गुरु पूर्णिमा के विशेष दिन आई नेक्स्ट ने गुरु-छात्र के आत्मीय रिश्ते के व्यवहारिक बदलाव पर डाली एक नजर

इंटरनेट, गुरु का शिष्यों की उम्मीदों पर खरा न उतरना, शिक्षा के व्यवसायीकरण ने गुरु-शिष्य के मजबूत रिश्ते को हिलाया

BAREILLY:

कहते हैं कि गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता पिता और पुत्र से भी बढ़कर होता है। लोग इसे अभी भी मानते हैं लेकिन यह बात अलग है कि एक जमाने में गुरु के आदेश को पत्थर की लकीर मानने वाले गुरु-शिष्य के रिश्ते में वह बात नहीं रह गई है। समय के साथ-साथ रिश्ते में कहीं न कहीं रूखापन आया है। अब जमाना बदल गया है और इंटरनेट रिवल्यूशन ने कंप्यूटर के साथ हर हाथ को ई-व‌र्ल्ड से कनेक्ट कर दिया है। इस क्रांति ने यूं तो हर आम-ओ-खास की जिंदगी में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं, लेकिन कई आत्मीय रिश्तों पर ये ई-क्रांति भारी पड़ी है। जी हां गुरु-गोविंद के बीच गुरु को बड़ा मानने वाली हमारी संस्कृति की नई पीढ़ी आज उस दौर में प्रवेश कर गई है, जहां छात्र साइक्लोपीडिया को गुरु ज्ञान से ऊंचा मानने लगे हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के बहाने आई नेक्स्ट ने गुरु और शिष्य के इस पारंपरिक और मजबूत रिश्ते में समय के साथ जम गई व्यावहारिक परत की जांच पड़ताल की।

नहीं गहरी हुई रिश्ते की जड़ें

गुरु और शिष्य के बीच की रिश्ते की जड़ें समय के साथ और गहरी होनी चाहिए थी, लेकिन व्यावहारिक होते गए इस दौर ने दोनों की भूमिका, कर्तव्य, जिम्मेदारी और लाभ के प्रकार जैसी परिभाषा को बदल दिया। आई नेक्स्ट के सर्वे में इस रिश्ते के अप्रासंगिकता की ओर बढ़ने की आंशकाएं सामने आई। गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व अब भी बरकरार है, के सवाल पर 50 प्रतिशत छात्र 'थोड़ा-बहुत' कहकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर गए। जबकि 40 प्रतिशत छात्रों ने ही रिश्ते की अहमियत कायम रहने पर हामी भरी, 10 फीसदी छात्रों ने इस रिश्ते को सीधे नकार दिया।

उम्मीदों पर खरा उतरना चुनौती

रिश्ता चाहे कोई सा हो, उसे आगे बढ़ाने के लिए ईमानदारी और प्यार के खाद-पानी से सींचना जरूरी होता है। वहीं सामने वालों की उम्मीदों पर आप कितना खरे उतरते हैं। इसकी भी अहमियत होती है। हमने छात्रों से जब पूछा कि क्या आज के गुरु उनकी उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं, तो 55 फीसदी ने छात्रों ने हामी तो भरी, लेकिन 30 प्रतिशत छात्रों ने समर्थन नहीं दिया। जबकि 15 प्रतिशत छात्रों ने स्पष्ट रूप से यह कह दिया कि गुरु उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।

बाजारीकरण है बड़ा कारण

प्रैक्टिकल होते जमाने में आज शिक्षा को सबसे बड़ा व्यवसाय कहा जाने लगा है। जिसका कहीं न कहीं नुकसान गुरु-शिष्य के रिश्ते पर पड़ा है। प्रोफेशनल होते गए टीचर्स अब मूल्यों को लेकर उतने संजीदा नहीं दिखते, कोचिंग और ट्यूशन के नाम कई बार छात्रों पर दबाव बनाने सरीखी घटनाएं आम हो चली हैं। गुरु-शिष्य परंपरा के गिरते मूल्यों का बड़ा कारण शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है, ऐसा छात्रों की राय है। आई नेक्स्ट में गुरु दक्षिणा के बदले स्वरूप यानि फीस परंपरा के जरूरी हो जाने पर सवाल किया, तो 85 छात्रों ने एक मत में हां कहा। जबकि 5 प्रतिशत छात्र ही इससे असहमत दिखे। दूसरी ओर 10 फीसदी ने इस परंपरा के विकास को थोड़ा-बहुत कहकर सहमती दिखाई।

इंटरनेट के आगे गुरु को कौन पूछे

हर मुश्किल का हल बन चुके इंटरनेट से गुरु की भूमिका को बड़ी चुनौती मिलने लगी है। ई-लर्निग, ई-क्लासेस, ई-लाइब्रेरी और भी तमाम ई-ब्रांड आज छात्रों को अपने गुरु ज्ञान को विस्तार रुप दिखने लगे हैं। इसकी तस्दीक सर्वे की एक महत्वपूर्ण फाइंडिंग करता है, जहां 70 प्रतिशत छात्र 'इंटरनेट गुरु' को स्वीकार कर रहे हैं। इतना ही नहीं 25 प्रतिशत छात्र भले इस तथ्य को पूरी तरह स्वीकार न करते हों, लेकिन इससे इत्तिफाक जरूर रखते हैं। वहीं गुरु की प्रभुत्व को मानने वाले सिर्फ 5 फीसदी छात्र ही हैं।

कुछ इनकी भी सुनें

स्टूडेंट नसरीन का कहना है कि इंटरनेट पर भले सभी इंफार्मेशन अवेलबल हो, लेकिन ये हमें गाइड नहीं कर सकता। टीचर न सिर्फ बच्चों को ज्ञान देता है, बल्कि उसे शिष्य को अच्छा इंसान बनाने में अहम भूमिका अदा करता है।

नसरीन, स्टूडेंट

शिक्षक को अपनी भूमिका का पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत है। शिक्षा में घटी नैतिकता और छात्र के साथ खत्म होते गए भावनात्मक संबंध ने इस रिश्ते को कमजोर किया है। शिक्षानीति के में सारे हित छिपे हैं, जिसके कारण छात्र हित पीछे छूट गया है।

- गजेंद्र कुमार, डीआईओएस एवं पूर्व प्रधानाचार्य-नवोदय विद्यालय, बरेली

निश्चित तौर पर ये शिक्षकों की निष्ठा में कमी और छात्रों के गैर जिम्मेदाराना रवैया का नतीजा है। साथ ही इसे मैं इसे दुविधा काल कहता हूं, क्योंकि उपभोक्ता वादी युग में आज शिक्षक और छात्र दुविधा में हैं कि मानवीय संवेदना हीन बाजारवादी मूल्यों पर चले या पुरातन भारतीय दर्शन पर। लेकिन भारतीय मूल्य ही श्रेष्ठ हैं।

- डॉ। एसी त्रिपाठी, एसोसिएट प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र विभाग