बरेली (ब्यूरो)। लिगामेंट्स बॉडी के ज्वाइंट्स की फंक्शनिंग के लिए बहुत जरूरी होते हैं। इन लिगामेंट्स में छोटी सी भी इंजरी बड़ी परेशानी का सबब बन जाती है। लोग इस इंजरी को सामान्य चोट समझ कर इलाज नहीं कराते। इससे लॉन्ग टर्म में यह इंजरी बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। इस इंजरी में नौबत यहां तक आ सकती है कि इंजर्ड को कम से कम पांच से छह महीने तक कंप्लीट बेड रेस्ट तक करना पड़ सकता है।

लिगामेंट्स क्या हैं
लिगामेंट बॉडी के ज्वाइंट्स को जोडने वाले सॉफ्ट टिशूज होते है। यह टिश्यू बॉडी में इलास्टिक बैंड की तरह काम करते हैं। ज्यादा स्ट्रैच होने या अबनार्मल स्ट्रैच होने से लिगामेंट फट जाते हैं। इससे भारी दर्द सहना पड़ता है

घुटने में होते हैं चार लिगामेंट
घुटने को एक पोजीशन में होल्ड करने के लिए लिगामेंट इंपोर्टेेंट रोल प्ले करते हैं। घुटने में चार तरह के लिगामेंट्स पाए जाते हैैं। घुटने को साइड से होल्ड करने का काम एमसीएल और एलसीएल करते हैं। वहीं घुटने को सामने से एसीएल और बैक से पीसीएल होल्ड करते हैं।

कैसे होती है लिगामेंट्स इंजरी
लिगामेंट इंजरी वैसे तो कई वजह से हो सकती है। इसमें छोटी सी चोट से लेकर बड़ा एक्सिडेंट शामिल हो सकता है। इसके अलावा पैदल चलने पर कभी जब पैर मुड़ जाता है तो भी लिंगामेंट प्राब्लम हो जाती है। लिगामेंट इंजरी लॉन्ग टर्म के लिए काफी तकलीफदेय होती है।

कितने तरह की होती है इंजरी
खेलते टाइम गिरने या लॉन्ग स्ट्रैच से
अचानक से लेग मुड़ जाने से
लिगामेंट कमजोर होने से
फिसल जाने से
किसी भी सिचुएशन में लिगामेंट पर अधिक दबाव पडऩे से

लिगामेंट के ग्रेड
ग्रेड 1: इसमें हल्की मोच होती है, जिससे लिगामेंट को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है। यह टीयरिंग ज्यादा सीरियस नहीं होती है।
ग्रेड 2: इसमें मोच आ जाती है, जिसमें पार्शियल टीयरिंग हो जाती है। इसमें ज्वाइंट्स में पेन बढऩे लगता है। वहीं ज्वाइंट्स अब्नॉर्मली रूप से ढीले होने लगते है।
ग्रेड 3: इस ग्रेड में लिगामेंट टीयरिंग ज्यादा गंभीर हो जाती है। इसमें लिगामेंंट पूरी तरह से टूट जाता है। ज्वाइंट अनस्टेबल हो जाता है।

कितना गंभीर होता है मामला
लिगामेंट इंजरी को कई बार लोग हल्के में लेे लेते हैं। उन्हें लगता है कि यह मामुली पैर, हाथ में दर्द है, लेकिन यह बहुत ही खतरनाक हो सकता है। नौबत यहां तक आ जाती है कि उसे ऑपरेशन तक कराना पड़ सकता है।

क्या होते हैं लक्षण
पैरों में सूजन
घुटने में दर्द
चोट वाली जगह पर पीला पड़ जाना
नी का अब्नॉर्मली मूवमेंट होना
उठने-बैठने पर पेन होना
पूरे वजन से नहीं चल पाना
सबसे अधिकतर लिगामेंट इंजरी स्पोटर्स में खेलते टाइम होती है।
जांच प्रॉपर नहीं कराने से हो सकता है नी पोजीशन से रिप्लेस
जिसकी वजह से पैरों में लचक आ जाती है
बार-बार लिगामेंट पर पड़ेगा असर
लिगामेंट में मौजूद स्ट्रक्चर जैसे की कार्टिलरी, मेनिस्कस आदि में बढ़ सकता है खतरा

कहां होता है ज्यादा खतरा
नी ज्वाइंट
एंकल ज्वाइंट
फुट ज्वाइंट

दो तरह की होती है इंजरी
पार्शियल रैपचर
कंप्लीट रैपचर

बढ़ती उम्र में है ज्यादा खतरा
डॉ। वीके खेतान ने बताया कि वैसे लिगामेंट टीयरिंग किसी भी एज में हो सकती है। इसकी कोई एज लिमिट नहीं है। मगर जो लोग ऐसा वर्क करते हैं, जिसमें बॉडी को स्ट्रैच करने की जरूरत पड़ती है उन लोगों को ज्यादा होती है लिगामेंट टीयरिंग। जैसे की स्पोर्ट पर्सन, ओल्ड एज पर्सन आदि।

डॉक्टर की सलाह है जरूरी
कई बार लोग खुद से ही डॉक्टर बन जाते हैं और घर बैठे ही इलाज करने लगते हैं। डॉक्टर से मिलने से कतराते हैं, जो पेशेंट के लिए नुकसान दायक होता है। अगर दो या तीन दिन तक परेशानी दूर नहीं होने पर तुरन्त डॉक्टर से कंर्सन करना जरूरी है, नहीं तो सिचुएशन यहां नी लॉक तक की आ सकती है।

क्या है उपाय
वैसे तो लिगामेंट की चोट का ट्रीटमेंट ऐज, हेल्थ और मेडिकल हिस्ट्री पर डिपेंड करता है। अगर यह हल्की इंजरी है तो घर पर ही ठीक की जा सकती है। वहीं ज्यादा पेन होने पर तुरंत डॉक्टर से कंसर्न जरूरी है। लिगामेंट का इलाज तुरंत करना चाहिए। यहां तक डॉक्टर्स को इसके इलाज के लिए होल सर्जरी तक करनी पड़ती है। इसके बाद चार से पांच महीने के बाद इसे नॉर्मल लिगामेंट की तरह बनाया जा सकता है। वहीं पांच से छह महीने बाद नॉर्मल एक्टिविटी और स्पोर्ट्स एक्टिविटी की जा सकती है।

हार्दिक पांड्या को हुई इंजरी
वल्र्ड कप 2023 में बांग्लादेश के खिलाफ खेलते हुए भारतीय क्रिकेटर हार्दिक पांड्या को गंभीर लिगामेंट इंजरी हो गई है। इससे पहले उन्हें बैक इंजरी हो गई थी। वहीं अब देखना है कि उनकी इस इंजरी के बाद मैच में उनकी वापसी कब होगी।

ज्वाइंट हो जाता है अनस्टेबल
लिगामेंट इंजरी पर पेशेंट्स यह समझ लेते हैं कि वह घर पर ही अपना इलाज कर सकते हैैं। लिगामेंट एक बोन को दूसरे बोन से जोडऩे का काम करते हैं। अनयूजवल ट्विस्ट से लिगामेंट रैबचर हो जाते हैैं। इसकी वजह से ज्वाइंट अनस्टेबल हो जाता है।
डॉ। वीके खेतान, सीनियर ऑर्थोपैडिक सर्जन