बरेली: कोई खुले में न सोएसभी को रैन बसेरा बने हैं, यह फरमान यूपी के सीएम ने दिया था। इसकी निगरानी के लिए शहर के अफसरों को भी जिम्मेदारी दी गई। ताकि रैन बसेरों में व्यवस्थाएं ठीक रहे और जरूरतमंद आकर रैन बसेरों में रुक सके.फ्राइडे रात को रूक-रूक कर बूंदाबांदी भी हो रही थी इसके बाद भी शहर में लोग खुले में सोने को मजबूर हैं। इसकी हकीकत जानने के लिए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम ने फ्राइडे रात करीब 10 बजे शहर के कई एरिया में रियलिटी चेक किया तो हकीकत सामने आ गई। शहर के कैंट एरिया रोड, रेलवे पार्किंग, रेलवे सर्कुलेटिंग एरिया, सिविल लाइंस, जिला महिला एवं पुरुष अस्पताल सहित ओल्ड रोडवेज बस स्टैंड का रियलिटी चेक किया। इसमें मौके पर सिर्फ ओल्ड रोडवेज बस स्टैंड रैन बसेरा जरूर ठीक मिला जबकि जिला महिला अस्पताल ओपन टीन में लोग सोते मिले तो पुरुष अस्पताल के रैन बसेरा में तो सिर्फ मरीजों वाले बेड और उन पर गद्दे लगे थे लेकिन चादर और लिहाफ तक नहीं था। वहीं रोड किनारे ओपन एरिया में सोने वालों से जब बात की गई तो कई को रैन बसेरा नहीं पता तो किसी ने बगैर आईडी के रैन बसेरा में एंट्री न देने की बात कही। आईए बताते हैं आपको शहर के रैन बसेरा के हालात और ओपन एरिया में सोने वालों की पूरी हकीकत

रूक-रूक कर हो रही थी बूंदा-बांदी

फ्राइडे दिनभर शीत लहर चलने के बाद शाम से रूक-रूककर बारिश भी हो रही थी। इसके बाद भी लोग खुले में किस तरह सोते हैं। क्योंकि इसमें कई लोगों को पता ही नहीं कि रैन बसेरा बने हैं तो कहां पर बने हैं और रैन बसेरा में रूका कैसे जाता है। इसमें कई लोग तो इसी के चलते रोड किनार खुले आसमान में सोते हैं। इन लोगों की माने तो यह बारिश होने पर आसपास कहीं छत मिलने पर छिपजाते हैं इसके बाद फिर से खुले आसमान में सोकर ही रात गुजारते हैं।

महिलाएं नहीं जाना चाहती

शहर में रैन बसेरों में कुछ की बात छोड़ दे तो अधिकांश रैन बसेरों में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग रुकने की व्यवस्था नहीं है। जिस कारण महिलाएं रैन बसेरों में जाना नहीं चाहती हैं।

कैंट रोड: 9:45

कैंट रोड पर रात को एक युवक लिहाफ में मुंह दबाए लेटा था। मौके पर किसी के रूकने की आवाज सुनकर भी युवक नहीं उठा। पूछने पर बताया कि उसे किसी ने लिहाफ दे दिया है, इसी के सहारे पूरी रात रोड किनारे बने फुटपाथ पर गुजार लेता है।

9:50 रेलवे जंक्शन

रेलवे जंक्शन पर मुसाफिर खाना बंद है प्लेटफार्म पर जरूरतमंद को ही एंट्री है। इसी के चलते सर्कुलेटिंग एरिया में कई लोग सोते हुए मिले। पूछने पर बताया कि यहां कहीं पर शेल्टर होम नहीं है, इसीलिए वह खुले में लेट हैं। बारिश होने पर बताया कि वह जो वाहन खड़ा होता है उसके नीचे छिप जाते हैं।

10:00 सिविल लाइंस

सिविल लाइंस हनुमान मंदिर के सामने करीब चार लोग बंद शॉप के आगे सो रहे थे। पूछने पर बताया कि बगैर आधार कार्ड के रैन बसेरा में एंट्री नहीं मिलती है इसीलिए हम लोग रैन बसेरा में नहीं जाते हैं बल्कि शॉप के आगे ही सो रहे हैं।

10:20 जिला महिला हॉस्पिटल

जिला महिला हॉस्पिटल में तीमारदारों के लिए स्थाई रैन बसेरा बनाया गया है लेकिन इस रैन बसेरा को या तो ओपन नहीं किया जाता है या फिर वहां पर व्यवस्थाएं नहीं होती है। जिस कारण हॉस्पिटल आने वाले तीमारदारों को टीन के बने शेड में ही अपने बिस्तर पर रात गुजारनी पड़ती है।

10:30 जिला पुरुष हॉस्पिटल

जिला पुरुष हॉस्पिटल में स्थाई रैन बसेरा बना था, देखने में काफी अच्छा भी था। रैन बसेरा के अंदर जाकर देखा तो पेशेंट वाले बेड पड़े थे उन पर गद्दा भी रबर के पड़े हुए थे। लेकिन चादर या फिर लिहाफ की कोई व्यवस्था नहीं थी। दो-चार लोग लेटे हुए थे।

10:40 ओल्ड रोडवेज बस स्टैंड

रोडवेज बस स्टैंड अस्थायी रैन बसेरा बना हुआ था, आने वाले जरूरतमंदों के लिए तख्त और गद्दा लिहाफ भी थे सीसीटीवी भी लगा था। थर्मल स्क्रीनिंग की भी व्यवस्था थी। लेकिन यहां रैन बसेरा में सिर्फ तीन-चार महिलाएं और एक-दो पुरुष ही लेटे थे। हालांकि महिला पुरुष के लिए अलग व्यवस्था भी थी।

रैन बसेरा में आने वालों से आधार कार्ड मांगा जाता है किसी के पास नहीं होने पर जरूरतमंद को बगैर आधार कार्ड के भी रूकने दिया जाता है। कोविड गाइड लाइन भी फॉलो की जा रही है।

राहुल रैन बसेरा इंचार्ज

-रैन बसेरा देखा तो यहां पर आकर लेट गया लेकिन यहां पर हम तो अपनी चादर लेकर आए हैं। यहां पर कोई रूकने की व्यवस्था नहीं है। बस बेड ही पड़े हैं।

रामविष्ट,जिला पुरुष हॉस्पिटल

काफी दूर से यहां पर आए हैं, लेकिन यहां पर रैन बसेरा तो अच्छा बना है पेशेंट के बेड पर गद्दा तो रबर के डाल दिए लेकिन चादर तक नहीं है। अब ऐसे में कोई कैसे रात गुजारे।

राजकुमार,जिला पुरुष हॉस्पिटल