केस वन

ब्रह्माी सिंह ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से अपने वाहन संख्या यूपी 14 एबी 1179 का बीमा कराया था। पॉलिसी की वैधता के बीच ही वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसके मेंटीनेंस में डेढ़ लाख रुपए खर्च आया, लेकिन कंपनी ने यह कह कर पैसे देने से मना कर दिया कि दुर्घटना के वक्त पॉलिसी होल्डर्स ने इंश्योरेंस कंपनी को जानकारी नहीं दी। पीडि़त ने 16 जुलाई 2014 को इस बात की शिकायत कंज्यूमर फोरम में दर्ज कराई। फोरम ने इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ 16 जून 2015 को जजमेंट देते हुए कंपनी पर 41,198 रुपए का जुर्माना लगाया है। साथ ही कंपनी को वाद व्यय में खर्च हुए 5,000 रूपए भी पीडि़त को देने होंगे।

केस टू

ठिरिया के शमशेर खां ने ट्रक की पॉलिसी रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी से ली थी। रोड एक्सीडेंट में ट्रक डैमेज होने पर शमशेर ने जब क्लेम किया तो कंपनी ने पैसा देने से मना कर दिया। शमशेर ने बताया कि ट्रक के मेंटीनेंस में 1,40,810 रुपए खर्च आए थे। कंपनी की ओर से बाकायदा सर्वे भी किया गया था। कंपनी ने क्लेम के पैसे देने से मना कर दिया। इस मामले में भी फोरम ने पीडि़त के फेवर में जजमेंट दिया है। कंपनी पर 1,00,000 रुपए जुर्माना और केस की सुनवाई पर खर्च हुए 5,000 रुपए 30 दिन के अंदर देने है।

केस थ्री

मोहनपुर के हामिद खान ने यूनाइटेड इंडिया इं़श्योरेंस कंपनी से बाइक की पॉलिसी ले रखी थी। इसी दौरान आग लगने की वजह से बाइक जलकर नष्ट हो गई। कंपनी ने क्लेम का पैसा देने से इनकार कर दिया। कंपनी ने सर्वे में बाइक के आग से जलने की पुष्टि न होने की बात कहकर क्लेम देने से मना कर दिया। फोरम ने जजमेंट देते हुए इंश्योरेंस कंपनी पर 26,500 और 3000 हजार रुपए बतौर हरेसमेंट देने का फैसला कस्टमर के पक्ष में दिया। 30 दिन के अंदर पैसा नहीं देने पर 7 परसेंट वार्षिक व्याज का भी आदेश दिया था।

BAREILLY :

इंश्योरेंस कंपनियां वाहनों के बीमा के लिए पब्लिक से बड़े-बड़े वायदे करती हैं, लेकिन जब क्लेम देने की बारी आती है तो वह तमाम खामियां निकालकर पॉलिसी होल्डर को धेला भी नहीं देती हैं। ये ऊपर लिखे केस तो इंश्योरेंस कंपनियों के मनमानी की महज बानगी भर हैं। उपभोक्ता फोरम में ऐसे तमाम केस अक्सर दायर होते रहते हैं, जिनमें पॉलिसी होल्डर को फोरम के जरिए ही राहत मिल पाती है।

एफआईआर होने पर भी आनाकानी

इंश्योरेंस कराए गए वाहन के चोरी होने पर पॉलिसी होल्डर को क्लेम मिलने का प्रावधान है, लेकिन कंपनियां क्लेम देते वक्त इसमें तमाम खामियां निकालना शुरू कर देती हैं। एफआईआर दर्ज कराना और पॉलिसी पेपर पूरे होना कंपनियों की पहली शर्त होती है। हैरत की बात है कि इंश्योरेंस होल्डर के पास पेपर पूरे होते हैं तो भी इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देने के बहाने ढूंढ लेती हैं, जिनसे आम पब्लिक वाकिफ नहीं होती है।

फोटो शूट करने में चूके तो गए

एक्सीडेंटल क्लेम में वाहन की मरम्मत का खर्च इंश्योरेंस कंपनी को देना होता है, लेकिन क्लेम देने में कंपनी एक्सीडेंट के वक्त की फोटो को बड़ा अड़ंगा बनाती हैं। क्योंकि रोड एक्सीडेंट होने पर पुलिस रास्ता क्लियर कराने के लिए वाहन को खींच कर सड़क किनारे खड़ा कर देती है। इंश्योरेंस कंपनी को क्लेम न देने का बहाना करने के लिए इतना ही काफी होता है।

प्राइवेट कंपनियों का पंगा ज्यादा

शहर में वाहन की पॉलिसी करने 17 इंश्योरेंस कंपनियां है। इनमें से 4 सरकारी और 13 प्राइवेट कंपनियां है। जिनके द्वारा रोजाना 100 से अधिक वाहनों के इंश्योरेंस किए जाते है। क्लेम देने में सबसे अधिक आनाकानी प्राइवेट कंपनियां करती है। कंज्यूमर फोरम में प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज हैं।

30 दिन में क्लेम का पैसा

क्लेम करने पर इंश्योरेंस कंपनियां बाकायदा मौके पर जाकर सर्वे करती है। डॉक्यूमेंट यदि ओके है तो मैक्सिमम 30 दिन के अंदर क्लेम पर पैसा मिल जाता है, लेकिन प्राय: कंपनियों द्वारा ऐसा नहीं किया जाता है, जिस वजह से वाहन ओनर्स परेशान हो रहे है। इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि वाहन के जल जाने या चोरी होने की स्थिति में वाहन की की वैल्यू के हिसाब से पेमेंट होता है। थर्ड और फ‌र्स्ट पार्टी इंश्योरेंस में लगभग एक ही नियम फॉलो किया जाता है।

फोरम से मिल रहा न्याय

वर्ष 2014 की करें तो, कंज्यूमर्स फोरम में इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़े 916 मामले दर्ज हुए थे। इनमें से 898 मामलों में जजमेंट भी हो चुका है। ज्यादातर जजमेंट इंश्योरेंस कंपनियों के खिलाफ ही हुए है। फिलहाल शहर के दोनों कंज्यूमर्स फोरम में इंश्योरेंस सेक्टर के 86 मामले पेंडिंग है। इस साल भी वाहन क्लेम के अभी तक 30 से अधिक नए मामले फोरम में आ चुके है।

फोरम से पहले यहां करें कंप्लेन

क्लेम यदि नहीं मिलता है तो, कस्टमर इंश्योरेंस कंपनी की ग्रिवांस सेल में कंप्लेन दर्ज कर सकते हैं। ग्रिवांस सेल में सुनवाई नहीं होने की स्थिति में न्यूट्रल सेल या फिर इंश्योरेंस रेगुलेटरी डेवलपमेंट अथॉरिटी (आईआरडीए) में कंप्लेन दर्ज कराई जा सकती है। फाइनल कोई और प्रॉब्लम होने पर पीडि़त पक्ष कंज्यूमर फोरम में कंप्लेन दर्ज करा सकता है।

पॉलिसी कराते समय ध्यान दें

- एग्रीमेंट के ऑप्शन को ध्यान से पढ़ें।

- पॉलिसी के बारे में प्रॉपर जानकारी ले।

- पॉलिसी फार्म खुद पढ़ें और प्रीमियम का ध्यान दें।

- डॉक्यूमेंट की कापी सेफ रखनी चाहिए।

क्लेम करते समय

- वाहन दुर्घटनाग्रस्त या चोरी होने पर 24 घंटे के अंदर इंश्योरेंस कंपनी को सूचित करें।

- विशेष परिस्थितियों में 7 दिनों के अंदर इंफार्मेशन दे देनी चाहिए।

- पॉलिसी बांड, ड्राइविंग लाइसेंस और आरसी की ओरिजनल कॉपी होना कम्पल्सरी।

- वाहन में हुए टूट-फूट का बिल, जहां पर रिपेयर हुआ है।

- किसी की डेथ होने की स्थिति में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और एफआईआर की कॉपी।

- क्लेम करते समय इंश्योरेंस कंपनी को जो बातें बता रहे है उस बात को अंत तक फॉलो करें।

- संबंधित कंपनी के किसी भी नजदीकी ब्रांच में कंप्लेन कर सकते हैं।

कंपनियां क्या करती है बहाना

- चोरी के एक या दो दिन बाद की एफआईआर की कॉपी होना।

- एक्सीडेंट प्लेस से वाहन को सर्वे टीम पहुंचने से पहले मौके से हटाना।

- समय पर क्लेम न करने का।

- डाक्यूमेंट में खामियों को बताना।

- वाहन के मेंटीनेंस में आए खर्च से कम क्लेम का पैसा देने का प्रयास करना।

- पार्टी द्वारा साक्ष्य छिपाने का आरोप लगाना।

- क्लेम की डेट से रिकॉर्ड की गई बातों में अंतर पाया जाना।

फोरम में वाहन क्लेम के मामले सबसे अधिक आते हैं। साक्ष्य के आधार पर जो भी दोषी पाया जाता है उसके खिलाफ फैसला सुनाया जाता है।

बालेंदु सिंह, प्रेसीडेंट, कंज्यूमर फोरम

वाहन के साथ कोई भी अनहोनी होने पर वाहन ओनर को तुरंत इंफार्मेशन देनी चाहिए। ताकि, इंश्योरेंस कंपनियां वाहन किस कंडीशन में है जान सके। इससे क्लेम का पैसा मिलने में आसानी हो जाती है।

सूरज प्रकाश, सीनियर असिस्टेंट, दि न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी