- लॉकडाउन में ठप पड़े हैं बीआरडी मेडिकल कॉलेज और राज आई हॉस्पिटल के कॉर्निया बैंक
GORAKHPUR: आंखों की रोशनी से महरूम लोगों को नई जिंदगी देने के लिए बने बीआरडी मेडिकल कॉलेज और राज आई हॉस्पिटल में बने कॉर्निया बैंक लॉकडाउन में खुद बेजान हो गए हैं। यहां तीन लोगों के लिए रखी गई कॉर्निया लॉकडाउन के कारण खराब हो गईं। जबकि इन्हें नेत्रदान के सात दिन के अंदर ही प्रत्यारोपित करना था। इस वजह से इस अंधेरी दुनिया में जीने को मजबूर तीन लोगों को आंखों की रोशनी का इंतजार बढ़ गया है।
522 को रोशनी का इंतजार
बता दें, बीआरडी मेडिकल कॉलेज और राज आई हॉस्पिटल में कॉर्निया बैंक है। मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विभाध्यक्ष डॉ। राम कुमार जायसवाल ने बताया कि कोरोना के खौफ के चलते कॉर्निया निकालने के प्रोसेस ठप हैं। कॉर्निया बैंक खाली हो चुके हैं, जबकि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 165 मरीजों को प्रत्यारोपण का इंतजार है। वहीं सिटी के राज आई हॉस्पिटल में 357 रजिस्टर्ड मरीज हैं। राज आई हॉस्पिटल के डॉ। अनिल श्रीवास्तव ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान पांच परिवारों ने अस्पताल से संपर्क किया, लेकिन किसी के पास कोरोना निगेटिव का सर्टिफिकेट नहीं होने से टीम ने कॉर्निया निकालने से इनकार कर दिया। लॉकडाउन से दो दिन पहले राज आई हॉस्पिटल को तीन कॉर्निया मिली थीं। इन्हें प्रत्यारोपित करने के लिए मरीजों के खून के नमूने और आंखों की माप ले ली गई थी। क्रॉसमैच के बाद प्रत्यारोपण के लिए मरीजों का चयन होना था। जांच प्रक्रिया के दौरान लॉकडाउन होने से ऑपरेशन नहीं हो सके जबकि इसे नेत्रदान के सात दिन के भीतर ही प्रत्यारोपित करना होता है।
खास होती है कॉर्निया
- कॉर्निया (पुतली) आंख की पारदर्शी परत होती है।
- इसके जरिए ही प्रकाश आंखों के अंदर पहुंचता है।
- यह प्रकाश को आंख में फोकस भी करती है, जिससे साफ दिखता है।
ऐसे होता है नेत्रदान
- नेत्रदान में मृत शरीर से मौत के छह घंटे के अंदर कॉर्निया निकालनी होती है।
- फिर इसे एक सप्ताह के अंदर प्रत्यारोपित करना होता है।
- मरने के बाद एक व्यक्ति दो जिंदगियों को रोशन कर सकता है।
- किसी व्यक्ति की मौत के बाद कॉर्निया दान करने के इच्छुक परिवार छह घंटे के अंदर कॉर्निया बैंक की टीम को सूचित कर सकते हैं।