गोरखपुर (अमरेंद्र पाण्डेय)। घर से लेकर सार्वजनिक स्थलों पर टॉयलेट बनवाए गए, लेकिन क्या आपको पता है कि पब्लिक इंट्रेस्ट के लिए बनवाए गए टॉयलेट्स का क्या हाल है? असल में पब्लिक के लिए बनाए गए टॉयलेट गंदगी से पटे हैं।
गोरखपुर में भी टॉयलेट्स पर करीब 700 करोड़ रुपए खर्च हुए, लेकिन सिस्टम की अनदेखी के चलते अब इनकी साफ-सफाई भी नहीं होती, जबकि पब्लिक अवेयर है और साफ-सफाई भी चाहती है। अवेयरनेस का ही तो आलम है कि बीते रविवार सुबह गुलहरिया के जंगल डुमरी नंबर दो में खुले में शौच कर रहे युवक का कालिंदी नामक महिला ने विरोध किया। महिला ने न सिर्फ विरोध किया। बल्कि 112 नंबर डॉयल कर पुलिस को बुला लिया। वहीं, पुलिस युवक को हिरासत में लेकर थाने ले गई और माफी मांगने पर उसे छोड़ा गया।
पब्लिक अवेयरनेस के बावजूद सिस्टम पर चढ़ी गंदगी की मैली चादर से गोरखपुराइट्स निराश हैं और वे सार्वजनिक स्थलों पर बने टॉयलेट की साफ-सफाई की डिमांड कर रहे हैं।
700 करोड़ में बनाए गए 6.5 लाख टॉयलेट
बता दें, पंचायती राज विभाग की तरफ से 6.5 लाख टॉयलेट जिलेभर में बनाए गए है। डीपीआरओ हिमांशु राज शेखर ने बताया, 700 करोड़ की लागत से बनाए गए इन टॉयलेट
का इस्तेमाल के लिए लोगों को अवेयर किया गया। अवेयरनेस के साथ-साथ सुबह में खुले में शौच जाने वाले लोगों को जागरूक भी किया गया। उन्होंने बताया कि 1352 गांवों में
1248 सामुदायिक शौचालय का निर्माण कराया गया। वहीं नगर निगम की तरफ से नगर निगम के 70 वार्ड में 999 टॉयलेट बनाए गए हैैं। इन टॉयलेट के बनने से इस्तेमाल करने
वालों की संख्या में इजाफा हुआ है
सिटी एरिया के पब्लिक टॉयलेट गंदे
सभी लोग आज भी अवेयर नहीं हैं। आज भी सिटी के कुछ ऐसे पब्लिक टॉयलेट हैैं, जिनमें सुधार की जरूरत है। रुस्तमपुर, गोलघर, कचहरी आदि कई जगहों पर बने टॉयलेट के
हालात बद्तर हैं। साफ-सफाई नहीं होने से यहां अक्सर गंदगी रहती है। मार्केट में आने वाली वर्किंग लेडी को गंदगी के कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पडता है। कई बार काम
की वजह से घर से बाहर ज्यादा वक्त बिताना पड़़ता है, लेकिन जिम्मेदार इन टॉयलेट की देखरेख और साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते है।
इंफेक्शन का बना रहता है डर
इंदिरा बाल विहार के एक दुकान में काम करने वाली लेडी बताती है कि टॉयलेट है, लेकिन सफाई पर जिम्मेदार ध्यान नहीं देते है। यूरीन इंफेक्शन होने के डर से वह कभी भी
पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल नहीं करती है। मजबूरन इस तरह की कंडीशन में बाहर जाते समय टॉयलेट पेपर या डिसइंफेक्टेड के साथ कैरी करना मजबूरी बन जाता है.
कुछ हद तक इंडियन टायलेट है सेफ
वहीं गायनोक्लोजाजिस्ट डॉ। रीना श्रीवास्तव बताती है कि यूरीन इंफेक्शन के बहुत से कारण है, लेकिन सबसे बड़ा कारण तो गंदे टॉयलेट के इस्तेमाल से होता है। महिलाओं में
यूटीआई होने का सबसे बड़ा रीजन वेस्टर्न टॉयलेट के इस्तेमाल से ही होता है। इंफेक्शन के चांजेस वेस्टर्न टॉयलेट से ज्यादा होता है।
गंदे टायलेट इस्तेमाल से होती हैं ये डिज़ीज
- यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन
- नोरोवायरस इंफेक्शन
- हेपेटाइटिस ए इंफेक्शन
- सर्दी-जुकाम नाक बहना
- प्रेग्नेंसी में प्रॉब्लम
- मेंस्ट्रएंसन में प्रॉब्लम
- गोरखपुर जिले में कुल बनाए गए टॉयलेट : 6.5 लाख
- सामुदायिक टॉयलेट : 1248
- गोरखपुर जिले में बनाए गए टॉयलेट की लागत - 700 करोड़
- टायॅलेट की सफाई के लिए कर्मचारी 3052
- पब्लिक के हाथों की सफाई के लिए बांटे गए साबुन - 2 लाख पीस
फैक्ट फीगर
नगर निगम के अधीन सिटी के सामुदायिक शौचालय
मेल - 576
फीमेल - 423
टोटल - 999
यूरिनल - 110
नगर निगम के अधीन सिटी के सार्वजनिक शौचालय
मेल - 544
फीमेल - 365
टोटल - 909 यूरिनल -144
सीन-1: रुस्तमपुर एरिया में पब्लिक टॉयलेट है। पब्लिक टॉयलेट में आने वालों से 5 रुपए कर्मचारी वसूलते है, लेकिन पैसे लेने के बाद भी हैड वॉश की कोई व्यवस्था नहीं
की गई है। जबकि कई बार महिलाएं या पुरुष के मांग पर भी बहस करने पर उतारू हो जाते हैैं। टॉयलेट जो बनाए गए हैैं, वह भी बेहद गंदे है.
सीन-2: अंबेडकर चौक से फिराक गोरखपुरी चौराहे के बीच इलाहाबाद बैक के सामने पब्लिक टॉयलेट बनाया गया है, लेकिन उसमें पानी लगा हुआ है, जिसे राहगीर इस्तेमाल तो
जरूर करते है, लेकिन इसमें मेल राहगीर तो इस्तेमाल कर लेते है, लेकिन लेडीज के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। गंदगी होने के कारण लोग इस्तेमाल से पीछे हट जाते है।
जबकि जिम्मेदारों की इस पर नजर नहीं जाती है.
सीन-3: गोलघर स्थित मेन पोस्ट ऑफिस के पास पब्लिक का मूवमेंट ज्यादा है। पब्लिक के लिए बनाए गए टॉयलेट में गंदगी इतनी रहती है कि हर कोई जाने से पहले कई बार
सोचने पर मजबूर हो जाता है। गोलघर मॉर्केट के लिए आने वाले कंज्यूमर्स का मानना है कि मेन सिटी में पब्लिक टॉयलेट की हालत खराब है। फीमेल टॉयलेट में दरवाजें की जगह
बोरे का परदा लगा है। मेल टॉयलेट टूटी फूटी होने के साथ साथ धूल मिट्ट से भरा हुआ है। जिसे जिम्मेदार ठीक कराने के बजाय आंखें बंद कर रखे है.
यूनिवर्सिटी के काम से बैक आना होता है। आज ज्यादा टाइम लगने की वजह से टॉयलेट खोजने लगी, सामने देखा तो पब्लिक टॉयलेट था। टॉयलेट में जाकर देखा तो पानी लगा
मिला, जिसमें जाने से शूज भीग जाता.
युक्ति गुप्ता,
पांडेयहाता पोस्ट ऑफिस अक्सर कूरियर के काम से आना होता है। कभी टॉयलेट की जरूरत होती है तो भी नहीं जाती हूं। वजह गंदगी है। पोस्ट ऑफिस के पास मेन सिटी में बने फीमेल
टॉयलेट दरवाजे की जगह बोरे का परदा लगा है.
प्रियंबदा यादव
रुस्तमपुर पब्लिक टॉयलेट हों या कम्युनिटी टॉयलेट। सभी में गंदगी है। सफाई नहीं होने से मार्केट में पब्लिक परेशान होती है। अधिकारियों को टॉयलेट्स की साफ-सफाई पर अनिवार्य रूप से
ध्यान देना चाहिए।
आनंद कुमार
सर्वोदय नगर टॉयलेट को यूज करने के नाम पर पैसा तो पूरा लिया जाता है, लेकिन सुविधाएं नहीं दी जातीं। गवर्नमेंट ने स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर टॉयलेट तो बनवा दिए हैं। इनकी सफाई
पर भी ध्यान देना चाहिए।
अमित कुमार
आजाद नगर पब्लिक टॉयलेट पब्लिक की सुविधा के लिए है, इनकी सफाई के लिए जिम्मेदारी भी सफाई कर्मियों को सौंपी गई है, लेकिन इनकी लापरवाही सामने आई है, इनके खिलाफ
कार्रवाई की जाएगी। सभी पब्लिक टॉयलेट की सफाई होगी.
अविनाश कुमार सिंह, नगर आयुक्त