ओपीडी में जुटने वाले औसतन 3000 मरीजों के लिए नहीं टॉयलेट्स की सुविधा

महिला मरीजों, तीमारदारों को खुले में जाने की मजबूरी, एक साल में नहीं बने 3 बायो टॉयलेट्स

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महिला मरीजों, तीमारदारों को खुले में जाने की मजबूरी, एक साल में नहीं बने फ् बायो टॉयलेट्स

BAREILLY:

BAREILLY:

गांव-शहर में स्वच्छ भारत मिशन की सफलता के तमाम कसीदे भले ही पढ़े जा रहे हैं, लेकिन मंडलीय अस्पताल में यह बदहाली के दौर से गुजर रहा है। ताज्जुब मानेंगे कि रोजाना करीब ब्000 से अधिक आने वाले पेशेंट्स व तीमारदार के लिए अस्पताल में एक अदद टॉयलेट तक नहीं है। न ही अस्पताल के आसपास ही सुलभ शौचालय जैसी कोई व्यवस्था है, जहां वह टॉयलेट के लिए जा सकें। ऐसे में, महिलाओं व पुरुषों को शर्मशार होकर परिसर के खुले में टॉयलेट के लिए जाना पड़ता है। जबकि, साल भर पहले बॉयो टॉयलेट बनाए जाने की योजना थी, लेकिन वह लापरवाही की भेंट चढ़ गई।

ओपीडी मरीजों के लिए टॉयलेट नहीं

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ओपीडी में रोजाना औसतन क्म्00-क्800 तक नए मरीज आते हैं। पुराने पर्चे वाले मरीजों की तादाद भी औसतन म्00 से 800 तक रोजाना होती है। कुल मिलाकर ओपीडी में डेली ख्भ्00 से ज्यादा नए-पुराने मरीज इलाज के लिए जुटते हैं। इन मरीजों के साथ इनके तीमारदार भी ओपीडी पहुंचते हैं। जिससे यह आंकड़ा ब्000 के करीब पहुंच जाता है। ओपीडी में रोजाना जुटने वाली मरीजों की इतनी भीड़ होने के बावजूद उनके लिए एक भी टॉयलेट की सुविधा मयस्सर नही। हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से ओपीडी के मरीजों के लिए टॉयलेट की जरूरत को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया।

महिला मरीजों के लिए मुसीबत

सुबह 8 से दोपहर ख् बजे तक खुलने वाली ओपीडी में आने वाले मरीजों में करीब ब्भ् फीसदी महिलाएं व ग‌र्ल्स भी होती है। पर्चा बनाने से लेकर इलाज के लिए डॉक्टर को दिखाने और फिर लंबी लाइन में लगकर दवा पाने तक करीब दो घंटा औसतन हर मरीज को लग जाता है। इस दौरान मरीज खासकर महिलाओं को टॉयलेट जाने की जरुरत महसूस हुई तो उनके लिए ऐसी सुविधा न होने से सिचुएशन क्रिटिकल हो जाती है। दूर दराज के एरियाज और अन्य जिलों से आई महिलाओं को मजबूरी में खुले में ही जाने को मजबूर होना पड़ रह है, लेकिन इस शर्मनाक कंडीशन पर जिम्मेदार कभी नहीं जाग रहे।

अपग्रेडेशन मगर टॉयलेट्स नहीं

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल और फीमेल हॉस्पिटल को नई इमारत, इलाज, और मेडिकल सुविधाओं से लैस करने को अपग्रेडेशन की कवायद चल रही है। शासन की ओर से दोनों हॉस्पिटल के अपग्रेडेशन में सवा 8 करोड़ का बजट जारी किया गया है, लेकिन अपग्रेडेशन के करोड़ों के बजट में दोनों हॉस्पिटल्स के ओपीडी मरीजों के लिए अदद टॉयलेट्स बनाए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। अपग्रेडेड डिविजनल हॉस्पिटल में भी ओपीडी के हजारों मरीजों के लिए टॉयलेट के लिए खुले में जाने की ही व्यवस्था रखी गई है।

एडमिट मरीजों के तीमारदार भी परेशान

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मरीजों के लिए सर्जिकल वार्ड और मॉरच्युरी के पास टॉयलेट्स बनाए गए हैं। सड़क पार हॉस्पिटल के दूसरे हिस्से में स्थित सर्जिकल वार्ड के पास बने टॉयलेट्स में ओपीडी के मरीजों के जाने का सवाल ही नहीं उठता। वहीं मॉरच्युरी के पास बने सुलभ शौचालय में ताला पड़ा रहता है। दो मेल टॉयलेट जो बने भी है, वह ओपीडी से इतने दूर है कि वहां तक मरीज पहुंचते नहीं। पहुंचना तो दूर मरीजों को इन टॉयलेट्स की जानकारी ही नहीं है। ओपीडी आने वाले मरीज व उनके संग आए तीमारदारों ही नहीं बल्कि हॉस्पिटल के अलग अलग वार्ड में एडमिट मरीजों के तीमारदार भी टॉयलेट्स की सुविधा के लिए तरसते हैं। ऐसे में टॉयलेट्स न होने की सूरत में यह लोग ओपीडी के पीछे बन रही नई इमारते से सटे सूनसान खाली जमीन में जाने को मजबूर हाेते हैं।

नहीं बन सके बायो टॉयलेट्स

हॉस्पिटल में क्राइसिस बनी टॉयलेट्स की दिक्कत पर एक साल पहले काफी मुश्किलों के बाद जिम्मेदारों की नींद टूटी थी। हॉस्पिटल में तीन जगह बायो टॉयलेट्स बनाए जाने की योजना बनी। इनमें से एक फीमेल हॉस्पिटल में और दो जगह मेल हॉस्पिटल में बायो टॉयलेट्स बनाए जाने का प्रस्ताव पास हुआ। इन बायो टॉयलेट्स में पे एंड यूज सिस्टम लागू करने की शर्त रखी गई। जिससे लोग इसके रखरखाव व सफाई के भागीदार बने। नगर निगम से जुड़ी एक एजेंसी को बकायदा इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन टेंडर खुलने के बाद ही अचानक एजेंसी गायब हो गई। एजेंसी के पीठ दिखाने से जिम्मेदारों ने भी इस पूरे मामले में मुंह फेर लिया और पूरी योजना ही डिब्बा बंद हो गई।