हे छठि मइया सुनल ली अरजिया हमार

- धूमधाम से मनाया गया छठ महापर्व, व्रती महिलाओं ने उगते सूर्य को अ‌र्घ्य दे व्रत पारण किया

बरेली : लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शनिवार सुबह उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के बाद संपन्न हुआ। पूर्व से शुरू हुआ यह पर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक पहुंच चुका है। आस्था और विश्वास के इस पर्व को नाथ नगरी में भी धूम-धाम से मनाया गया। चार दिन तक चलने वाले इस कठिन व्रत का समापन बहुत ही भरोसे और उम्मीद के साथ हुआ। लोगों ने अपनों के लिए छठ माता और सूरज देवता से परिवार सलामती की प्रार्थना की।

छठ महापर्व का चौथा व अंतिम दिन सबसे खास माना जाता है। क्योंकि तीसरे दिन अस्ताचलगामी के दिन डूबते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के बाद पूरा पूरा परिवार रात में लगभग न के बराबर सोता है, और अंधेरे में ही पूजा स्थल पर बनी वेदी के पास पहुंच गया। शहर में छठ पूजा स्थलों पर भोर में तीन बजे से ही एक बार फिर से मेला लग गया। गीत के माध्यम से भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना कर उगते सूर्य को अ‌र्घ्य व्रती महिलाओं ने दिया। इसके बाद 36 से रखे निर्जला व्रत का पारण किया। वहीं अगर कोविड काल की बात करें तो कोरोना का न तो असर दिखा और नहीं शारीरिक दूरी का पालन। कहीं भी आस्था तो नहीं डिगी पर छठ पर्व पर हर बार लगने वाली भीड़ कुछ कम रही। भोर से ही सूर्य उदय के इंतजार में पानी में खड़ी महिलाओं ने सूर्य उदय होने पर उन्हें अ‌र्घ्य दिया। उससे पहले परिवार के मुखिया डाला लेकर पूजा स्थल पर पहुंचे। व्रती महिलाओं के हाथ से ¨सदूर लेकर परिवार की अन्य महिलाओं ने अपनी मांग भरी। मान्यता है कि व्रती महिला से ¨सदूर व हल्दी दान लेने से दुख कट जाते हैं।

ऋग्वेद में मिलता है सर्वप्रथम सूर्य की पूजा का उल्लेख

देवता के रूप में सूर्य वंदना का उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद में मिलता है। उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल में सूर्य पूजा का प्रचलन बढ़ गया। अनेक स्थानों पर सूर्यदेव के मंदिर भी बनाए गए। यही नहीं पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य का देवता भी माना गया था।

हर ओर गूजें छठि मइया के गीत

शहर के रामगंगा नदी के तट पर बने मंडप, श्री शिव-पार्वती मंदिर नैनीताल रोड, श्री रामेश्वरम मंदिर, नगरिया परीक्षित स्थित नदी के किनारे व विश्वविद्यालय परिसर में बने छठ पूजा सरोवर के पास भोर में ही व्रती महिलाएं पूजा के लिए पहुंच गई। यहां ऊंजे छठ मइया, सुती ली पलंगियां, जटा देली छितराय, जटा देली छितराय, ऊंचे उनकर सेवक, जटा दिहले बटोर केरवा जे फरेला घवंद से, ओपर सुगा मंडराय सुगवा को मरवों धनुख से, सुगा गिरिहे मुरछाय समेत अन्य परंपरागत छठ गीत लाउड स्पीकर में बजने के साथ ही महिलाओं द्वारा गुनगुनाए गए।

मंडप बनाकर कि गई पूजा

शहर के मंदिरों में बनाए गए कृत्रिम सरोवरों, रामगंगा नदी के तट के किनारे, नगरिया परीक्षित नदी के पास व्रती महिलाओं ने केला के पत्ते का मंडप बनाकर पूजा-अर्चना की। सूर्यदेव के उदय होने की छटा से पहले ही व्रती महिलाएं पानी में उतर गई। सभी ने सूर्य भगवान की जय-जयकार कर अ‌र्घ्य दिया। विश्वविद्यालय स्थित मंदिर परिसर में छठी महोत्सव का आयोजन करने वाले देवेंद्र राम ने बताया कि पिछली बार की अपेक्षा इस बार कम संख्या में लोग आए हैं।

इंटरनेट मीडिया पर बधाई संदेशों की बाढ़

नहाए खाए के साथ शुरू छठ पर्व की धूम इंटरनेट मीडिया पर भी रही। सभी जगह जमकर बधाई संदेशों का दौर बुधवार से शुरू होकर शनिवार को भी जारी रहा। फेसबुक, व्हाट्सएप पर लोगों ने जहां अपनी सेल्फी शेयर की वहीं लोगों ने एक दूसरे को कमेंट में बधाई भी दी।

धूप व दीप की खुशबू से माहौल हुआ भक्तिमय

शहर के कृत्रिम सरोवरों व नदी के किनारे व कुछ लोगों द्वारा घरों के बाहर अस्थाई रूप से बनाए गए तालाबों के घाट पर अछ्वूत नजारा देखने को मिला। सुपलियों में रखे प्रसाद को कोसी से भरे गन्ने के चारों और सजा कर रखे गए थे। उनमें जलते दिए धूप अगरबत्ती की खुशबू से माहौल भक्तिमय बना हुआ था। इसके साथ ही घाट ओरिया चलबे री बहिनिया करबे छठ के बरत, भईल बा अरघे के समईया करि छठि के बरत जैसे छठ मैया की अराधना करने वाले अलग-अलग गीतों की आती आवाजें जिसने भी सुनी उसके कदम थम से गए।

इसलिए दिया जाता है उगत सूर्य को अ‌र्घ्य

ज्योतिषाचार्य पं। मुकेश मिश्रा बताते हैं कि उदित सूर्य एक नए सवेरा का प्रतीक है, अस्त होता हुआ सूर्य केवल विश्राम का प्रतीक है इसलिए छठ पूजा के पहले दिन अस्त होते हुए सूर्य को पहला अ‌र्घ्य देते हैं, जो लोगों को ये बताता है कि दुनिया खत्म नहीं हुई, कल फिर सवेरा होगा। यही नही वाल्मीकि रामायण के मुताबिक जो सूर्य की आराधना करता है, उसे दुख नहीं भोगना पड़ता है। कहते हैं सभी तरह के चर्म रोग सूर्य उपासना करने से ठीक हो जाते हैं। सूर्य की आराधना से भगवान श्री कृष्ण के बेटे राजा शांब का कुष्ठ रोग दूर हो गया था। पुत्र और सौभाग्य के लिए छठ व्रत रखने का महत्व है। बताते हैं कि महाभारत काल में द्रोपदी ने यह व्रत किया था। इससे पांडवों को खोया राज्य मिला था।