वसीयत से शुरु हुई रंजिश

कंतूरी व प्यारेलाल के हिस्से में 21-21 बीघा जमीन थी। बच्चे न होने पर नरेश व रीतराम के पास ही रहते थे। प्यारेलाल ने अपने हिस्से की जमीन नरेश व रीतराम की पत्नियों के नाम कर दी। कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई। करीब दो महीने रामचंद्र ने पिता कंतूरी को अपने साथ भी रखा। उसने ऑटो लेने के बहाने दो लाख रुपये का लोन भी करा लिया। लेकिन उसने रुपये खर्च कर दिए और अपने पिता का इलाज भी नहीं कराया। कंतूरी दोनों पैरों से चल नहीं पाते थे। पांच महीने पर कंतूरी रीतराम के घर पर रहने लगे और उन्होंने बची हुई जमीन की वसीयत नरेश व रीतराम के नाम कर दी। बस यहीं से तीनों भाई अपने भाइयों और पिता के खून के प्यासे हो गए।

पहले भी हुए हैं खूनी संघर्ष

प्रापर्टी को लेकर खूनी संघर्ष का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले इसी गांव में भी 16 साल पहले कांगे्रसी नेता के बेटों ने खूनी संघर्ष किया था। 25 सितंबर को हरुनगला बारादरी में भी प्रापर्टी विवाद में पूर्व सभासद जगतपाल व उसके गनर की हत्या कर दी गई थी। यही नहीं 28 अगस्त को आंवला में ससुर द्वारा जमीन न देने पर एक महिला ने अपने तीन बच्चों समेत जहर खाकर जान दे दी थी। जुलाई में किला छावनी में भी एक शख्स की उसके भाई-भाभी ने मकान के लिए जलाकर मार दिया था।