गोरखपुर (ब्यूरो).नेशनल बंबू मिशन के तहत कैंपियरगंज के लक्ष्मीपुर में एक सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) की स्थापना की गई है। यहां महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें बांस के खिलौनों, गिफ्ट आइटम्स, ज्वेलरी आदि बनाने में पारंगत किया गया है। अब सीएफसी से संबद्ध स्वयंसेवी समूह से जुड़ी महिलाओं द्वारा तैयार बांस के उत्पादों को बेहतर बाजार भी मिलने लगा है।

बांस की राखियां बनाने का अभिनव प्रयोग

गोरखपुर के डीएफओ विकास यादव ने बताया, नवाचार को लेकर ही यह ख्याल आया कि बंबू मिशन की सीएफसी में बांस की ईको फ्रेंडली राखियां बनवाई जा सकती हैं। इससे लोगों को पर्यावरण के अनुकूल राखियों का विकल्प मिलेगा और बनाने वाली महिलाओं की आमदनी भी बढ़ेगी। समूह की महिलाओं से बात हुई तो वह डीएफओ के विचार पर अमल करने को तैयार हो गईं। उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराया गया और शुरू हो गया बांस की राखियों को बनाने का सिलसिला।

महिलाओं ने खुद तय किए डिजाइन

महिलाओं को बांस के सजावटी सामान बनाने का ट्रेनिंग तो मिला है लेकिन प्रदेश में पहली बार बन रही बांस की राखियों की डिजाइन उनकी खुद की है। लक्ष्मीपुर सीएफसी पर राखी बनाने के काम में जुटी बिंदु देवी, राजमती, झिनकी, मीना, मीरा, शीला, संजू और अंजू बताती हैं कि मोबाइल पर राखियों की डिजाइन देखने के बाद उन्होंने कुछ परिवर्तन कर बांस से बनने वाली राखियों के लिए डिजाइन तैयार की। दर्जन भर से अधिक राखियों की डिजाइन तय की गई और उसके अनुरूप लगातार काम जारी है। महिलाओं के उत्साह को देखते हुए इस रक्षाबंधन के पहले तक कुल एक लाख रुपए की कीमत की राखियों को बिक्री के लिए उपलब्ध कराने की तैयारी है। हेरिटेज फाउंडेशन गोरखपुर की संरक्षिका डॉ। अनिता अग्रवाल एवं हेरिटेज एवियंस की मल्लिका मिश्रा गोरखपुर वन प्रभाग की इस पहल की न केवल सराहना करती है बल्कि औद्योगिक प्रतिष्ठानों से अपील करते हैं कि वे अपनी सीएसआर गतिविधियों से जोड़ कर इन प्रयासों को और बढ़ावा प्रदान करें।

पूरे साल प्रदर्शित होंगी बांस की राखियां

डीएफओ विकास यादव बताते हैं कि बांस की राखियां चिडिय़ाघर में नेशनल बंबू मिशन के स्टाल पर प्रदर्शनी व बिक्री के लिए रखी जाएंगी। इसके साथ ही 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस पर योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित होने वाले इंटरनेशनल सेमिनार में भी इसकी प्रदर्शनी लगाई जाएगी। चिडिय़ाघर के स्टाल में ये राखियां रक्षाबंधन के बाद भी अवलोकन के लिए उपलब्ध रहेंगी ताकि अगले साल के पर्व के पूर्व तक इसकी खासी मांग उपलब्ध हो सके। बांस की राखियों के बाजार में आने से पूर्व बांस के गहनें, श्रृंगारदान, नाइटलैंप, परदे, नेकलेस, ईयर रिंग, फ्लावर स्टैंड, खिलौने आदि बनाने पूरी दक्षता हासिल करने वाली महिलाओं का समूह चिडि़य़ाघर के आउटलेट से प्रतिमाह 30-35 हजार रुपए प्रतिमाह की कमाई कर रहा है।