- बाल विकास एवं महिला आयोग की सर्वे रिपोर्ट में हुआ खुलासा, अशिक्षा व गरीबी बन रही वजह

- घर में डिलीवरी होने की वजह से मां और बच्चों दोनों ही कुपोषण के शिकार, बढ़ रहे केसेज

BAREILLY: ग्रामीण इलाके की ज्यादातर प्रसूताएं अवेयरनेस और प्राइवेट हॉस्पिटल्स के महंगे खर्च के कारण घर पर ही बच्चों को जन्म दे रही हैं। जिससे नियमित टीकाकरण न होने से जच्चा-बच्चा कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। इस कारण मृत्युदर में भी इजाफा हुआ है। चौंकाने वाला यह खुलासा बाल विकास एवं महिला आयोग की ओर से कराए गए सर्वे में हुआ है। जिसके मुताबिक सरकार की ओर से आयोजित तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद ग्रामीण महिलाएं इसका लाभ नहीं उठा पा रही हैं।

सर्वे की वजह

देश में बढ़ते कुपोषण के आंकड़ों की रोकथाम के लिए बाल विकास एवं महिला आयोग ने वर्ष 2013-14 में सर्वे कराया। जिसमें सबसे पहले प्रेग्नेंसी से लेकर बच्चों के जन्म तक की स्थितियों, खामियों और हीलाहवाली को जानने का प्रयास किया गया। साथ ही सरकारी योजनाओं की स्थिति एवं कार्यकत्रियों की भूमिका को जानने का प्रयास किया गया। अधिकारियों के मुताबिक वर्ष 2014 में हुए सर्वे की रिपोर्ट को वर्ष 2015 में पब्लिश किया गया।

24 परसेंट बच्चे घर पर जन्में

बच्चों को घर पर जन्म देने वाले महिलाओं का आंकड़ा बरेली में करीब 24 परसेंट है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अस्पतालों तक जिले की 47 परसेंट ग्रामीण महिलाएं पहुंचती हैं। वहीं, प्राइवेट हॉस्पिटल तक ग्रामीण महिलाओं की पहुंच महज 29 परसेंट है। शेष 24 परसेंट प्रेग्नेंट महिलाओं की डिलीवरी घर पर हो रही है। सर्वे के लिए वर्ष 2013 से 14 के बीच सभी सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल्स में जन्में नवजातों की तकरीबन 1 लाख 34 हजार मां को शामिल किया गया।

कारण

1. अशिक्षा - ग्रामीण एरिया में किए गए इस सर्वे के मुताबिक शिक्षित महिलाओं का आंकड़ा महज 48.3 है। महिलाओं को सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं है।

2. गरीबी - प्रेग्नेंट महिलाओं के परिजन अस्पतालों में होने वाले खर्च को और दौड़ भाग में खर्च होने वाली राशि को बचाने के लिए भी अस्पतालों में डिलीवरी नहीं कराते हैं।

3. डायट वैक्सीनेशन - निजी एवं सरकारी अस्पतालों में प्रेग्नेंसी के दौरान बताए जाने वाले डायट चार्ट और टीकाकरण में होने वाले खर्च से बचने के लिए।

मां-बच्चा दोनों कुपोषित

अधिकारियों के मुताबिक घर पर हो रही डिलीवरी की वजह से जिले में कुपोषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान मां और शिशु को पूरक आहार नहीं मिल पाता। वह क्या खाएं, क्या सावधानियां बरतें, कौन से इंजेक्शन लगवाएं की जानकारी नहीं हो पाती है।

एएनएम के हाल

देश भर में हुए सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 49 परसेंट एएनएम व आशाएं प्रसूता महिलाओं के घरों की दहलीज तक नहीं पहुंच रहीं हैं। जिसमें बरेली मंडल में प्रसूताओं के घर जाने वाली एएनएम व आशाओं का आंकड़ा 59 फीसद है। जिले में ग्रामीण एरिया में नवजात बच्चों की देखभाल व पेरेंट्स को अवेयर करने के लिए एएनएम व आशा 57 परसेंट व शहरी एरिया में 55.23 परसेंट है।

पिछले वर्ष हुए सर्वे के मुताबिक घर पर डिलीवरी होने की वजह से कुपोषण के केसेज बढ़ रहे हैं। एएनएम एवं आशाओं की लापरवाही भी उजागर हुई है। जिसे आधार बनाकर विभागीय जांच कर कार्रवाई की जाएगी।

युगल सांगुड़ी, डीपीओ