तो कम हो गया खर्च

कम्युनिकेशन की फील्ड में हुए रिवोल्यूशन के बाद टेलीग्राम, स्पीड पोस्ट, रजिस्ट्री के खर्च में काफी कमी आई है। अब बड़े

से बड़ा डाक्यूमेंट फाइल विदिन सेकेंड्स ईमेल के जरिए कहीं भी सेंड की जा सकती है। वहीं अब इंटरनेट कनेक्शन होने

पर मोबाइल के जरिए ही वीडियो कांफ्रेंसिंग भी की जा सकती है। इतना ही नहीं, एंड्रायड और स्मार्ट फोन के लिए

व्हाट्सएप जैसी फैसिलिटीज मौजूद हैं, जिससे बिना किसी एक्स्ट्रा खर्च के कम्युनिकेशन में बने रह सकते हैं।

The change is not suitable

कम्युनिकेशन के फील्ड में हुए रिवोल्यूशन ने जहां एक ओर पूरी दुनिया को ग्लोबल विलेज में तब्दील कर दिया, वहीं

समाज में कुछ कुरीतियों को भी जन्म दिया। इंटरनेट के बढ़ते यूजर्स के बीच पोर्न इंडस्ट्री ने अपनी पहचान बनाई। इंटरनेट

से पहले जो चीज समाज क स्याह पहलू थी, वह धीरे-धीरे नासूर बनती चली गई। कम होती दूरियों के बीच हाइटेक

टेक्नोलॉजी ने दूरियां और ज्यादा बढ़ा दीं। अब लोग सोशल साइट्स पर ही अपना टाइम स्पेंड करते हैं, साथ में बैठकर

होने वाली सोसायटी मीटिंग्स, डिस्कशंस के दौर खत्म होते चले गए।

जैसे दुनिया मुट्ठी में आ गई

जॉब के काल लेटर हों या पर्सनल फंक्शन के इन्विटेशंस सबके लिए अब ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं होती है। 20

साल पहले जब ज्यादातर कम्युनिकेशंस पोस्ट के जरिए आते थे, तो उनके पहुंचने की गारंटी नहीं होती थी। प्रजेंट टाइम में

ईमेल से यह सब आसान हो गया है। कम्युनिकेशन ईजी होने से बच्चों के घर से बाहर रहने पर भी प्रॉब्लम नहीं आती

है। जब मैंने जॉब्स के लिए अप्लाई किया था, तो दो गवर्नमेंट जॉब्स के कॉल लेटर लास्ट डेट निकल जाने के बाद मिले

थे। पर अब मोबाइल और ईमेल ने दुनिया को मुट्ठी में ला दिया है।

-प्रो। मैसूर करुणा, एचओडी,

केमिकल इंजीनियरिंग, आरयू

तो नहीं हो पाया बेटे का admission

यह सही है कि कम्युनिकेशन की फील्ड में लास्ट 15 ईयर्स में काफी चेंजेज आए है, पर 1994 में मेरे बड़े बेटे का

इंजीनियरिंग में सेलेक्शन होने के बाद भी कानपुर से उसका एडमिशन लेटर नहीं आ पाया था, पर जब लेटर मिला तब

तक लास्ट डेट निकल गई थी। ऐसे में उसे एक साल तक नेक्स्ट सेशन का वेट करना पड़ा, इसके बाद उसने नेक्स्ट ईयर

एप्लाई किया। इसके बाद से वह अमेरिका में सेटेल हो गया है। अब तो उससे बात करना भी सेकेंड्स की बात है.दरअसल,

पहले जो काम महीनों में भी मुश्किल से होता था, उसे अब करना चुटकी का खेल है।

-डॉ। एसपी सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, बीसीबी

ऐसा रहा communication का सफर

1850 - टेलीग्राफ के साथ शुरू हुआ कम्युनिकेशन का सफर।

1890 - पहला टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किया गया।

1913 - पहला ऑटोमेटिक एक्सचेंज शिमला में शुरू हुआ।

1933 - रेडियोटेलीफोन सर्विस शुरू की गई।

1960 - लखनऊ और कानपुर के बीच पहली सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग शुरू की गई।

1995 - इंडिया में पेजर इंट्रोड्यूस किया गया।

1995 - 15 अगस्त को पहली मोबाइल फोन सर्विस और इंटरनेट सर्विस इंट्रोड्यूस की गई।

1995 - 31 जुलाई क कोलकाता में पहला सेल्युलर फोन शुरू हुआ।

2007 - इंटरनेट को ईजिली अवेलेबल कराने के लिए ईयर ऑफ ब्रॉडबैंड घोषित किया गया।

2008 - बीएसएनएल ने 3जी मोबाइल सर्विस शुरू की।

2010 - प्राइवेट टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स को 3जी सर्विस शुरू करने की परमिशन मिली।

डिफरेंट एप्स के इंट्रोड्यूस होने से मोबाइल अब इंटरटेनमेंट का भी बेहतर जरिया है। ओल्ड टाइम में कैसी प्रॉब्लम्स आती

थीं, पता नहीं। वैल्यु एडेड सर्विस के जरिए तो मोबाइल पर ही टीवी से लेकर एस्ट्रोलॉजी तक की सारी फैसिलिटीज मिल

जाती हैं।

-शुभम, स्टूडेंट

मैं उस लाइफ के बारे में इमेजिन भी नहीं कर सकता, जब मोबाइल और इंटरनेट की फै सिलिटीज नहीं होती थीं। दुनिया

के बारे में कुछ जान ही नहीं पाते। इंटरनेट के जरिए ही हम खुद को एडवांस कह पाते हैं। अगर मोबाइल ना हो तो जिंदगी

रुक ही जाएगी।

-अनवर, स्टूडेंट

मैं एक सॉफ्टवेयर डेवलपर हूं, इंटरनेट और मोबाइल के बिना तो लाइफ कैसी होगी यह समझ में भी नहीं आता है। बिना

इंटरनेट के सब रुक जाएगा। मेरे तो सभी कम्युनिकेशंस ईमेल से ही होते हैं। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए ही हमारी मीटिंग्स

होती हैं।

-नम्रता, सर्विसपर्सन