शहर में बंदरों को पकड़ने की नगर निगम की कवायद औंधे मुंह गिरी

एजेंसी काम छोड़ भागी, अक्टूबर-नवंबर में हुए टेंडर में नहीं आए आवेदन

BAREILLY:

बरेली भले ही स्मार्ट सिटी बनने की जद्दोजहद से जूझ रही हो, लेकिन इस शहर के बंदर स्मार्टनेस का ककहरा बहुत पहले ही सीख चुके हैं। हालत यह है कि बंदरों की अक्लमंदी और दबंगई नगर निगम पर भी हावी हो गई है। शहर में बंदरों का आतंक अपने चरम पर है। इनकी धरपकड़ करने के लिए बुलाई गई एजेंसी ने बंदरों के सामने ही घुटने टेक दिए। नगर निगम से करार वाली एजेंसी बंदर पकड़ने की मुहिम बीच में ही बंद कर भाग खड़ी हुई। पिछले दो महीने से शहर से बंदर पकड़ने की कवायद मौसम की तरह ठंडी पड़ गई है। इतना ही नहीं बंदरों को पकड़ने के लिए नई एजेंसियों ने भी निगम के सामने हाथ खड़े कर दिए हैं।

खाली रह गए दो टेंडर

बरेली में बंदरों के आतंक से जनता परेशान है। हर साल बंदरों को पकड़ने के लिए निगम की ओर से एजेंसी हायर कर धरपकड़ अभियान चलाया जाता है। लेकिन ऐसे अभियान रस्मी कार्यवाही से ज्यादा असरदार कभी नहीं दिखे। निगम ने अगस्त के दौरान मथुरा की नामी एजेंसी को बंदर पकड़ने का जिम्मा सौंपा। लेकिन बंदरों के आतंक के चलते एजेंसी ही काम काज छोड़ भाग खड़ी हुई। इसके बाद मजबूरन निगम को अक्टूबर व नवंबर में दो बार नए टेंडर निकालने पड़े। लेकिन दोनों ही बार एक भी एजेंसी ने बरेली के बंदरों को पकड़ने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

सर्दी का मौसम था बेहतर

बंदरों को पकड़ने की कवायद हर साल अक्टूबर-नवंबर से शुरू की जाती है। वजह ठंड के दिनों में बंदर बेहद सुस्त पड़ जाते हैं और इन्हें पकड़ना आसान रहता है। बंदरों को पकड़कर पीलीभीत के जंगलों में छोड़ दिया जाता है। जिससे वे दुबारा शहर न आ सके। लेकिन इस बार सर्दियों में ही इस कवायद के ठप पड़ जाने से मार्च-अप्रैल आने तक बंदरों का आतंक एक बार फिर जनता के लिए दिक्कत साबित होगा।

कम रेट से दिक्कत बढ़ी

बंदरों को पकड़ने की मुहिम पर ब्रेक लगने की एक अन्य वजह निगम की ओर से बंदर पकड़ने का कम रेट भी है। निगम की ओर एजेंसी को एक बंदर पकड़ने का बजट 300-350 रुपए दिया जाता है। जबकि दिल्ली व आसपास के एरिया में यही चार्जेस 1000 रुपए प्रति बंदर तक है। ऐसे में बाहर की अन्य एजेंसियां बरेली में बंदर पकड़ने की मुहिम में टेंडर डालने में दिलचस्पी नहीं ले रही।

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बंदर पकड़ने वाली जिस एजेंसी को हायर किया गया था, वह अभियान छोड़ भाग गई है। अक्टूबर-नवंबर में दो बार टेंडर निकाले गए लेकिन एक भी एजेंसी ने बंदर पकड़ने के लिए टेंडर नही डाला। निगम की लोकल सहयोगी एजेंसी से बंदर पकड़वाने की मुहिम शुरू की जाएगी। - डॉ। अशोक कुमार, नगर स्वास्थ्य अधिकारी