लेने की टेंडेंसी बनती है सुसाइड की वजह
सुसाइड करने वाले लोगों के मन मेें अकसर एक विचार गहरे तक बैठ जाता है। यह थॉट है कि लोगों ने मेरी कद्र नहीं की। जब मैैं नहीं रहूंगा तब उन्हें पता चलेगा। यह अकसर लव रिलेशन में होता है या फिर किसी चीज का इंस्टेंट रिएक्शन होता है। ऐसे लोगों को साइकेट्रिस्ट की जरूरत होती है, पर लोग मनोविज्ञानिक की मदद लेना गलत समझते हैैं। वे यह सोचते हैं कि दूसरे क्या सोचेंगे।


दो एज ग्रुप के लोग करते हैं ज्यादा सुसाइड
सुसाइड करने वालों में सबसे ज्यादा दो एज ग्रुप के लोग होते हैं। एक तो यूथ और दूसरे 50 से 60 एज ग्रुप के लोग। यह उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है जहां कई तररह के चेंजेस हो रहे होते है। यूथ को इस पड़ाव में खुद के सिवा कोई सही नहीं लगता है। कई बार लोगों के सजेशन भी उन्हें गलत लगते है। वहीं 50 से ऊपर के लोगों के लिए आज की दुनिया बिल्कुल अलग होती है। वे खुद को कई बार लोगों में फिट नहीं समझ पाते और फैमली का भविष्य, लोगों के ताने और आसपास का एनवायरमेंट उन्हें डिप्रैस कर देता है। इसकी वजह से वे यह कदम उठा लेते हैैं।

थ्री टू फाइव एएम है डेंजर
ऐसा देखा गया है कि ज्यादातर लोग रात को तीन से पांच बजे के बीच खुदकुशी करते हैैं। जान देना आसान नहीं होता है। वह रात भर अपने आप से जंग करते रहते हैैं। सुबह होने से पहले वह अकसर हार जाते हैैं। ऐसे समय में अगर कोई उन्हें समझाने वाला मिल जाए तो खुदकुशी को रोका जा सकता है।


विरोनिका डिसाइड्ड टू डाई
पाउलो कोएल्हो का एक नॉवेल है विरोनिका डिसाइड्ड टू डाई। इसमेें एक लडक़ी किस तरह से डिप्रेशन का शिकार होकर अपने आप को खत्म करने का प्रयास करती है। इसकी कहानी है। उसे एक अस्पताल में एडमिट किया जाता है। वहां उसकी जिंदगी में पॉजिटिविटी आती है और फिर सब कुछ बदल जाता है।

कैसे रोकें सुसाइडल थॉट्स
लाइफ में कई चैलेंजेस होते हैैं। उनसे बाहर निकलना थोड़ा मुश्किल होता है। साइकोलॉजिस्ट रविंद्र कुमार ने कहा कि जब भी किसी में सुसाइडल थॉट्स आएं, तो लोग ज्यादा से ज्यादा टाइम फैमली के साथ बिताएं। अपनी प्रॉब्लम दूसरों के साथ शेयर करें। अकेला रहना बीमारियों और बुरे थॉट्स को बल देते हैैं। पहले लोग ज्वाइंट फैमली में रहते थे। तब इतनी परेशानियां लोगों में नही होती थीं। अब लोगों में इसकी टेंडेंसी ज्यादा है।

हताशा में उठाते हैं कदम
जब लोग अपने जीवन से पूरी तरह से निराश और हताश हो जाते है तब यह कदम उठाते हैं। लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं। जिन भी लोगों में यह टेंडेंसी होती है। वे अकेले रहना, लोगों से कम बात करना ज्यादा पसंद करते है।
डॉ। वीके श्रीवास्तव, साइकाइट्रिस्ट

लोगों को अपना टाइम सबके बीच बिताना चाहिए। उनकी लाइफ में कोई न कोई होना चाहिए, जिसके साथ वे अपनी बात रख सकें। लोग अपने थॉट्स सबके साथ शेयर नहीं कर पाते हैैं।
रविंद्र कुमार, साइकोलॉजिस्ट

सबसे ज्यादा प्रेशर पढ़ाई का होता है। इस वजह से भी लोग आत्महत्या कर ते है। इसकी एक और वजह है संगत का असर। कई बार बुरी संगत भी ऐसे कदम उठाने पर मजबूर कर देती हैं।
नेहा

लाइफ में कई तरह के प्रेशर होते हैं। इसमें करियर प्राइम पर होता है। आज के समय में लोगों के बीच ज्यादा कंपटीशन होता है। वे यह नहीं समझ पाते कि एक या दो माक्र्स उनकी लाइफ डिसाइड नहीं कर सकतीं।
आस्था

लोगों को दो तरफा प्रेशर कई बार गलत कदम उठाने पर मजबूर कर देता है। घर वालों की उम्मीद और बाहर वालो की गॉसिप भी लोगों की लाइफ में ज्यादा प्रभाव डालते हैं।
अनुभव