- विंडरमेयर थिएटर फेस्ट में थर्सडे को कहां गए मेरे उगना प्ले का हुआ मंचन

BAREILLY:

'छह सौ साल पहले के विद्यापति और उनके समाज को आज के बाबा नागार्जुन, राजकमल और रेणु के साथ जोड़कर ले चलने का नाटकीय प्रयोग काफी सफल रहा। विद्यापति द्वारा लिखित गीतों में से कुछ गीतों को चुनकर उन्हें दर्शकों तक पहुंचाने का सफल प्रयोग निर्देशक संजय उपाध्याय ने कर दिखाया। 11वें विंडरमेयर थिएटर फेस्ट में थर्सडे को बिहार पटना के निर्माण कला मंच ग्रुप और संजय उपाध्याय द्वारा निर्देशित प्ले 'कहां गए मेरे उगना का' का मंचन किया गया। जिसमें निर्देशन, बैकग्राउंड म्यूजिक, प्रॉप्स एंड प्रॉपर्टी समेत संवादों की बेहतरीन प्रस्तुति ने लोगों का मन मोह लिया। इस दौरान डॉ। बृजेश्वर सिंह, डॉ। गरिमा सिंह, शिखा सिंह, नवीन कालरा मौजूद रहे।

दौर पुराना था।

चौदहवीं शताब्दी में मिथिला में ओइनवार वंश का राज्य था। जो दिल्ली और जौनपुर के सुल्तान के अधीन था। राजा शिव सिंह उसी वंश के राजा थे। कवि विद्यापति पांच राजाओं के राज पंडित होते हुए भी राजा शिव सिंह के सखा थे। सुल्तान को कर नहीं देने पर शिव सिंह कैद हुए तो विद्यापति ने उन्हें मुक्त कराया। लेकिन क्रोधित शिव सिंह ने विद्रोह कर दिया जिस पर सुल्तान ने चढ़ाई कर दी। शिव सिंह भाग निकले। विद्यापति और रानी लखिमा जो शिव सिंह की पत्‍‌नी थी नेपाल नरेश की शरण में चले गए। उसी दौरान उनकी मदद के लिए भगवान शिव स्वयं उगना ग्रामीण का वेश धारण कर उनकी सेवा करने लगे। इसी तरह कथा कई उतार चढ़ाव के साथ बढ़ते हुए सत्यम शिवम सुंदरम का संदेश देकर समाप्त हो जाता है।