इंटरनेशल नर्स डे स्पेशल

किसी ने मां तो किसी ने बहन से ली मरीजों की सेवा करने की प्रेरणा

घरवालों और दोस्तों के सपोर्ट के बिना बनाया एक अलग मुकाम

BAREILLY: उनकी प्यार से दी गई झिड़की और लापरवाही पर मिलने वाली डांट भी पेशेंट्स को बुरी नहीं लगती। बेशक जिंदगी बचाने में डॉक्टर की अहम भूमिका हो, लेकिन पूरे इलाज के दौरान पेशेंट्स के दर्द तकलीफ पर वही पहला सहारा बनती है। उनके बिना डॉक्टर्स भी अधूरे हैं और पेशेंट की जिंदगी व सेहत दुरुस्त होने की उम्मीदें भी। पेशेंट्स की तकलीफ और डॉक्टर्स के इलाज की यह इकलौती कड़ी है 'नर्स'। जिन्होंने करियर के तमाम दरवाजे खुले होने के बावजूद पेशेंट्स की सेवाभाव से जुड़े इस कठिन रास्ते पर ही चलने को अपना मकसद और मंजिल बनाया। फ्लोरेंस नाइटेंगिल के बर्थडे पर हर साल क्ख् मई को मनाए जाने वाले इंटरनेशनल नर्स डे पर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की स्टाफ नर्स और सिस्टर के इस पेशे से जुड़ने की उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी।

मां से िमली प्रेरणा

नर्सिग सर्विस में आने की इकलौती प्रेरणा मां से ही मिली। पेरेंट्स मेडिकल फील्ड से ही जुड़े थे। पिता होम्योपैथिक डॉक्टर थे और मां मिशन हॉस्पिटल में नर्स। क्रिश्चियन होने के नाते सेवाभाव शुरू से ही खून में है। ऐसे में मां से प्रेरणा तो मिली पर नर्स बनने को पूरा सपोर्ट पापा से मिला। काम का दबाव ज्यादा रहता है और परिवार व बच्चों के साथ एडजस्टमेंट बिठाने में काफी दिक्क्त होती है। पति ने भी हमेशा कहा कि आराम करो और घर संभालो लेकिन मुझे एक बार भी कभी नहीं लगा कि इस नौकरी में दिक्कत है। फ्0 साल हो गए नर्सिग में। समय बदलने के साथ ही इस फील्ड में भी प्रॉब्लम काफी बढ़ गई है। पहले की तरह अब पेशेंट्स थैंकफुल नहीं हैं। कुछ ही हम नर्स की प्रॉब्लम समझते हैं।

- रमोला मेसी, नर्स

फैमिली का नहीं िमला सपोर्ट

नर्सिग फील्ड में आने के फैसले पर मेरे परिवार ने मुझे टोका था। शिफ्टिंग ऑवर्स की जॉब के चलते घरवाले नहीं चाहते थे कि मैं नर्स बनूं। मैरिड लाइफ में एडजस्टमेंट में दिक्क्त होने की भी परेशानी बताई। दोस्तों ने भी मना तो नहीं किया लेकिन सपोर्ट भी नहीं किया। लेकिन मैं नर्सिग फील्ड में आने की ठान चुकी थी। बाद में पापा ने इस ओर आगे बढ़ने में सपोर्ट किया। शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ी, बच्चों की भी देखभाल करनी थी पर पति ने भी पूरा साथ निभाया। अब तो ख्क् साल हो गए पेशेंट्स की मदद करते हुए। हालांकि कभी कभी परिवार को समय न दे पाने और बच्चों के साथ न रह पाने का मलाल रहता है, जिम्मेदारियां भी बढ़ गई हैं, लेकिन यह सेवाभाव का काम है तो फर्ज निभाना ही है।

- मीनाक्षी गोयल, नर्स

बहन ने दिखाई नसिर्ग की राह

पिता की मौत के बाद घर पर फाइनेंशियल प्रेशर आ गया था। पढ़ाई के साथ अपने पैरों पर खड़ा होने की जरूरत भी थी। मेरी कजिन सिस्टर नर्स थी। ऐसे में उसी ने नर्सिग सर्विस में आने को मोटिवेट किया। मौसी भी नर्स थीं, उन्होंने भी इस फील्ड में आने की राह सुझाई और मदद की। हालांकि दोस्तों में किसी ने सपोर्ट नहीं किया था। ट्रेनिंग की शुरुआत में काफी दिक्क्त महसूस हुई लेकिन एक बार संकल्प ले लिया था कि करना है तो करना है। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। शादी के बाद नौकरी और बच्चों की जिम्मेदारी निभाने में पति ने पूरा साथ दिया। घर संभालने को कभी वह छुट्टी लेते कभी मैं। इस तरह परिवार में एडजस्टमेंट करते हुए अपनी सर्विस और वह संकल्प बनाए रखा।

- मधु प्रोमिला दास, सिस्टर

मेरे तो जींस में है नर्सिग

मेरी भ् बुआ हैं और सभी नर्स थीं। मां-पापा में से कोई भी मेडिकल फील्ड से नहीं था लेकिन फिर भी हमेशा से लगता था कि नर्सिग तो मेरे जीन्स में ही है। हाई स्कूल पास होते ही मैंने नर्सिग कोर्स ज्वॉइन कर लिया। रिजल्ट निकलने का इंतजार किए बिना ही इसके लिए अप्लाई कर चुकी थीं। कानपुर में बुआ के साथ सेंट कैथरीन हॉस्पिटल कैंपस में रहते हुए ही मैंने नर्स बनने का सपना देखा था। हालंाकि बुआ के सपोर्ट के बावजूद फूफा पूरी तरह से विरोध में थे, लेकिन मैंने जिद नहीं छोड़ी। इस पेशे में काम करने से एक सुकून मिलता है। पेशेंट की जान बच जाए वह ठीक हो जाए, यही हमारे काम का इनाम है। कई बार पेशेंट्स मिसबिहेव भी करते हैं, लेकिन वह परेशान रहते हैं इसलिए बुरा नहीं लगता। - सीएम मेसी, नर्स

सांवले रंग ने बनाया नर्स

सच कहूं तो नर्सिग में आने की चाहत मुझे इसकी यूनिफॉर्म से हुई थी। मेरठ मेडिकल कॉलेज में एडमिट एक रिश्तेदार को देखने परिवार वाले गए थे। वहीं पर पहली बार एक नर्स को देखा था। तब नर्स की यूनिफॉर्म अलग होती थी। सफेद स्कर्ट, शूज और सिर पर कैप भी। देखकर लगा कितनी खूबसूरत है। उनके पास जाकर इस जॉब के बारे में बात की। उस समय इंटर फ‌र्स्ट ईयर में थी, फैसला कर लिया कि नर्स ही बनना है। लेकिन घर में कोई राजी नहीं हुआ। मेरा रंग सभी भाई बहनों में सबसे दबा था, तो पापा ने आखिरकार नर्स बनने की परमिशन दे दी। यह सोचकर कि अपने पैरों पर खड़ी होगी तो शादी में दिक्कत नहीं आएगी। इस तरह नर्स बनने का सपना पूरा हुआ। अब तो फ्0 साल हो गए सर्विस के साथ काम करते हुए।

- कुसुमलता यादव, सिस्टर

दीदी ने पूरा किया सपना

मेरा नर्स बनने का सपना दीदी ने साकार किया। हम 7 भाई बहनों में सबसे बड़ी दीदी हैं, जो नर्स है। उन्हीं के काम में सेवाभाव देख के नर्सिग में आने और पेशेंट्स की मदद करने का फैसला लिया। इस सपने को देखने से लेकर पूरा करने तक दीदी ने ही हर कदम में पूरा सपोर्ट किया। साथ की ज्यादातर सहेलियों ने या तो शादी कर ली या आगे की पढ़ाई की लेकिन उनमें से कोई भी नर्सिग सर्विस में नहीं आया। ऐसे में ट्रेनिंग की शुरुआत में काफी दिक्कत आई। पहले साल ट्रेनिंग छोड़ने का ख्याल भी आया, तब पापा ने हौसला बंधाया। बाद में सब आसान हो गया। एक साल बाद काम करने की हिचक भी खुल गई। आज भी जब कोई पेशेंट्स अच्छा होकर कॉम्पलीमेंट दे जाता है तो बहुत मोटिवेशन मिलता है।

- मारिया एस मेसी, नर्स